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आलू की लगातार गिरती कीमतों ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश के किसानों को किया परेशान

-गांव कनेक्शन, उत्तर प्रदेश का फर्रुखाबाद जिला आलू के उच्च उत्पादन के लिए जाना जाता है। आलू के चिप्स बनाने वाली कई बहुराष्ट्रीय खाद्य कंपनियां यहां से आलू खरीदती हैं और किसानों को आमतौर पर उनकी उपज का उचित मूल्य मिलता है। लेकिन वर्तमान में जिन गांवों में आलू की खेती मुख्य आधार है, वहां मातम छाया हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आलू की कीमत गिर गई है। पिछला साल...

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समाज के वंचित वर्गों के बच्चों के लिए बहुत कठिन है ऑनलाइन शिक्षा का रास्ता!

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से एडटेक कंपनियों द्वारा शारीरिक कक्षाओं के विकल्प के तौर पर प्रचारित ऑनलाइन शिक्षण और शिक्षा, का हमारे देश में एक बड़ा उपभोक्ता आधार बन गया है. हालाँकि, समाज के वचिंत वर्गों में, ऑनलाइन शिक्षा का प्रभाव और फैलाव बहुत कम है. वास्तव में, हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद वर्ग और जाति-विभाजन की गहरी जड़ें डिजिटल शिक्षा तक लोगों की पहुंच को प्रभावित करता...

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नवीनतम पीएलएफएस डेटा, विभिन्न प्रकार के श्रमिकों के बीच अल्प-रोजगार और स्वपोषित रोजगार में अवैतनिक सहायकों पर प्रकाश डालता है

आम तौर पर, अर्थशास्त्री एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में एक विशेष अवधि में बेरोजगारी और काम से संबंधित अनिश्चितता की सीमा का आकलन करने के लिए श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर), श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) जैसे संकेतकों का उल्लेख करते हैं. हालांकि, अन्य संकेतक भी हैं, जो रोजगार की स्थिति, आजीविका सुरक्षा और श्रमिकों की बदत्तर स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते...

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आधिकारिक डेटा 2020 राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान शहरी क्षेत्रों में आजीविका संकट के गहराने की पुष्टि करता है!

हाल ही में जारी किया गया त्रैमासिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) डेटा मोटे तौर पर देशव्यापी लॉकडाउन अवधि के दौरान रोजगार और नौकरियों में गिरावट की पुष्टि करता है, हालांकि विभिन्न सर्वेक्षण-आधारित अध्ययन और शोध पत्र इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पिछले साल लॉकडाउन के बाद के महीनों में कुछ हद तक सुधार हुआ है. पीएलएफएस पर त्रैमासिक बुलेटिन केवल वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस) संदर्भ में...

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COVID-19 की पहली लहर के दौरान ग्रामीण बिहार में अधिकांश परिवारों को आजीविका संकट का सामना करना पड़ा!

मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया में सेंटर फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स एंड सस्टेनेबिलिटी के अर्थशास्त्रियों और नई दिल्ली स्थित मानव विकास संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक सर्वेक्षण आधारित शोध के अनुसार, महामारी की पहली लहर ने पिछले साल बिहार में ग्रामीण श्रमिकों (स्व-रोजगार सहित) की आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव डाला था. अध्ययन के लेखकों द्वारा जारी एक हालिया प्रेसनोट से पता चलता है कि पिछले साल ग्रामीण बिहार में आजीविका...

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