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स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट: 17 प्रमुख लक्ष्यों को पाने में चूक सकती है सरकार

-डाउन टू अर्थ, भारत ऐसे कम से कम 17 प्रमुख सरकारी लक्ष्यों को पाने की दिशा में पीछे है, जिनकी समय-सीमा 2022 है। एक मार्च को जारी एनुअल स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट के मुताबिक, इस धीमी गति के चलते भारत समय-सीमा में इन लक्ष्यों को हासिल करने से चूक सकता है। यह रिपोर्ट केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने जारी की। रिपोर्ट डाउन टू अर्थ मैगजीन...

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नए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक से पर्यावरण और जनता को नुकसान, कारोबारियों को फायदा

-कारवां, महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में 6 अगस्त 2021 की रात 42 साल के एक किसान की कीटनाशक जहर से मौत हो गई थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, विनोद मसराम चव्हाण अपनी कपास की फसल को घातक गुलाबी बॉलवर्म से बचाने के लिए कीटनाशक नुवाक्रॉन का छिड़काव करते समय उसके संपर्क में आ गए थे. कीटनाशक में मोनोक्रोटोफोस होता है जो एक जहरीला कंपाउंड है. यह अंतरराष्ट्रीय...

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गांव-देहात के हिसाब से इस बजट में क्या है?

-गांव सवेरा, • ‘उर्वरक सब्सिडी’ पर खर्च साल 2021-22 (R.E) में 1,40,122 करोड़ रुपए से घटाकर 2022-23 (B.E.) में 1,05,222 करोड़ रुपए कर दिया गया है. उर्वरक सब्सिडी पर बजटीय आवंटन साल 2021-22 (B.E.) में 79,530 करोड़ रुपए था. 2021-22 में उर्वरक सब्सिडी पर खर्च के बजट अनुमान और संसोधित अनुमान के बीच बड़ा अंतर उर्वरकों की कीमत और इनपुट लागत में वृद्धि के कारण हुआ है. • कुल बजटीय खर्च के अनुपात के रूप में उर्वरक सब्सिडी 2021-22 (B.E.) में 2.28 प्रतिशत थी, जो 2022-23 (B.E.) में मामूली रूप से बढ़कर 2.67 प्रतिशत...

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समावेशी कृषि हो 2022 के लिए विकास का रोडमैप

-रूरल वॉइस, अब देश के नीति निर्माताओं को अभी की जरूरत, वर्तमान संकट का उपाय जैसे शब्दों को नकार कर देश की समस्याओं के लिए स्थायी समाधान तलाशने होंगे। भ्रष्टाचार, निरक्षरता, शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, गरीबी, जलवायु परिवर्तन, घटता भूजल स्तर, वायु प्रदूषण, ठोस अवशेष, महिला सशक्तीकरण, बेरोजगारी, कृषि संकट, बाढ़, सुखाड़, लंबित न्याय, सकल घरेलू उत्पाद आदि मुद्दे आज देश के सामने हैं जिनको प्राथमिकता के आधार पर हल...

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जलवायु संकट पर अमीर देशों और भारत के ताकतवर लोगों के भरोसे रहना बड़ी भूल

-कारवां,  हाल ही में 31 अक्टूबर और 12 नवंबर के बीच ग्लासगो में संपन्न हुई जलवायु परिवर्तन की 26वीं अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में भारत सहित कई विकासशील देशों ने जलवायु न्याय का मुद्दा उठाया. इन देशों की मांग वाजिब है क्योंकि बैंगलुरु के राष्ट्रीय प्रगत अध्ययन संस्थान की डॉक्टर तेजल कानिटकर के अनुसार, विश्व के सबसे धनी देश 1990 में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन के समझौतों पर चर्चा शुरू होने तक जलवायु परिवर्तन...

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