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पूंजीवाद का प्रपंच- सिद्धार्थ वरदराजन

नरेंद्र मोदी आखिर किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, और भारतीय राजनीति में उनके उदय के क्या मायने हैं? 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों का बोझ अब भी उनके कंधों पर है। ऐसे में, सांप्रदायिक राजनीति के ऐतिहासिक उभार के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री का राष्‍ट्रीय पटल पर उदय होते देखना खासा दिलचस्प रहेगा। संघ परिवार के वफादार और हिंदू मध्य वर्ग का एक बड़ा हिस्सा आज अगर उनका भक्त बना है,...

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पानी के सवाल से क्यों बचते हैं राजनीतिक दल- विनीत नारायण

चुनाव का बिगुल बजते ही राजनीतिक दल अब इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि जनता के सामने वायदे क्या करें? यह पहली बार हो रहा है कि विपक्षी दलों को भी कुछ नया नहीं सूझ रहा है। दरअसल हाल ही में बड़े वायदे के साथ दिल्ली में सत्ता में आई केजरीवाल सरकार की जिस तरह की फजीहत हुई, उससे तमाम विपक्षी दलों के सामने चुनौती खड़ी हो गई...

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जंगल के असल दावेदार- विनय सुल्तान

जनसत्ता 19 मार्च, 2014 : पिछले साल की दो घटनाएं इस देश में जल, जंगल और जमीन की तमाम लड़ाइयों पर लंबा और गहरा असर छोड़ेंगी। पहली घटना दिल्ली से दो हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नियमगिरि की है। यहां ग्रामसभाओं ने एक सुर में अपनी जमीन ‘वेदांता’ के हवाले करने से इनकार कर दिया। इसके बाद वेदांता कंपनी को नियमगिरि छोड़ना पड़ा। नियमगिरि जल, जंगल और जमीन की...

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नेफेड से फसल खरीद बढ़ाने में जुटी सरकार

कई फसलों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे गिरने से चुनावी साल में सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस साल रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन की उम्मीद है, लेकिन फसलों की खरीद को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। किसानों के गुस्से से बचने के लिए केंद्र ने सरकारी एजेंसियों से खरीद बढ़ाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इसके लिए प्राइस सपोर्ट स्कीम के तहत नेफेड और केंद्रीय भंडारण...

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घरेलू कामगार: अर्थव्यवस्था का अंधेरा कोना- जैनेन्द्र कुमार

राजधानी दिल्ली में बीते दिनों एक सांसद और उसकी पत्नी पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने घरेलू कामगार को मौत के घाट उतार दिया है. यही नहीं, कुछ पिछड़े राज्यों से देश की राजधानी में आकर घरेलू कामकाज करनेवाली महिलाओं पर अत्याचार की कहानियों से तो हम आये दिन दो-चार हो रहे हैं. क्यों होती हैं ऐसी घटनाएं, देश में घरेलू कामगारों के लिए किस तरह का है माहौल, क्या...

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