मित्रो, बच्चों के अधिकार, स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर परिवार, समाज और सरकार सभी चिंता करते हैं. ये इन सभी के भविष्य की बुनियाद हैं. इन्हें जितना मजबूत बनाया जायेगा, सब का भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा. इस तथ्य के बाद भी आंकड़े बताते हैं कि हम बच्चों की जान बचाने में अब भी पीछे हैं. जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनमें कुपोषित बच्चों की संख्या भी अधिक होती है. बच्चों...
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बेलगाम महंगाई के पोषक- विकास नारायण राय
जनसत्ता 22 अगस्त, 2014 : वित्तमंत्री अरुण जेटली के अनुसार आम लोगों के लिए बवालेजान बनी महंगाई का सीधा संबंध बाजार में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति से है। भारतीय शासकों का यह जाना-माना तर्क रहा है, जो जनता को बरगलाने वाले अगले पाखंड की जमीन भी तैयार करता है। शासकों का अगला तर्क होता है कि आम लोगों की जरूरत की चीजों की आपूर्ति जमाखोरों ने रोक रखी है और...
More »बबुआ से बड़ा झुनझुना- विनोद कुमार
जनसत्ता 21 जुलाई, 2014 : आजादी के बाद हमने वयस्क मताधिकार पर आधारित भारतीय गणराज्य की स्थापना की। मूल अवधारणा यह रही कि हम एक ऐसी व्यवस्था बनाएंगे जिसके केंद्र में रहेगा देश का नागरिक। विधायिका उसके हित में कानून बनाएगी, कार्यपालिका उन कानूनों के दायरे में नागरिकों को एक विधि-सम्मत सुशासन मुहैया कराएगी, सेना बाह्य दुश्मनों से देश की सुरक्षा की गारंटी करेगी, पुलिस नागरिकों के जान-माल की रक्षा करेगी।...
More »दूरसंचार की दूसरी क्रांति- गोपाल विट्ठल
लगभग 75 फीसदी क्षेत्र और 90 फीसदी आबादी तक पैठ जमाकर मोबाइल ने देश के कोने-कोने में अपनी असरदार उपस्थिति दर्ज कराई है। आधुनिकतम तकनीकों, न्यूनतम शुल्क दरों और अनूठे बिजनेस मॉडलों के जरिये भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि जोश, कुशलता और उद्यमिता की बदौलत विश्व स्तर के उद्योग को कुछ ही वर्षों में कैसे खड़ा किया जाता है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पांच...
More »कमजोर मॉनसून और महंगाई की लड़ाई- राजीव रंजन झा
इस बार मॉनसून के सामान्य से कमजोर रहने की खबरों ने चिंता बढ़ा दी है. इसका नकारात्मक असर महंगाई रोकने के प्रयासों पर होगा. मॉनसून पर सरकार का जोर नहीं चलता, लेकिन जब पहले से मालूम हो कि एक संकट की संभावना है, तो उससे निपटने के लिए पहले से उपाय करने होंगे. एक तरफ जहां कृषि उत्पादन में संभावित कमी का पहले से अंदाजा लगा कर समय रहते आयात करके...
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