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सरकारी कागजों में स्लम का अकाल

अगर कोई पूछे कि मुंबई महानगर में झोपड़ बस्तियों को हटाने की दिशा में जो काम हो रहा है, उसका क्या असर पड़ा है तो इस सवाल का एक जवाब ये भी हो सकता है- आने वाले दिनों में झोपड़ बस्तियों की संख्या बढ़ सकती है. मुंबई महानगर का कानून है कि जो बस्ती लोगों के रहने लायक नहीं है, उसे स्लम घोषित किया जाए और वहां बस्ती सुधार की योजनाओं...

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हजारों वर्गफुट में फैला मलबा बना चुनौती

कोरबा. बालको के निर्माणाधीन पॉवर प्लांट की चिमनी गिरने की यह अपने तरह की पहली घटना है। इस बड़ी औद्योगिक दुर्घटना में आपदा प्रबंधन की व्यवस्था की पोल भी खोलकर रख दी है। चिमनी गिरने के बाद संयंत्र परिसर में अफरा-तफरी मच गई। मजदूर अपने साथियों को तलाशते हुए बदहवास थे। यह सही है कि हादसा बड़ा है मगर उसके बाद राहत और आपदा प्रबंधन ने जो व्यवस्था की जानी...

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पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट

खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...

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कोसी का कहर

कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...

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पलायन (माइग्रेशन)

खास बात • किसी प्रांत से उसी प्रांत में और किसी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में पलायन करने वालों की संख्या पिछले एक दशक में ९ करोड़ ८० लाख तक जा पहुंची है। इसमें ६ करोड़ १० लाख लोगों ने ग्रामीण से ग्रामीण इलाकों में और ३ करोड़ ६० लाख लोगों ने गावों से शहरों की ओर पलायन किया। # • पिछले एक दशक को आधार मानकर अगर इस बात की गणना करें कि किसी वासस्थान को छोड़कर कितने लोग दूसरी जगह रहने...

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