उत्तराखंड जैसी आपदा से सहारनपुर कोई सबक लेने को तैयार नहीं. यहां प्रभावशाली लोगों की छत्रछाया में खुलेआम अवैध खनन का खतरनाक खेल खेला जा रहा है. राहुल कोटियाल की रिपोर्ट. उत्तराखंड में आई आपदा से हुए नुकसान का आकलन अब भी जारी है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस हादसे में मरने वालों की संख्या लगभग एक हजार के आस-पास है. लेकिन स्थानीय नागरिकों और इस हादसे से बचकर आए...
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आपदा का खोखला प्रबंधन!
उत्तराखंड में प्रकृति की विनाशलीला शायद कम हो सकती थी, अगर समय रहते इससे निबटने के लिए जरूरी इंतजाम कर लिये गये होते. लेकिन सीएजी की रिपोर्टो और नागरिक समाज द्वारा दी जानेवाली चेतावनियों के बावजूद भी सरकार नहीं चेती. कैसे काम करता है हमारा आपदा प्रबंधन तंत्र, आपदाओं का सफलतापूर्वक सामना करने में क्यों चूक जाते हैं हम, बता रहा है नॉलेज.. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि हमलोग...
More »सूचना अधिकार की नजर- कनक तिवारी
जनसत्ता 17 जून, 2013: केंद्रीय सूचना आयोग के ताजा निर्णय के कारण राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गई है। आयोग का फैसला राजनीतिक पार्टियों की पीठ पर कोड़ा मारता दिखा, लेकिन उसे दलों ने पेट पर लात मारने की शक्ल में माना और अपनी जगहंसाई कराई। आयोग के सामने प्रश्न था कि क्या सूचनाधिकार अधिनियम की धारा 2 (ज) के अनुसार राजनीतिक दलों को लोक प्राधिकारी (पब्लिक अथॉरिटी) माना जा...
More »पारदर्शिता का पैमाना और पार्टियां- शीतला सिंह
जनसत्ता 11 जून, 2013: केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने एक फैसले में राजनीतिक दलों को सूचना आयोग कानून के तहत जवाबदेह माना है। आयोग की पूर्णपीठ ने राजनीतिक दलों का यह तर्क नहीं स्वीकार किया कि वे सरकारी सहायता से चलने, उनसे अनुदान प्राप्त करने वाले संगठन नहीं हैं इसलिए वे इस कानून से मुक्त हैं। केंद्रीय सूचना आयोग का मानना है कि वे केंद्र सरकार की ओर से परोक्ष...
More »अर्थशास्त्र की ऊंची मीनार से कुपोषण मिटाने की यह कवायद....
भारतीयों को विवाद-प्रिय माना जाता है और हमारी यह विवादप्रियता एक बार फिर से उठान पर है ! गरीबी-रेखा और गरीबों की तादाद के बारे में लंबे समय तक वाक्युद्ध में उलझे रहने के बाद, प्रसिद्ध अनिवासी भारतीय(एनआरआई) अर्थशास्त्रियों ने एक बार फिर से विवाद छेड़ा है कि भारत में कुपोषण का विस्तार कितना है। पहले योजना आयोग ने गरीबों की संख्या को कागजी तौर पर घटाने की कोशिश की...
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