सरकारी दफ्तरों में बैठे हुए हाकिमों को ‘जमीनी हकीकत' जानने में जो समस्या पेश आती है, वह कोई नई नहीं है। इतिहास बताता है कि अशोक से लेकर अकबर तक तमाम सम्राट सच जानने के लिए वेश बदलकर अपने राज्य में घूमा करते थे। आज भी हमारी सरकारों के लिए यह जानना एक बड़ी चुनौती है कि उनकी जन-हितकारी योजनाएं कैसी चल रही हैं? कनिष्ठ अधिकारी अक्सर इन योजनाओं...
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मोदी राज में किसान: डबल आमद या डबल आफत?
खेती-किसानी के मोर्चे पर केंद्र सरकार ने गुजरे चार सालों में क्या कुछ किया है, उसपर आप महज एक घंटे में राय बनाना चाहते हैं तो फिर यह पुस्तक आप ही के लिए है.(पुस्तक आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं) किसानी के मोर्चे पर केंद्र सरकार के हासिल-लाहासिल को परखने के तीन रास्ते हो सकते हैं. एक तो सरकार के वादों को परखना कि वे किस हद तक पूरे हैं. दूसरे, सरकार के दावों...
More »प्रदूषण की राजधानी-- शशिशेखर
इस साल की शुरुआत में जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रॉन बीजिंग पहुंचे, तो साफ नीला आसमान देखकर उनके मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा- मैंने ऐसा खूबसूरत बीजिंग पहले कभी नहीं देखा था। मैक्रॉन सही कह रहे थे। दस साल पहले इस शहर की आबोहवा इतनी खराब थी कि सूरज सिर्फ एक धुंधले पिंड के तौर पर दिखाई पड़ता था। याद आया, 2008 में जब मैं पहली बार बीजिंग...
More »राजनीति और चुनाव पर कितना असर डालती है फ़ेक न्यूज़
संभव है कि आपको भी कभी ऐसा व्हाट्सएप्प मैसेज मिला हो कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज को दुनिया का सबसे बेहतरीन ध्वज घोषित किया जा चुका है. या भारत की करेंसी को यूनेस्को ने सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है या आपका धर्म ख़तरे में है और उसे बचाने की ज़रूरत है. अक्सर इस तरह के मैसेज मिलने पर हम उन्हें बिना जांचे परखे आगे फ़ॉर्वर्ड कर देते हैं और जाने-अनजाने फ़ेक न्यूज़...
More »किसान आंदोलन का नया स्वरूप- मणीन्द्र नाथ ठाकुर
किसानों के प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि खेती किसानी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यह तो तय है कि जैसे-जैसे उत्पादन में उद्योग धंधे और पूंजी का महत्व बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे किसानों की हालत बिगड़ती जायेगी. दुनियाभर के पूंजीवादी देशों को देखकर लगता है कि बिना सरकारी सहायता के किसानों की हालत अच्छी नहीं हो सकती है. भारत में पूंजीवाद के बढ़ते कदम...
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