जनसत्ता 17 जून, 2014 : दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट गहरा रहा है। पिछले डेढ़ सौ सालों में बनीं यूरोप और उत्तरी अमेरिका की सेवाएं उनके लिए भी अत्यधिक महंगी और एकांगी साबित हो रही हैं। मकिंजी कंपनी ने अनुमान लगाया था कि अगर स्वास्थ्य-सेवाओं पर खर्च ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2100 में अमेरिका को अपनी सकल आय का सत्तानबे फीसद और यूरोप को साठ फीसद स्वास्थ्य...
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भूमि अधिग्रहण और स्त्रियां- मुस्कान
जनसत्ता 29 अप्रैल, 2013: भूमि अधिग्रहण (पुनर्वास और पुनर्स्थापन) विधेयक अब कानून बनने की दिशा में निर्णायक मोड़ पर आ चुका है। एक सौ सत्तासी संशोधनों के सुझावों के बाद अब अगर संसद में विधेयक पर मुहर लग जाती है तो एक तरफ जहां सरकार अपनी पीठ थपथपाएगी वहीं ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में जिनकी जमीनें अधिग्रहीत की जानी हैं, वे भी मुआवजा बढ़ने से शायद राहत महसूस करें। लेकिन...
More »झूठी, एकतरफा और मनगढ़ंत!-प्रेस काउंसिल बिहार रिपोर्ट ( क्षमा के साथ)
प्रेस काउंसिल बिहार रिपोर्ट क्षमा के साथ भारतीय प्रेस परिषद (प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया) की किसी रिपोर्ट के लिए पहली बार यह विशेषण हमने इस्तेमाल किया कि प्रेस परिषद की बिहार रिपोर्ट झूठी है, एकतरफा है, मनगढ़ंत है या पूर्वग्रह से ग्रसित है. या किसी खास अज्ञात उद्देश्य से बिहार की पत्रकारिता और बिहार को बदनाम करने के लिए यह रिपोर्ट तैयार की गयी है. हम ऐसा निष्कर्ष तथ्यों के आधार पर निकाल...
More »जल की जमींदारी- राजकुमार सोनी(तहलका)
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 40 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के गांव महमरा के बाशिंदे आज भी इस बात को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते कि सदियों से उनकी जीवनरेखा रही शिवनाथ नदी पर अब उनका पहले जैसा अधिकार नहीं रहा. यहां के एक ग्रामीण साधुराम बताते हैं, 'हमें तो अब नदी की तरफ जाने में ही डर लगता है कि कोई कुछ कह न दे.' दरअसल शिवनाथ छत्तीसगढ़ की...
More »बा-सफा कोई नहीं : गोपालकृष्ण गांधी
‘यह सब राजनीति है’ या ‘राजनीतिज्ञों से आखिर और क्या उम्मीद कर सकते हैं।’ इस किस्म की बातें हम अक्सर सुनते हैं। खुद कहते भी हैं। ‘राजनीति’ और ‘राजनीतिज्ञ’ शब्द आज संकट में हैं। यह संकट खुद उन्होंने पैदा किया है। कुछ अपवाद भी हैं, ऐसे राजनीतिज्ञों के जो न तो परेशानी में हैं और न विवाद में। इसके लिए हम भगवान के शुक्रगुजार हैं। पर ऐसे अपवाद बहुत कम हैं।...
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