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परिचर्चा: विकास की अवधारणा

निमंत्रण                      परिचर्चा: विकास की अवधारणा                                 डॉ. शिवराज सिंह (योजना मंडल) और प्रो. हनुमंत यादव,                                                 चर्चा में- बी.के.मनीष के साथ.   छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच की ’विधानसभा चुनाव जागरूकता कार्यक्रम श्रृंखला” की पहली कड़ी.                       सायं ४ बजे, मंगलवार, २२ अक्टूबर, प्रेस क्लब, रायपुर. धार्मिक ध्रुवीकरण तथा सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को पार कर के अब चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं। जहां राज्य और केंद्र की वर्तमान सरकारें चहुंमुखी विकास विकास के दावे करते नहीं थक रही हैं वहीं...

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नमक सेजुड़े नए सवाल- अनिल चमड़िया

जनसत्ता 11 अक्तूबर, 2013 : कई गंभीर घटनाएं हो रही हैं, लेकिन लोगों का मानस इस तरह का बना दिया गया है कि वे किसी विषय के इतिहास को लेकर तो बोलते हैं, उसके मौजूदा हालात पर कुछ सुनने को तैयार नहीं होते। कई बार लगता है कि सुनने की शारीरिक प्रक्रिया को भी एक खास तरह के ढांचे में ढाल देने में बाजारवादी विचारों को कामयाबी मिली है। तात्कालिक संदर्भ...

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आरटीआइ से पंचायतें मांगें अधिकार

मित्रो,                                                                                                                                                                              आप पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधि हैं. जनता ने आपको इसलिए चुना कि आप पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर पर उनकी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए योजनाएं बनाएं, उनका कार्यान्वयन करें और उन पर नियंत्रण रखें. संविधान के 73वें संशोधन ने आपको वही ताकत दी है, जो अपने क्षेत्र में विधायकों और सांसदों को मिला हुआ है. निचले स्तर पर आप पंचायत सरकार हैं. पंचायत सरकारें सत्ता के लोकतांत्रिक ढांचे की...

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कभी स्वर्ग, आज वीरान!- हरिवंश

वेतन लाखों में हो गये. लेकिन वेतन बढ़ने से वास्तविक उत्पादन या आय पर क्या असर हुआ, इसे जांचने का कोई विश्वसनीय मेकेनिज्म नहीं है. अमेरिका के डेट्रायट शहर में यही हुआ. पेंशन का बोझ बढ़ता गया. रिटायर लोगों की पेंशन, नये नियुक्त लोगों की तनख्वाह से कई गुना अधिक. ऊपर से शहर की सरकार ने बाहर से कर्ज लेना जारी रखा. कर्ज अगर भोग-विलास के लिए लिया जाये, तो दुर्दशा...

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गरीबी रेखा या भुखमरी की रेखा- अनिन्दो बनर्जी

देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करनेवालों के बारे में योजना आयोग द्वारा जारी आंकड़ों की कोई और उपयोगिता हो न हो, यह बदहाली के स्वीकार्य मापदंड नहीं हो सकते. जिस देश में करीब 46 फीसदी बच्चे कुपोषण से प्रभावित हों, जहां करीब 40 प्रतिशत परिवार पूर्णत: भूमिहीन या एक एकड़ से कम जमीन के मालिक हों, जहां 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का गुजारा असंगठित क्षेत्र में...

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