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स्त्री छवि का उनका खांचा-- मनीषा सिंह

अमेरिका और ब्रिटेन जैसे खुले समाजों वाले देश 'कंटेंट वॉटरशेड टाइमिंग' जैसे तरीके का इस्तेमाल कर यह सुनिश्चित करते हैं कि टीवी पर ऐसी फिल्मों, धारावाहिकों और विज्ञापनों का प्रसारण उस वक्त न हो, जिस वक्त आम तौर पर बच्चे टीवी देख रहे होते हैं। इन विकसित देशों में भी ऐसी पाबंदी के पीछे यह धारणा काम कर रही है कि खुले समाज का अर्थ यह नहीं है कि वयस्क...

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सरकारी बेरुखी से बदहाल किसान--- संजीव पांडेय

इस साल आलू की अच्छी फसल के बावजूद किसान बहुत परेशान हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब तक के किसान दस पैसे प्रति किलो आलू बेचने के लिए मजबूर हैं। हाल ही में पंजाब में किसानों ने जानवरों को ही आलू खिलाना शुरू कर दिया था। उधर उत्तर प्रदेश में सरकार ने इस बार आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया था। इसके बावजूद आगरा और मथुरा के इलाके में...

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क्यों बंद हो रहे सरकारी स्कूल--- कौशलेन्द्र प्रपन्न

एक सरकारी स्कूल का बंद होना क्या मायने रखता है इसका अनुमान शायद हम आज न लगा सकें। संभव है इसका खमियाजा समाज को दस-बीस बरस बाद भुगतना पड़े। एक ओर विकास के डंके बज रहे हैं वहीं दूसरी ओर आम बच्चों से उनकी बुनियादी शिक्षा की उम्मीद यानी सरकारी स्कूल तक छीने जा रहे हैं। हमने 2000 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तय किया था। उसमें 2010 तक सभी बच्चों...

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फाइलेरिया को हरा सकते हैं हम-- डॉ भूपेंद्र त्रिपाठी

फाइलेरिया अभियान के बिहार दौरे पर वैशाली जिले में मेरी मुलाकात एक ऐसे परिवार से हुई, जिन्हें अभियान के दौरान दवाइयां दी गयी थी, परंतु उन लोगों ने दवाएं खायी नहीं थी. हमारी चर्चा के बीच यह मालूम पड़ा कि उसी घर की कॉलेज जानेवाली एक छात्रा खुद फाइलेरिया से पीड़ित थी और वह परिवार अपनी बच्ची के इलाज पर लगभग 1200 रुपये हर सप्ताह खर्च कर वैकल्पिक दवाएं ले...

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सूने होते गांव-- चंदन चौधरी

एक जमाना था जब कहा जाता था ‘उत्तम खेती, मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान।' इस कहावत के अर्थ से मेरा गांव भी अछूता नहीं था। जम कर खेती की जाती थी और तब महात्मा गांधी के सपनों के सुराज का प्रभाव यहां दिखता था। यों मेरा गांव बहुत छोटा है, लेकिन अंदर से इतना बड़ा कि यहां सभी लोग आपस में वर्षों से मिलजुल कर और सौहार्द से रहते...

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