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संपूर्ण सत्याग्रह का अर्थ- श्री भगवान सिंह

जनसत्ता 2 अक्टुबर, 2012: महात्मा गांधी ने दुनिया को कोई नया वाद या सिद्धांत देने का दावा नहीं किया। उन्होंने तो अपने आचरण से वह मार्ग दिखाया जिस पर चल कर समस्त प्राणियों की हित-साधना की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने कहा कि ‘मेरा जीवन ही संदेश है।’ तब प्रश्न यह आता है कि इस संदेश या मार्ग को किन शब्दों के सहारे समझा जाए? जहां तक मैंने समझा है,...

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पर्यावरण भी हो विकास का मानक- अनिल पी जोशी

हमने विकास का सबसे बड़ा मापदंड सकल घरेलू उत्पाद की दर को माना है। किसी भी देश की प्रगति उसकी जीडीपी के आधार पर तय की जाती है। इसमें उद्योग, सुविधाएं, रियल इस्टेट बिजनेस, सेवाएं आदि मुख्य रूप से आते हैं। सही मायने में खेती को ही जीडीपी या उत्पादन की श्रेणी में आना चाहिए, क्योंकि अन्य उत्पाद हमारी सुविधाओं से जुड़े हैं, न कि आवश्यकताओं से। विकास की मौजूदा अवधारणा...

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गंगा के गुनहगार- स्वामी आनंदस्वरुप

जनसत्ता 12 जुलाई, 2012: गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं...

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आदिवासियों का इतिहास सहेजने में जुटा योद्धा

विनम्र व सहज अंदाज में बात करने वाले 69 वर्षीय बुलू इमाम अपनी उपलब्धियों का श्रेय खुद नहीं लेते. बल्कि इसे सबों के प्रयास का फल बताते हैं. इमाम साहब बातचीत के दौरान सहज ही झारखंड गौरव स्वर्गीय रामदयाल मुंडा को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने उनसे पहले से काम शुरू किया था और उनका योगदान काफी बड़ा है. बातचीत में विनम्रता के बावजूद भरपूर तार्किकता उनके व्यक्तित्व को...

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ऐसा भविष्य जो हम नहीं चाहते- वंदना शिवा

राजील का शहर रियो डे जेनेरियो यू टर्न के लिए मशहूर है। रियो +20 सम्मेलन ने भी इसी का अनुकरण किया है, जो धरती के जीवन को बचाए रखने की मानवीय जिम्मेदारी से पलटने का सबसे बड़ा उदाहरण था। बीस वर्ष पहले पृथ्वी सम्मेलन में जैव-विविधता के संरक्षण एवं विनाशकारी जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए कानूनी रूप से एक बाध्यकारी समझौते पर दस्तखत किए गए थे। जैव-विविधता पर सम्मेलन और...

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