नई दिल्ली [उमा श्रीराम]। करीब 70 वर्ष पहले चर्चित कवि सुब्रमण्यम भारती ने यह कहकर हलचल मचा दी थी कि यदि दुनिया में एक भी आदमी भूखा है तो इस विश्व को ही नष्ट कर दो। भारती जी ने तभी भारत की आजादी को देख लिया था और उन्होंने आधुनिक भारत, युवा वर्ग व महिलाओं को समर्पित करते हुए कई कविताएं रच डाली थी। पर दुर्भाग्य से वे यह कल्पना भी नहीं कर सके...
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चुनाव से बंगाल में पहले होगी दूसरी हरित क्रांति
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। विधानसभा चुनाव होने के नाते पश्चिम बंगाल में सबसे पहले 'हरित क्रांति' होगी। केंद्र सरकार ने बजट में घोषित 400 करोड़ रुपये की दूसरी हरित क्रांति योजना में से 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि पश्चिम बंगाल को दे दी है। यह वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का गृह राज्य भी है। दूसरी हरित क्रांति के लिए चुने गए बाकी पांच राज्यों को थोड़ा-थोड़ा 'चूरन' बांट दिया गया है। उन्नतशील...
More »पुनर्नवा से बढ़ेगा खून, चूली से बनेगी हेल्थ ड्रिंक वाइन
हमीरपुर. हिमाचल में महिलाओं में खून की काफी कमी पाई जाती है। यह बात एनीमिया जांच शिविरों से साबित हो चुकी है। खून की इस कमी को अब औषधीय पौधा पुनर्नवा दूर करेगा। हर्बल गार्डन नेरी में इस प्लांट को बड़े स्तर पर उगा कर इसे घरों में लगाने के लिए लोगों को उपलब्ध करवाया जाएगा। लोअर हिमाचल में इस पौधे के लिए उपयुक्त जलवायु है। वेस्टलैंड और कम पानी में भी कामयाब पुनर्नवा बहुवर्षीय औषधीय...
More »भेंटवार्ता जोन पी मेंशे से- वकार अहमद सईद
नृत्त्वशास्त्र की अध्येता जॉन पी मेंशे से की गई यह भेटवार्ता फ्रंटलाइन से साभार ली गई है। प्रोफेसर जोन पी मेंशे नृत्तत्वशास्त्र की अध्येता हैं। उन्होंने बरसों तक सिटी यूनिवर्सिटी ऑव न्यूयार्क के ग्रेजुएट सेंटर और इसी यूनिवर्सिटी के लेहमान कॉलेज में अपने विषय का अध्यापन किया है। प्रोफेसर मोंशे सेकेंड चांस फाऊंडेशन नामक एक नॉट फॉर प्राफिट संस्था की अध्यक्ष भी हैं। यह संस्था भारत और संयुक्त राज्य...
More »पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट
खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...
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