-डाउन टू अर्थ, वैश्विक स्तर पर 2003 से 2019 के बीच कृषि भूमि में करीब 9 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। इसका मतलब है कि इन 16 वर्षों में कुल कृषि भूमि में करीब 10.2 करोड़ हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। 2019 के आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में करीब 124.4 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि है। यह जानकारी 23 दिसंबर 2021 को जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित एक...
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शीत-लहरों ने 2020 में गर्म हवाओं की तुलना में 76 गुना ज्यादा जानें लीं
-डाउन टू अर्थ, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, 2020 में शीत-लहरों की वजह से गर्म हवाओं की तुलना में 76 गुना ज्यादा जानें गईं। सांख्यिकी विभाग ने ‘भारत की पर्यावरण स्थिति के भाग-1’ में बताया कि 2020 में शीत-लहरों के कारण 152 मौतें दर्ज की गईं, जबकि गर्म हवाओं के चलते दो लोगों को जान गंवानी पड़ी। आईएमडी की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 2020 में, आधिकारिक तौर पर दर्ज की गई गर्म हवाओं के अनुपात में शीत-लहरों से होने वाली मौतें 20 सालों में सबसे अधिक थीं। देश में 2020 में 99 दिनों तक शीत-लहर दर्ज की गईं। रिपोर्ट में दिखाया गया है कि 2017-2020 से शीत-लहरों के दिनों की तादाद में लगभग 2.7 गुना वृद्धि हुई है। शीत-लहरों ने 1980 से 2018 के बीच गर्म हवाओं की तुलना में अधिक देशवालों की जान ली है। 2017 से शीत-लहरों वाले दिनों की तादाद हर साल लगातार बढ़ रही है। 2018 में ऐसे दिनों की तादाद 63 थी, जो 2019 में डेढ़ गुना बढ़कर 103 हो गई थी। देश में 2020 में गर्म हवाओं के कारण सबसे कम मौतें दर्ज की गई थीं, जब देश में कोरोना वायरस की महामारी के चलते कई महीने तक लॉकडाउन लागू किया गया था। साल 2011 में गर्म हवाओं की तुलना में शीत-लहरों से लगभग साठ गुना ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। आईएमडी के मुताबिक, शीत-लहरों से 722 लोगों की जबकि गर्म हवाओं से 12 लोगों की जान गई थी। साल, जिसमें शीत-लहर से मौतें हुईं गर्म हवाओं से हुईं मौते शीत-लहर से हुईं मौते शीत-लहर और गर्म हवाओं से मौतों में अनुपात 2020 2 152 76.00 2011 12 722 60.17 2018 33 280 8.48 2000 55 425 7.73 2001 70 490 7.00 2004 117 462 3.95 2010 269 450 1.67 2008 111 114 1.03 विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, शीत-लहर की वजह से लोगों में कोरोनरी हार्ट डिजीज, दिमाग की नसों का फटना और सांस संबंधी बीमारियां पैदा होती हैं, जो उनकी मौत का कारण बनती हैं। आईएमडी में केवल 2021 की जनवरी का आंकड़ा उपलब्ध है, जिस महीने शीत-लहर से सबसे ज्यादा लोगों की जान गई। आईएमडी ने कहा कि जनवरी 2021 में उत्तर पश्चिम भारत में औसत मासिक न्यूनतम तापमान 2019 और 2020 की तुलना में कम रहा था। रिपोर्ट में बताया गया कि जनवरी 2021 में औसत मासिक अधिकतम तापमान सामान्य से 2-4 डिग्री सेल्सियस कम था, यह इस महीने गंगा के मैदान में और दक्षिण-पंजाब व इसके पश्चिम में उत्तरी हरियाणा में अधिक था। बिहार में भी औसत मासिक तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री सेल्सियस कम था। अंाकड़े बताते हैं कि जनवरी 2021 में ठंडी हवाओं से लेकर शीत लहरों तक के 15 दिन दर्ज किए गए। ये लहरें देश उत्तरी भागों में फैली हुई थीं और इसमें दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ स्थान शामिल थे। उत्तर प्रदेश में 2021 में 11 दिनों तक ठंडी और भीषण शीत लहरें दर्ज की गईं। पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. ...
More »कोई भी जगह नहीं बची जहां माइक्रोप्लास्टिक न मिला हो: अध्ययन
-डाउन टू अर्थ, वायुमंडलीय माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के उभरते खतरे ने उन क्षेत्रों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया है जिन्हें पहले प्लास्टिक की पहुंच से बाहर माना जाता था। दुनिया भर में इस समस्या की सीमा को समझने के लिए वायुमंडलीय माइक्रोप्लास्टिक की सीमा की जांच करना महत्वपूर्ण है। अब एक नए अध्ययन में पता चला है कि दुनिया भर में माउंट एवरेस्ट से लेकर मारियाना ट्रेंच तक हर जगह माइक्रोप्लास्टिक...
More »जानें कैसे हवा को ठंडा करने की तकनीकें पृथ्वी को गर्म कर रही हैं?
-इंडियास्पेंड, क्या आप जानते हैं कि एयर कंडीशनर जैसी रेफ्रिजेरेशन और कूलिंग तकनीकें 100 करोड़ टन से अधिक कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन (CO2) करती हैं? ये आंकड़े जापान के उत्सर्जन के बराबर हैं, जो 2018 में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जक देश था। भारत ने ऊर्जा-बचत और जलवायु-अनुकूल कूलिंग तकनीकों के लिए एक इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) तैयार किया गया था, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके लॉन्च होने के दो...
More »जलवायु संकट पर अमीर देशों और भारत के ताकतवर लोगों के भरोसे रहना बड़ी भूल
-कारवां, हाल ही में 31 अक्टूबर और 12 नवंबर के बीच ग्लासगो में संपन्न हुई जलवायु परिवर्तन की 26वीं अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में भारत सहित कई विकासशील देशों ने जलवायु न्याय का मुद्दा उठाया. इन देशों की मांग वाजिब है क्योंकि बैंगलुरु के राष्ट्रीय प्रगत अध्ययन संस्थान की डॉक्टर तेजल कानिटकर के अनुसार, विश्व के सबसे धनी देश 1990 में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन के समझौतों पर चर्चा शुरू होने तक जलवायु परिवर्तन...
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