इसे अपनी संस्कृति की विशेषता कहें या परंपरा, हमारे यहा मेले नदियों के तट पर, उनके संगम पर या धर्म स्थानों पर लगते हैं और जहा तक कुंभ का सवाल है, वह तो नदियों के तट पर ही लगते हैं। आस्था के वशीभूत लाखों-करोड़ों लोग आकर उन नदियों में स्नानकर पुण्य अर्जित कर खुद को धन्य समझते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि वे उस नदी के जीवन के बारे में कभी भी नहीं सोचते।...
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पश्चिम बंगाल में गांजे की खेती
कोलकाता। बांग्लादेश सीमा से सटे जिलों में इन दिनों गांजे की खेती खूब फलफूल रही है। दो दिन पहले मुर्शिदाबाद जिले के कुछ इलाकों में लाखों रुपये मूल्य के गांजा के पेड़ों को पुलिस ने नष्ट किया है। यह तो सिर्फ एक जिले की घटना है। इस तरह उत्तर चौबीस परगना, नदिया और उत्तर बंगाल के मालदाह जिले में गांजा और अफीम की खेती खूब जोरों पर होने की बात सामने आयी है। इस संबंध...
More »पर्यावरण की राजनीति और धरती का संकट
खुद मनुष्य ने अपनी भावी पीढ़ियों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया है। दुनिया भर में चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। सवाल ल्कुल साफ है- क्या हम खुद और अपनी आगे की पीढ़ियों को बिगड़ते पर्यावरण के असर से बचा सकते हैं? और जवाब भी उतना ही स्पष्ट- अगर हम अब भी नहीं संभले तो शायद बहुत देर हो जाएगी। चुनौती हर रोज ज्यादा बड़ी होती...
More »कोसी का कहर
कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...
More »वन और पर्यावरण मंत्रालय की नई रिपोर्ट में नया क्या है..
ग्रीन हाऊस गैंसों के उत्सर्जन के सवाल पर कोपेनहेग्न में इस साल के दिसंबर में सम्मेलन होने जा रहा है और इससे ठीक पहले अपने देश में पर्यावरण की दशा को बताने वाली दो रिपोर्टें जारी हुई हैं। ११ अगस्त २००९ के दिन वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने नेशनल स्टेट ऑव द एन्वायर्नमेंट रिपोर्ट जारी की जबकि दूसरी वर्ल्ड इकॉनॉमिक एंड सोशल सर्वे रिपोर्ट है जिसे सेंटर फॉर...
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