संयुक्त राष्ट्र ने एक बार फिर बढ़ते वैश्विक तापमान और उसके संभावित असर को लेकर आगाह किया है। लेकिन इस मसले पर अलग-अलग समय पर हुए वैश्विक सम्मेलनों के अलावा संयुक्त राष्ट्र के स्तर से जितने भी प्रस्ताव पेश किए गए, उनका हासिल किसी से छिपा नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की आइपीसीसी यानी जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति की बैठक पेरू के लीमा शहर में अगले महीने होने वाली है,...
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सस्ते कर्ज के दम पर दुनिया में दबंगई - मोहन गुरुस्वामी
कल्पना करें कि आप किसी द्वीप पर रह रहे हैं और एक ऐसे छोटे-से समूह का हिस्सा है, जिसके हर सदस्य को कोई खास जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस सिस्टम में कोई कपड़े बनाता है, कोई जूते तो कोई बर्तन। कोई अनाज उगाता है तो कोई अन्य वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के लिए नोट छापता है। जूते बनाने वाला पैसे लेकर जूते बेचता है और उन पैसों से अपना...
More »बचत दर कम हुई तो मंदी का बढ़ेगा खतरा - जयंतीलाल भंडारी
अर्थ विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी के जोखिम से बचाने के लिए राष्ट्रीय बचत दर में सुधार करना होगा। यह माना जाता है कि 2008 की वैश्विक मंदी का भारत पर कम असर होने के पीछे भारतीयों की घरेलू बचत महत्वपूर्ण कारण थी। वैसे वित्त मंत्रालय ने भी संकेत दिए हैं कि सरकार घरेलू बचत बढ़ाने के लिए कुछ छोटी नई बचत योजनाएं पेश करेगी।...
More »चीनी पर किसानों का पहला हक- वी एम सिंह
उत्तर प्रदेश में गन्ना सबसे बड़ी नकदी फसल है। इससे सीधे तौर पर 50 लाख किसान और उन पर आश्रित करीब दो करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। मैं पिछले 20 वर्षों से गन्ना किसानों के हक में चीनी मिल मालिकों और प्रदेश व केंद्र सरकारों के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ रहा हूं। इस दौरान किसानों के पक्ष में अदालत से बहुत सारे ऐसे अहम फैसले हुए, जिनका तात्कालिक और दूरगामी असर...
More »बड़े सवालों से मुंह छुपाता वाम- उर्मिलेश
चुनावी विफलताओं से उपजी हताशा और अपनी निष्क्रियता के चलते काफी लंबे समय से देश के पारंपरिक वामपंथी दल राष्ट्रीय-चर्चा से लगभग बाहर हैं. इधर, अचानक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में महासचिव प्रकाश करात और पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी के पक्ष-विपक्ष की दलबंदी के चलते वाम-राजनीति की एक खास बहस सामने आयी है. यह प्रमुखत: गंठबंधन की राजनीति को लेकर है. लेकिन इस बहस में वे सवाल कहीं नहीं...
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