नगोया (जापान). धरती पर जीव जंतुओं और पेड़ पौधों की करीब 20 फीसदी याने करीब 60 लाख प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे में हैं। धरती के जीवों के अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। आईयूसीएन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सभी जीवों में हर पांचवा विलुप्त होने की कगार पर है। यह खतरा पेड़-पौधों पर भी मंडरा रहा है। प्रकृति के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था आईयूसीएन ने...
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वेदांत- हिन्दुत्व और साम्राज्यवादी मंसूबों का विध्वसंक मिश्रण- रोजर मूडी
विभिन्न देशों के कानून और पर्यावरण नियमों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन करने में वेदांत रिसोर्सेज़ की एक अलग पहचान है. कहने को तो यह कम्पनी एक पब्लिक कम्पनी है मगर इसमें वर्चस्व खुले तौर पर केवल एक व्यक्ति, उसके परिवार और इष्ट मित्रों का ही है. इस कम्पनी को इस बात पर भी नाज़ है कि वह हिन्दुत्व और नव-उदार रूढ़िवादिता में समन्वय स्थापित करती है. परेशानी की बात...
More »सूचना के दायरे में आते हैं चीफ जस्टिस : हाईकोर्ट
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आता है। अपने 88 पन्नों के फैसले में चीफ जस्टिस अजीत प्रकाश शाह, जस्टिस विक्रमजीत सेन और जस्टिस डा.एस.मुरलीधर की फुल बेंच ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि उसे सौंपी गई जिम्मेवारी है। हाईकोर्ट का यह फैसला देश के प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन के लिए एक निजी धक्के...
More »पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट
खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...
More »कोसी का कहर
कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...
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