जनसत्ता 30 नवंबर, 2013 : सियासत का हद से ज्यादा हस्तक्षेप किस तरह एक संगठित उद्योग को तबाही के कगार पर ला खड़ा करता है, गन्ना उद्योग इसकी मिसाल है। कुछ समय पहले सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस चुके मुजफ्फरनगर-शामली इलाके के लोगों को अब गन्ने के दाम की फिक्र सता रही है। आमतौर पर उत्तर प्रदेश में सरकार अगस्त-सितंबर में मिल मालिकों और किसानों से बातचीत करके आरक्षी क्षेत्र...
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झारखंड की अखंड लूट-विनोद कुमार
जनसत्ता 15 नवंबर, 2013 : तेरह साल पहले झारखंड राज्य का गठन हुआ था। झारखंड आंदोलन की काट में वनांचल आंदोलन खड़ा करने वाली भाजपा ने झारखंड राज्य का गठन क्यों किया, इसको लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अविभाजित बिहार की सत्ता पर काबिज होने की कोशिशों में विफल होने के बाद भाजपा ने अपने प्रभाव वाले इलाके की सत्ता पर काबिज होने की मंशा...
More »आदिवासी विकास के दो चेहरे- अरुण कुमार त्रिपाठी
जनसत्ता 9 नवंबर, 2013 : देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से चार राज्य ऐसे हैं जिनमें आदिवासियों की खासी आबादी निवास करती है, यह बात हम राहुल बनाम मोदी की बहस में भूल जा रहे हैं। संयोग से ये चुनाव ऐसे अवसर पर हो रहे हैं जब आदिवासियों के विकास और उनके बारे में सरकार की नई नीति को लेकर बहस उठ...
More »400 करोड़ के केले के पौधे बरबाद
पटना: तेज हवा, बारिश और बाढ़ ने लगभग 400 करोड़ रुपये के केले के पौधों को नुकसान पहुंचा दिया. छठ पर्व में केला बेच कर लाभ कमाने की उम्मीद कर रहे किसानों को जबरदस्त आर्थिक क्षति हो गयी. छठव्रतियों को केले की अधिक कीमत चुकानी तय है. इतना ही नहीं, बचे गये केले के पौधों को विल्ट बीमारी का खतरा उत्पत्र हो गया है.प्रति हेक्टेयर केले की खेती से किसानों को तीन से साढ़े...
More »आज के संदर्भ में ग्राम-स्वराज- भारत डोगरा
जनसत्ता 2 अक्तूबर, 2013 : गांधीजी ने ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। लेकिन आजादी मिलने के बाद जो विकास नीति अपनाई गई, उसमें इस सपने के लिए कोई जगह नहीं थी। इसीलिए ग्रामीण इलाकों से शहरों की तरफ पलायन हमारे नीति नियंताओं को कभी चुभा नहीं। सकल राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र की घटती हिस्सेदारी भी उन्हें चिंतित नहीं करती। भारत के गांवों में आजादी के बाद कैसा बदलाव हुआ? इतने...
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