अनेक विद्वानों का मानना है कि महात्मा गांधी को समझना आसान भी है और मुश्किल भी. दरअसल, गांधी की बातें सरल और सहज लगती हैं, लेकिन उनका अनुसरण करना बेहद कठिन होता है. हम सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे. वह एक सफल लेखक भी थे. आप उनकी सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 2 अक्तूबर, 1869 में...
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औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां-- प्रमोद मीणा
वर्ष 1871 में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारत की कुछ खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम (क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट) पारित करके जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। मुख्यधारा के समाजों से दूर रहने वाली इन जनजातियों को पुश्तैनी रूप से अपराधी मानते हुए उन्हें गैर-जमानती अपराध के दायरे में ला दिया गया। इन जनजातीय समुदायों में थे बावरिया, पारधी, कंजर, सांसी, बंजारा, गरासिया, सहरिया आदि। ये...
More »सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप-- 'मनरेगा को धीमा जहर दे रही है सरकार'
दरम्याना कद- बस इतना-सा कि कुर्सी से पीठ टिकाकर बैठने पर पुश्त से कुछ इंच नीचा ही नजर आता है. आंखों से हल्का पीलापन.. गहरे सांवले रंग के चेहरे पर बरसों से जमे हुए तनाव और आशंका ने अब झुर्रियों का रुप ले लिया है. सूती साड़ी में लिपटी बहुत दुबली देह.. मानो कह रही हो कि काम ना करें तो कैसे खाएं-जीएं ! पल्लू से आधे ढंके माथे से कुछ...
More »तीन तलाक पर कमजोर फैसला -- योगेन्द्र यादव
तीन तीन तलाक की प्रथा मानवीयता, संविधान और इस्लाम तीनों के विरुद्ध है. देर-सवेर तीन तलाक को खारिज होना ही था, सो हो गया. लेकिन, मुझे इस फैसले से तीन बड़ी उम्मीदें थीं. एक, इससे तीन तलाक ही नहीं, देश में तमाम महिला विरोधी धार्मिक-सामाजिक कुरीतियों को अमान्य करने का रास्ता खुलेगा. दो, इस बहाने मुस्लिम समाज में सुधार होगा और मुस्लिम अपने कठमुल्ला नेतृत्व से मुक्त होंग. तीन, कानूनी...
More »तीन तलाक पर अच्छा फैसला-- भूपेन्द्र यादव
तीन तलाक पर आये फैसले को किसी संस्था या धार्मिक परंपरा विशेष के खिलाफ न मानकर एक प्रगतिशील कदम के रूप में देखना चाहिए, जो समाज के साधारण एवं वंचित वर्ग के प्रति निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का फैसला है. इस विषय पर मीडिया के सारे साधनों में बहस और चर्चा हुई है, जिसमें धार्मिक संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ साधारण जन और पीड़ित पक्षों ने भी बहस की है. यह...
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