मुझे क्रिकेट खेलने के दौरान पीठ में चोट लग गई। डॉक्टर ने कहा कि अब शेष जीवन बिस्तर पर बिताना पड़ेगा। किसी ने योग करने की सलाह दी। मेरे दादाजी योगासन करते थे। उनसे मैंने सीखा और बिल्कुल ठीक हो गया। फिर 1985 में धीरेंद्र ब्रह्मचारीजी के आश्रम में योग सीखने गया। वहां 10 हजार युवक आए थे, जिनमें से 50 लोगों का चयन हुआ, उनमें मैं भी था। वहां...
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आज भी मुख्यधारा से कटे हैं सरयू के लोग, तबीयत हुई खराब, तो बचना मुश्किल
इस इलाके में रहनेवाले लोगों के बेटे-बेटियों के लिए रिश्ते नहीं आते. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा था, चार माह में यहां दिखेगा बदलाव, लेकिन हालात यह है कि यहां जीवन काटना भी मुश्किल है. फिर भी लोग यहां बसर कर रहे हैं इस उम्मीद में कि कभी तो उनके भी दिन बहुरेंगे. ।। सरयू से लौट कर जीवेश ।। चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा लगभग दो...
More »हमारे राष्ट्रवाद की अग्निपरीक्षा- हरीश खरे
जार्ज आर्वेल और उनके 1946 के लेख ‘राजनीति और अंग्रेजी भाषा' का स्मरण करिए। स्मरण करिए राजनीतिक संवाद में भाषा के प्रयोग के बारे में उनकी चेतावनी को : ‘राजनीतिक भाषा की रचना झूठ को सच जैसा और हत्या को आदरणीय कृत्य दिखाने, और कोरी हवाबाजी को वास्तविकता का जामा पहनाने के लिए की जाती है।' आर्वेल को यह समझने के लिए याद करने की जरूरत है कि जेएनयू प्रकरण...
More »वक्त के पन्नों पर जो दर्ज कर गये अपनी अमिट छाप
नियम यह है विधाता का / सभी आकर चले जाते / मगर कुछ लोग ऐसे हैं / जो जाकर भी नहीं जाते। न सब धनवान होते हैं / न सब भगवान होते हैं/ दयालु, लोकप्रिय, सतपाल / भले इनसान होते हैं।। ... और ऐसा कोई इनसान जब वक्त के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ कर हमारे बीच से विदा होता है, तो यह हम सबका साझा फर्ज बनता...
More »नेता, नायक या एक सियासी प्रतीक? - गोपालकृष्ण गांधी
हम एक व्यक्तिपूजक देश हैं। धर्म, राजनीति, कला, हर क्षेत्र में हमने अपने-अपने व्यक्ति-रूपक रच डाले हैं। हम हमेशा खुद को विराट छवियों से घिरे रखना पसंद करते हैं। हमारे कैलेंडर पर लाल स्याही से अंकित वे तारीखें सभी का ध्यान खींचती हैं, जिन पर पर्व-त्योहार या किसी महापुरुष की जयंती या पुण्यतिथि अंकित होते हैं। ऐसा लगता है जैसे हमारे पास इसके लिए समय और संसाधनों की कोई कमी...
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