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हर मिनट भूख के कारण दम तोड़ रहे हैं 11 लोग, कोविड-19, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन है बड़ी वजह

-डाउन टू अर्थ, हर मिनट भूख के कारण औसतन 11 लोग दम तोड़ रहे हैं। जिसके लिए काफी हद तक कोविड-19, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है।  यह जानकारी हाल ही में ऑक्सफेम द्वारा जारी नई रिपोर्ट द हंगर वायरस मल्टीप्लाइज में सामने आई है| अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 15.5 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं, जोकि पिछले साल की तुलना में 2 करोड़...

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बेरोज़गार भारत एक पड़ताल: केंद्र और राज्य सरकारों के 60 लाख से अधिक स्वीकृत पद खाली

-न्यूजक्लिक, मोदी सरकार के कार्यकाल में जहाँ एक और बेरोजगारी इतनी अधिक हैं, कोई नई नौकरिया नहीं हैं, वहीं दूसरी और जो सरकारी पद पहले से स्वीकृत हैं उन पर भी नियुक्ति नहीं हो रही हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों के आंकड़ों पर किये गए अध्ययन से पता चलता है कि रिक्त पदों कि संख्या 60 लाख से अधिक है।  भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य सरकारों...

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गन्ना मूल्य बकाया भुगतान पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पीआईएल, राज्य सरकार को चार सप्ताह में देना होगा जवाब

-रूरल वॉइस, उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के चीनी मिलों पर बकाया गन्ना मूल्य भुगतान में देरी के मुद्दे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है। याचिका में कोर्ट  को बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के किसानों के गन्ना मूल्य भुगतान  में देरी हो रही है। किसानों को उनके गन्ना मूल्य का समय से भुगतान न करके उन्हें उनके हक से  वंचित किया जा...

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चक्रवात यास से तबाह हुए पश्चिम बंगाल के किसान

-कारवां,  हर तरफ चेतावनी थी. सायरन और माइक्रोफोन बज रहे थे. सुंदरबन के बाली द्वीप के अन्य निवासियों की तरह परितोष विश्वास के पास भी अपना घर छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. वह अपने परिवार के साथ पास की एक चट्टान पर बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. "हमने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था," उन्होंने कहा और बताया, "पानी ने एक घंटे में गांव को अपनी चपेट...

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शेयर बाजार एक आईना है- 40 सालों में कितना बदला भारतीय बिजनेस और इसमें क्या कमी है

-द प्रिंट, चालीस साल पहले सबसे बड़े 30 व्यावसायिक ‘घरानों’ की जो कंपनियां शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध थीं उनका कुल मूल्य 6,200 करोड़ रुपये था. उस समय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) इससे 28 गुना बड़ा (1.75 लाख करोड़ रु. के बराबर) था. ज़्यादातर कंपनियां जूट, चाय, सीमेंट, चीनी, इस्पात के उत्पाद और कपड़े जैसे ‘प्राथमिक’ उत्पादों का उत्पादन करती थीं. उसके बाद से नाटकीय बदलाव हुए हैं. आज नेशनल स्टॉक एक्सचेंज...

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