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जमीन का भी राष्ट्रीयकरण हो- शिवदान सिंह

जमीन अधिग्रहण विधेयक जैसे अहम मसले पर मोदी सरकार की दुविधा साफ देखी जा सकती है। गुलामी के प्रतीक 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून की जगह यूपीए सरकार ने जो नया कानून बनाया था, उसे भाजपा का भी समर्थन मिला था। लेकिन सत्ता में आने के बाद वह इसे बदलना चाहती है। पर सवाल है कि क्या विकास को गति देने की राह में भूमि अधिग्रहण कानून सबसे बड़ा रोड़ा...

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भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार: वास्तविक तस्वीर-- अरुण जेटली

सरकार ने 31 दिसंबर 2014 को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनरुद्धार संशोधन कानून, 2013 में उचित मुआवजे के अधिकार और पारदर्शिता के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी किया। आखिरकार इस कानून में संशोधन की क्या जरूरत पड़ी और इन संशोधनों के क्या मायने हैं? इस बात का बार-बार उल्लेख होता रहा है कि भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 पुराना पड़ चुका है और इसमें संशोधन की जरूरत है। 1894...

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भूमि अधिग्रहण : संसदीय समिति से ‘जानबूझकर’ गायब रहे अधिकारी

भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर गठित संसद की संयुक्त समिति में भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम दलों के सदस्यों को हैरानी का सामना करना पड़ा। दरअसल, संसद की संयुक्त समिति की बैठक से कई मंत्रालयों के सचिव गायब रहे। इससे बैठक को टालना पड़ा। अब समिति के लिए 27 जुलाई तक रिपोर्ट देना असंभव हो गया। लिहाजा समिति के अध्यक्ष एस एस आहलूवालिया ने रिपोर्ट जमा करने के लिए तीन अगस्त तक...

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ये तस्वीर न्याय मांग रही है...-- रुचिर गर्ह

रायपुर के औद्योगिक इलाके की इस भयानक दुर्घटना के साथ ही छत्तीसगढ़ के औद्योगिक हादसों में एक काला धब्बा और जुड़ गया है। इस हादसे में तीन गरीब जिंदा जल गए ! इन्हीं में से किसी एक के अवशेष की यह तस्वीर विचलित कर सकती है, लेकिन हम इसे प्रकाशित कर रहे हैं। इसे प्रकाशित करते हुए हमारे जेहन में प्रसिद्ध फोटोग्राफर रघु राय की खींची भोपाल गैस काण्ड का...

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कहां है सुधारों की अगली खेप-- रामचंद्र गुहा

सन 2009 के आम चुनाव के ठीक बाद मैंने बेंगलुरु में एक भाषण सुना, जो नई सरकार के लिए नीतियों के नए रोडमैप पर था। वक्ता थे राकेश मोहन, जो उद्योग व वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ पदों पर रह चुके थे और उस वक्त रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर थे। राकेश मोहन का कहना था कि आर्थिक सुधारों की पहली लहर ने व्यापार को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकाला और...

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