-डाउन टू अर्थ, एक महीना पहले तक धनीराम साहू को नहीं पता था कि वायरस या सोशल डिस्टेंसिंग किस बला का नाम है। साहू छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के शंकरदह में रहते हैं। वह कहते हैं, “अब हर कोई कोरोनावायरस और इससे खुद को महफूज रखने की बात करता दिख रहा है।” दुनियाभर के तमाम विज्ञानियों और एपिडेमियोलॉजिस्ट की तरह साहू को भी इस वायरस के बारे में बहुत जानकारी नहीं...
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मोदी के 20 लाख करोड़ के पैकेज से मर रहे ग़रीब मज़दूरों का कितना भला होगा?
-बीबीसी, आप चाहें तो गिलास को आधा भरा देख सकते हैं और चाहें तो आधा ख़ाली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंगलवार रात का राष्ट्र के नाम संदेश भी ऐसा ही है. आप चाहें तो ये देख सकते हैं कि उन्होंने बीस लाख करोड़ रुपए का पैकेज लाने का एलान कर दिया. हताश, निराश और एक अभूतपूर्व संकट से जूझते देश को एक नया नारा दिया कि इस संकट को कैसे मौक़े में...
More »लॉकडाउन: राष्ट्र की रेल और श्रमिक का शरीर
- द वायर, ‘यह हादसा कतई नहीं…’ अंग्रेज़ी अखबार टेलीग्राफ की यह सुर्खी एक सच्चे दिल से निकली चीख है. रुंधे गले से निकली यह चीख एक अधूरा वाक्य है. वाक्य पूरा यही हो सकता है- ‘यह हादसा कतई नहीं, हत्या है.’ हत्या किसने की? हत्यारा निश्चय ही वह ड्राइवर नहीं है, जो मालगाड़ी की रफ्तार को काबू नहीं कर सकता था जब वह रेलवे लाइन पर सिर टिकाए, गहरी नींद में...
More »जानिए कैसे लॉकडाउन में प्रोसेसिंग से टमाटर और प्याज को बचा रहे हैं ये गाँववाले!
-द बेटर इंडिया, आए दिन बढ़ रहे COVID-19 के मामलों की वजह से देश में लॉकडाउन की अवधि बढ़ती जा रही है। हालांकि, सरकार की पुरजोर कोशिश है कि इस दौरान देशवासियों को जितनी राहत मिल सकती है मिले। लेकिन फिर भी समाज के कुछ ऐसे वर्ग हैं, जिन्हें परेशानी हो रही है। लॉकडाउन के शुरू होते ही दिहाड़ी मजदूरों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के साथ-साथ किसानों के लिए...
More »बिहार सरकार ने मजदूरों को आने से रोका
-इंडिया टूडे, लॉकडाउन की वजह से दुर्गति झेल रहे मजदूर की परेशानी कम होने की जगह बढ़ती जा रही है. हजारों की तादाद में सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों के लिए पैदल निकले मजदूरों को पुलिस और प्रशासन की प्रताड़ना से दो-चार होना पड़ा बल्कि सरकार के हाथों भी वह ठगा महसूस कर रहे हैं. 1 मई को मजदूर दिवस के मौके पर गृहमंत्रालय ने मजदूरों को राज्यों की आपसी सहमति से...
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