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कर्ज माफी अंतिम उपाय नहीं-- आर. सुकुमार

देश के कई हिस्से इन दिनों कृषि संकट से गुजर रहे हैं।काफी हद तक इसकी वजह खराब मानसून है। ज्यादातर इलाकों में किसान आज भी सालाना बारिश पर निर्भर हैं, लेकिन कम बारिश के चलते साल 2014 और 2015 उनके लिए अच्छे नहीं रहे, हालांकि 2016 में अच्छी बारिश हुई थी। इस संकट की एक वजह कमोडिटी साइकिल (उत्पादों का चक्र) भी है, जिसके कारण खाद्य उत्पादों की वैश्विक कीमतें चक्रानुक्रम...

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किसान मदद के मोहताज क्यों हैं -- रमेश कुमार दुबे

तमिलनाडु के कावेरी बेसिन के सूखा-पीड़ित किसान पिछले तीन हफ्तों से इंसानी खोपड़ियों के साथ दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं ताकि दिल्ली के हुक्मरानों को अपनी आवाज सुना सकें। इनका दावा है कि ये खोपड़ियां उन किसानों की हैं जिन्होंने कर्ज के दुश्चक्र में फंस कर आत्महत्या कर ली या भूख ने जिनकी जान ले ली। एक नई प्रवृत्ति यह है कि यहां के लोग आत्महत्या करने वाले किसानों...

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खैरात बांटती राजनीति का सच -- अनुपम त्रिवेदी

अपने पिछले लेख में मैंने लोकतंत्र के दुरुपयोग और उसके बिगड़ते स्वरूप का उल्लेख किया था. यह भी जिक्र किया था कि कैसे राजनीतिक दल लोकतंत्र के नाम पर अनाचार में संलिप्त रहते हैं. उसी कड़ी में आज जिक्र एक ऐसे मुद्दे का, जिसने न केवल लोकतंत्र को कमजोर किया है, बल्कि हमारी खुद्दारी और स्वाभिमान पर भी गहरी चोट की है. बात है उस खैरात की, जिसे हर राजनीतिक...

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लोक-लुभावन राजनीति के नुकसान - डॉ अनिल प्रकाश जोशी

हमारे देश में पहले और आज की राजनीति में कितना फर्क आ गया है। पहले देश की राजनीति एक बड़ी हद तक मूल्यों पर चलती थी। राजनीतिक दल और मतदाता दोनों ही कहीं न कहीं नैतिकता व आदर्शों का पालन कर राजनीतिक गरिमा बनाए रखते थे। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है। अब राजनीतिक दल चुनावों के समय जिस तरह मतदाताओं को लुभाने के लिए लोक-लुभावन घोषणाएं करते...

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चंद्रशेखरन की सफलता के मायने-- आर. सुकुमार

तकनीकी शिक्षा के मामले में 1980 के दशक का तमिलनाडु अगुवा था। भले ही पठन-पाठन के संदर्भ में वह उतना न हो, मगर माहौल और परिस्थिति के संदर्भ में जरूर था। उस दशक में राज्य सरकार ने निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों को मंजूरी दी थी। हालांकि ऐसा करने वाला एकमात्र राज्य तमिलनाडु नहीं था। लगभग उसी समय कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ने भी अपने दरवाजे निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए...

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