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कैसे पंचवर्षीय योजनाओं ने हिंदुस्तान की आर्थिक बुनियाद को टेढ़ा कर दिया

-सत्याग्रह, अब तक हमने जाना कि कैसे आजादी के बाद 1948 में राज्यों का एकीकरण हुआ - हैदराबाद, जूनागढ़ की ना-नुकर और कश्मीर का एक लड़ाई और कुछ शर्तों के साथ हिंदुस्तान में विलय. 1949 में आरबीआई का राष्ट्रीयकरण हुआ और 1950 में देश अपने नये संविधान के साथ गणतंत्र बना. देखा जाए तो इसके साथ देश का भौगोलिक और संवैधानिक ढांचा बनकर तैयार हो गया था. अब बारी थी आर्थिक...

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भारत के युवाओं के लिए रोज़गार की राह हुई और मुश्किल

-बीबीसी, कोरोना के आने से पहले भी दुनिया भर में यह बहुत बड़ा सवाल था कि आनेवाले दिनों में रोज़गार कैसे मिलेगा, कहाँ मिलेगा और किस किसको मिलेगा? अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार पानेवाले दंपती अभिजीत बनर्जी और एस्टर डूफलो तो तभी कह चुके थे कि अब दुनिया भर की सरकारों को अपनी बड़ी आबादी को सहारा देने का इंतज़ाम करना पड़ेगा, क्योंकि सबके लिए रोज़गार नहीं रह पाएगा. बड़ी बहस इस बात पर...

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‘आत्मनिर्भर भारत’: सरकार द्वारा जनता की जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने का बहाना?

-न्यूजलॉन्ड्री, कोरोना महामारी के लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण एक ओर देश की सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति बद से बदतर बनती जा रही है तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भरता की घोषणा के द्वारा जनता के प्रति कई जवाबदेहियों से अपने को मुक्त कर लिया है जिसके चलते सभी क्षेत्रों में घोर निराशा का वातावरण छाया हुआ है. आर्थिक मोर्चे पर गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले तथा...

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‘मोदी सरकार उद्योगपतियों के झुंड से घिरी’, हेमंत सोरेन कोल ब्लॉक नीलामी के खिलाफ गए सुप्रीम कोर्ट

-द प्रिंट, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह ‘पूरी तरह से बिजनेसमैन के झुंड से घिरी हुई है’. इसलिए उन्होंने राज्य के 22 कोयला ब्लॉकों को नीलामी करने के अपने फैसले को खारिज कर दिया है. सोरेन ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘मोदी सरकार ने राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना जल्दबाजी में यह निर्णय लिया है. सरकार पूरी तरह उद्योगपतियों के झुंड...

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खस्ताहाल उद्योग-धंधे, अर्थव्यवस्था की हालत भी पतली

-डॉयचे वेले,  कोरोना संकट के दौरान लाखों प्रवासी कामगारों ने यह सोच कर घरों का रुख किया कि वे अपने लोगों के बीच रहकर कुछ न कुछ करके जीवन-यापन कर लेंगे. लेकिन बिहार में रोजगार के सीमित अवसरों के बीच 'कुछ न कुछ' भी तलाशना उनके लिए भारी पड़ रहा है. अकुशल मजदूरों के लिए दिहाड़ी तो कुशल या अर्द्धकुशल  कामगारों के लिए रोजगार के सीमित अवसर परेशानी का सबब बन...

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