संजय सिंह, नई दिल्ली। अपने कार्यकाल के पहले साल में मोदी सरकार ने श्रम सुधारों के कठिन रास्ते पर आगे बढ़ने का साहसिक प्रयास किया है। लेकिन, कामयाबी इंस्पेक्टर राज के मोर्चे पर ज्यादा मिली है। इस दौरान जहां एक तरफ सरकार ने श्रम संबंधी मसलों को लेकर अपना एजेंडा स्पष्ट किया, वहीं विभिन्न पोर्टलों के जरिये श्रम प्रक्रियाओं को सुविधाजनक व पारदर्शी बनाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल...
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राजनीतिक बिसात पर आंबेडकर- कुमार प्रशांत
बिहार का आसन्न चुनाव कितने नये रंग बिखेर रहा है! एक नया परिवार ही जन्म लेने, न लेने के पसोपेश में पड़ा है, तो एक नया आंबेडकर भी पूजा के स्थान पर प्रतिष्ठित किया जा रहा है. यह कितना अजीब है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जिन्होंने कभी भाग नहीं लिया; जो आजादी की लड़ाई में कभी जेल नहीं गये; आजादी की लड़ाई की जगह जिन्होंने वॉयसराय के दरबार की...
More »एनजीओ की नकेल कसना जरूरी - नंटू बनर्जी
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्ट 2010 के तहत कोई 9000 गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के पंजीयन रद्द कर दिए हैं। अब इनमें से कोई भी एनजीओ विदेशी अनुदान हासिल नहीं कर सकेगा। इससे अमेरिका नाहक ही नाराज हो गया है। अगर भारत के गृह मंत्रालय को लगता है कि विदेशी पूंजी से पोषित किन्हीं एनजीओ की गतिविधियों के चलते देश की सामाजिक स्थिति और आर्थिक प्रगति प्रभावित...
More »बाबा साहेब का सपना - सतीश देशपांडे
हमारे समय की विडंबना है कि एक युग-व्यापी समाज चिंतक की भूमिका में डॉ बाबा साहेब आंबेडकर के ‘अच्छे दिन' अब आते लग रहे हैं। उनके एक सौ चौबीसवें जन्मदिन के अवसर पर हम उनकी बढ़ती प्रासंगिकता में यह सांत्वना ढूंढ़ सकते हैं कि हमारे पश्चिम-परस्त, ब्राह्मणवादी बुद्धिजीवी जगत में देर है अंधेर नहीं। आधी सदी की ‘रुकावट' के लिए खेद है, मगर देर-सवेर डॉक्टर साहेब को अपना मुनासिब स्थान...
More »उनके हिस्से की जमीन- नीलांजन मुखोपाध्याय
इतिहास उलट कर देखें, तो जमीन झगड़ा-फसाद का एक बहुत बड़ा कारण रही है। जब जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया अस्तित्व में नहीं आई थी, और रीयल एस्टेट व छोटे प्रॉपर्टी डीलरों द्वारा जमीनों की बिक्री का चोखा धंधा नहीं पनपा था, तब जमीन सांस्कृतिक वस्तु थी और परंपरा से जुड़ी थी। बड़े शहरों में काम करने और होली-दिवाली जैसे त्योहारों पर अपने पैतृक गांवों में जाने वाले असंख्य लोग अब...
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