शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को लेकर एक स्वाभाविक आकर्षण है क्योंकि यह कृषि जैसे मुश्किल व्यवसाय को सरलता से प्रकट करता है। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि में जोखिम कम होता है और पूंजी की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है। इसे विदर्भ के किसान नेता सुभाष पालेकर द्वारा गढ़ा गया है जिन्हें 2016 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को वैसा ही स्थान मिला...
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चुनाव चर्चा से नदारद पुलिस सुधार- विभूति नारायण राय
आगामी आम चुनाव को लेकर सभी प्रमुख दलों ने अपने-अपने घोषणापत्र जारी कर दिए हैं और इन सभी में एक समान अनुपस्थिति आपका ध्यान आकर्षित कर सकती है। किसी भी दल ने पुलिस सुधारों पर एक भी पंक्ति लिखने की जरूरत नहीं समझी। पहले की ही तरह इस बार भी किसी को यह जरूरी नहीं लगा कि जिस संस्था से जनता का रोजमर्रा की जिंदगी में सबसे ज्यादा वास्ता पड़ता...
More »समस्या की अनदेखी करते समाधान-- हिमांशु
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने कृषि संकट को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है। इस चुनावी जीत के निश्चय ही कई कारक थे, लेकिन खेतिहरों की दुश्वारियां इन सबमें प्रमुख थीं। यह माना जाता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कृषि संकट को लेकर उदासीन रही है, बल्कि कुछ हद तक उसने इसे बढ़ाया ही है, लेकिन वास्तव में इस...
More »प्राथमिकता नहीं है पर्यावरण-- ज्ञानेन्द्र रावत
पर्यावरण क्षरण का प्रश्न आज समूचे विश्व के लिए गंभीर चिंता का विषय है. कई रिपोर्टों, वैज्ञानिक अध्ययनों और शोधों ने रेखांकित किया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उपजे खराब मौसम से प्रलयंकारी घटनाएं बढ़ेंगी. तेजी से बढ़ते तापमान के चलते गर्मी में लोगों की मौत का सिलसिला बढ़ेगा. ग्लेशियरों का पिघलना तेज होगा, जिससे नदियों का जलस्तर बढ़ेगा. ऐसे में बाढ़ की विभीषिका का सामना करना आसान नहीं...
More »क्या कभी उनका सही आकलन होगा-- हरजिंदर
हम आज उनकी 129वीं जयंती मना रहे हैं, और जब उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा था, उसे भी आधी सदी से ज्यादा का समय बीत चुका है। लेकिन इस लंबे दौर में देश के पहले प्रधानमंत्री और महात्मा गांधी के बाद उस दौर के निस्संदेह सबसे लोकप्रिय नेता जवाहरलाल नेहरू का शायद ही कभी ईमानदार विश्लेषण सामने आया हो। शुरू के दौर में तो शायद वह आ भी नहीं...
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