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नवउदारवाद और राष्ट्रवाद के बीच में खेती-किसानी का भविष्य

-न्यूजक्लिक, सभी जानते हैं कि तीसरी दुनिया के देशों में मुक्ति का संघर्ष जिस साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद से संचालित था, वह उस पूंजीवादी राष्ट्रवाद से बिल्कुल भिन्न प्रजाति की चीज थी, जिसका जन्म सत्रहवीं सदी में यूरोप में हुआ था। पश्चिम में इस तरह की प्रवृत्ति है, जिसमें प्रगतिशील भी शामिल हैं, जो राष्ट्रवाद को एकसार तथा प्रतिक्रियावादी श्रेणी की तरह देखती है। वे साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद तक को यूरोपिय पूंजीवादी राष्ट्रवाद के...

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विमर्श : इतिहास पर छापा

-आउटलुक, “हिंदुत्ववादी शक्तियां इतिहास को विचारधारा के अनुसार बदलने के लिए राजसत्ता का इस्तेमाल करती हैं” पिछली शताब्दी के शुरुआती वर्षों से ही हिंदू सांप्रदायिक शक्तियां भारत के अतीत को अपने चश्मे से देखकर इतिहास को अपनी विचारधारा के अनुसार बदलने की कोशिश करती रही हैं। पुरुषोत्तम नागेश ओक ने पांच दशकों से भी अधिक समय तक इस अभियान का नेतृत्व किया और कई पुस्तकें लिखीं। 1964 में ‘भारतीय इतिहास पुनर्लेखन संस्थान’...

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नरेन्द्र मोदी का विरोध लंदन में, "मोदी इस्तीफा दो" का बैनर लटकाकर मांगा मोदी का इस्तीफा

-कारवां, 15 अगस्त की सुबह ब्रिटेन के प्रवासी भारतीय के एक दल ने लंदन के वेस्टमिंस्टर ब्रिज में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस्तीफा की मांग वाला बैनर लटका कर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने भारतीय उच्चायोग के बाहर मोमबत्तियां जलाकर मोदी शासन के पीड़ितों को याद किया. कार्यक्रम के आयोजकों में से एक दक्षिण एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप के मुक्ति शाह ने इस कार्रवाई के बारे में बताया कि “भारत अपना 75वां...

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आज़ादी@75: आंदोलन के 74 बरस और नई उम्मीद और नया रास्ता दिखाता किसान आंदोलन

-न्यूजक्लिक,  आज जब हम अपनी आजादी की 74वीं वर्षगांठ और 75वां दिवस मना रहे हैं, संविधान सभा के अंतिम भाषण में डॉ. आंबेडकर द्वारा दी गयी चेतावनी बेहद प्रासंगिक है जिसमें उन्होंने  कहा था कि देश एक अन्तरविरोधों भरे दौर में प्रवेश कर रहा है, हम एक राजनीतिक लोकतंत्र तो बन गए लेकिन सामाजिक लोकतंत्र कायम न हुआ तो यह राजनीतिक लोकतंत्र भी खतरे में पड़ जायेगा। इन 74 वर्षों में देश...

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अमेरिका की यूज एण्ड थ्रो पॉलिसी से 3 बार जूझने के बाद अब अफगानिस्तान के आगे क्या बचा है

-द प्रिंट, तालिबान की फतह अवश्यंभावी दिख रही है. अफगानिस्तान पिछले एक-दो सप्ताह से दुनिया भर में सुर्खियों में, लेखों में छाया है. गौर कीजिए कि 90 फीसदी लेखों और बहसों में यही मुद्दा उठाया जा रहा है कि अमेरिका से लेकर भारत और चीन तथा बेशक पाकिस्तान आदि दूसरे देशों पर इसका क्या असर पड़ेगा. लेकिन जिस मुल्क, अफगानिस्तान और उसके चार करोड़ आवाम को सबसे ज्यादा तवज्जो और जज़्बाती...

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