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फेसबुक और पश्चिमी पूंजीवाद- केविन रैफर्टी

सिंगापुर में बीबीसी वर्ल्ड बिजनेस न्यूज का प्रस्तुतकर्ता खुशी-खुशी इस संभावना के बारे में बात कर रहा था कि अपने आईपीओ के मार्फत फेसबुक एक ‘ट्रिलियन डॉलर कंपनी’ बन सकती है। जाहिर है वह गलत था। फेसबुक का कमजोर प्रदर्शन इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि पश्चिमी पूंजीवाद पटरी से उतरता जा रहा है। तथाकथित वैश्विक नेता महज वक्त जाया कर रहे हैं, जबकि बुनियादी संरचनाओं के समक्ष गंभीर संकट...

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आखिर गरीबी के मायने क्या?- हर्षमंदर

पिछले साल के अंतिम दिनों की बात है। दो युवकों ने तय किया कि वे अपने जीवन का एक माह उतने पैसों में बिताएंगे, जो एक औसत गरीब भारतीय की मासिक आय है। उनमें से एक युवक हरियाणा के एक पुलिस अधिकारी का बेटा है। उसने पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की है और अमेरिका और सिंगापुर में बैंकर के रूप में काम कर चुका है। दूसरा युवक अपने माता-पिता के साथ...

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विकास का शौचालय सिद्धांत- यशवंत व्यास

आत्मविकास की परंपरा में शौचालय का भारी योगदान रहा है। दिशा-मैदान की भारतीय रीति ने कई लोगों को दिमागी तौर पर परेशान किया। कहा जाता है कि गांवों में जंगल की झाड़ियों को ढूंढने और लौटते समय कुएं से दातौन चबाते हिंदुस्तानी लोग परदेसियों के लिए अजूबे थे। भूमिपुत्रों के देश में शौचालय की परंपरा का आगमन आयातित संस्कृति का प्रतीक हो सकता है, लेकिन इससे कौन इनकार करेगा कि महानगरों...

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प्रधान नहीं जानतीं पंचायतीराज मंत्री कौन!- सुरेश कासलीवाल की रिपोर्ट

अजमेर.जिले की अरांई पंचायत समिति की प्रधान पारसी देवी, जहाजपुर प्रधान सीता देवी गुर्जर व आसींद की प्रधान देबी भील अपने अधिकारों के बारे में तो अनजान हैं ही, उन्हें पंचायतीराज विभाग के मुखिया पंचायतीराज मंत्री का नाम तक मालूम नहीं है? एक को इसके बारे में जानकारी नहीं। दूसरी बोलती है, पूरा नाम पता नहीं पर शायद कोई मालवीय हैं और तीसरी प्रधान ने पंचायतीराज मंत्री का नाम बताया, राजेंद्र सिंह राठौड़ । ...

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शहर और गांव- एक देश की दो कहानी

देश में मौजूद विषमता की बात करते हुए अकसर कहा जाता है, यहां दो देश बसते हैं, एक भारत तो एक इंडिया। हाल के सालों में इसपर बहसें भी खूब हुई हैं और अब खुद एक सरकारी रिपोर्ट से जान पड़ता है कि अपने देश में “भारत” की सच्चाई कुछ और है, “इंडिया” की कुछ और। एक ऐसे समय में जब शहरी भारत की तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है और यही चलन नीति-निर्माताओं को पसंद भी आ...

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