समाज में साहित्य के लिए जगह लगातार कम होती जा रही है। प्राय: ऐसा प्रतीत होता है कि समाज को साहित्य की कोई जरूरत नहीं है। समाज की प्राथमिकता से साहित्य का गायब होना चिंता से अधिक चिंतन का विषय है। साहित्य के नए पाठक बन नहीं रहे हैं और जो पुराने हैं वे धीरे-धीरे विदा हो रहे हैं। हम एक तरह से क्रमश: साहित्य विहीन समाज की ओर बढ़...
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सेलेब्रिटी और न्याय की जद्दोजहद - अद्वैता काला
न्यायिक तंत्र के साथ सलमान खान का अभी हाल में जो पाला पड़ा है, उस पर तमाम टीका-टिप्पणियां हुई हैं। मसलन मशहूर हस्तियां यानी सेलेब्रिटी अगर ऐसे हालात में फंस जाएं तो उसके क्या फायदे-नुकसान हैं। इस पर लोगों की राय भी बहुत ज्यादा बंटी हुई थी। कुछ लोगों का मानना था कि उन्हें जेल में होना चाहिए तो कुछ लोगों की राय में उनके साथ कुछ ज्यादती हुई है...
More »अप्रैल 2018 में मनरेगा मजदूरी का 99% भुगतान लंबित
इस साल देश के कई राज्यों में मनरेगा मजदूरी का नहीं बढना ही सिर्फ एक क्रूर मजाक नहीं है | आंकड़े बता रहे हैं कि पूरे देश में मार्च और अप्रैल माह में मनरेगा के तहत हुए कामों का 85-99% मजदूरी बकाया है | अप्रैल माह में मजदूरी भुगतान हेतु किये गए 99 % फंड ट्रान्सफर आर्डर अभी तक लंबित है और मजदूरों के खाते में पैसा नहीं पहुंचा है...
More »भुखमरी के साए में-- रमेश सर्राफ धमोरा
मानव जाति की मूल आवश्यकताओं की बात करें तो रोटी, कपड़ा और मकान का ही नाम आता है। इनमें रोटी सर्वोपरि है। रोटी यानी भोजन की अनिवार्यता के बीच आज विश्व के लिए शर्मनाक तस्वीर यह है कि वैश्विक आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी भुखमरी का शिकार है। भुखमरी की इस समस्या को भारत के संदर्भ में देखें तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी पर जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया...
More »नये बिहार की चुनौतियां!-- केसी त्यागी
हार उपचुनाव के नतीजे और रामनवमी के बाद के घटनाक्रमों को लेकर मीडिया के एक तबके के साथ कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा बिहार सरकार की आलोचना सुर्खियों में रहीं. इस क्रम में स्थानीय शासन-प्रशासन की तथाकथित विफलता को भी खूब स्थान दिया गया, जिसमें राज्य के कुछ जिलों में हुई सांप्रदायिक झड़पों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुशासन व्यवस्था पर भी सवाल उठाये गये. किसी भी शासनाध्यक्ष के लिए ऐसी...
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