जब इनसान नर्वस होता है, तो उसकी घिग्घी बंध जाती है. लेकिन सरकार जब नर्वस होती है, तो कुछ ज्यादा ही वाचाल हो जाती है. मोदी सरकार का फिलहाल यही हाल है. कार्यकाल के तीन साल बाकी हैं. लेकिन दो साल पूरा करने पर ऐसा डंका बजाया जा रहा है, मानो यज्ञ की पूर्णाहुति होनेवाली हो. हर सरकारी वेबसाइट खोलते ही विज्ञापन आ जाता है- मेरा देश बदल रहा है,...
More »SEARCH RESULT
कैराना मामला : न कारोबार महफूज और न इज्जत
संजीव गुप्ता, पानीपत। उत्तर प्रदेश के कैराना से हिंदुओं के पलायन और उसके पीछे दहशत की कहानी अब परत दर परत सामने आने लगी है। पानीपत में शरण लिए कुछ लोगों की आपबीती इस तरह सामने आई है, जैसे कैराना में कानून-व्यवस्था नहीं, कुछ खास लोगों का राज हो। व्यवसाय चलाने के लिए लाखों की रंगदारी देनी पड़ती है। हिंदू महिलाएं शाम के बाद घर से नहीं निकल सकतीं। ईश्वर चंद...
More »दोहरे मानदंडों का नया नमूना - राजीव सचान
गोवध और गोमांस पर पाबंदी के महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा है कि राज्य के बाहर से गोमांस लाने, रखने और खाने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती। हाईकोर्ट के अनुसार शासन को यह तय करने का अधिकार नहीं कि लोग क्या खाएं-पिएं! हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि गोमांस लाने, रखने और खाने पर रोक...
More »क्या गरीबी एक राजनीतिक पूंजी है? - विजय संघवी
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में कहा कि भारत में गरीबी कायम रखने में कांग्रेस का योगदान था, क्योंकि गरीबों को वे वोटबैंक की तरह मानते थे। शाह ने जो कहा, वह एक राजनीतिक आम धारणा भी है। लेकिन इस कथन की विस्तार से पड़ताल करने के लिए हमें इसके विभिन्न् परिप्रेक्ष्यों को ठीक से समझना होगा। जॉन राल्स्टन सॉल ने तीन तरह के छवि-निर्माताओं की तस्दीक की है।...
More »‘भारत में आजादी’ का अर्थ-- रविभूषण
आजादी की लड़ाई में आजादी के स्वरूप और उसकी अवधारणा को लेकर बीसवीं सदी के बीस के दशक के मध्य से जो विचार-मंथन आरंभ हुआ था, वह 1947 की अधूरी राजनीतिक आजादी या सत्ता-हस्तांतरण के कुछ वर्ष बाद थम गया. रुक-रुक कर वास्तविक और मुकम्मल आजादी की बातें हुईं. ‘संपूर्ण क्रांति' का आंदोलन भी हुआ, पर कुछ समय बाद ही न उसमें गति रही, न शक्ति, और न इच्छाशक्ति ही...
More »