वर्तमान राजनीति में सभी असहाय-से लगते हैं। सबसे पीड़ित तो जनता ही है, जिसकी हर बार चुनाव में फेरबदल करने की कोशिश लगभग बेकार-सी हो जाती है, क्योंकि वही ढाक के तीन पात। राजनेता भी खुश-खुश से नहीं दिखते, क्योंकि अब चुनाव के बाद जो भी जनादेश आता है, वह आधा-अधूरा सा रहता है। फिर जोड़-तोड़ का नया खेल शुरू हो जाता है। मगर बात सत्ता की है, किसी न किसी...
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संविधान लागू कीजिए गांव बन जायेंगे गणराज्य- राहुल सिंह
हमारा संविधान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गांव को स्वावलंबी व उन्हें एक स्वायत्त शासन इकाई बनाने के सपने के अनुरूप है. हमारे गांव ऐसे हों, जो अपने फैसले खुद लें और अपनी जरूरत की अधिक से अधिक चीजों का उत्पादन खुद करें. संविधान में ग्राम पंचायत को एक स्वायत्त शासन इकाई के रूप में स्थापित करने के लिए विधानमंडल को सभी जरूरी उपाय करने का कहा गया है. भारत के...
More »खेती हुई फायदेमंद, अंधविश्वास से उठा विश्वास तो संवरने लगा पुनगी
रांची जिला के मांडर प्रखंड की कंजिया पंचायत का एक गांव है - पुनगी. यह गांव आदिवासी बहुल है. एक समय था जब इस गांव की जमीनें सूखी और बंजर हुआ करती थीं. ग्रामीणों को किसी प्रकार की सुविधाएं नहीं थी. ग्रामीण स्वयं को असहाय महसूस करते थे. रोजी रोटी कमाने के लिए ज्यादातर लोग पलायन कर जाते थे. बाहर के राज्यों में ईंट भट्टों, भवन निर्माण या किसी असंगठित क्षेत्र...
More »बिहार : इलाज बना धंधा, बीमारी की आड़ में लाखों की कमाई
इलाज अब धंधा बन गया है. और इस धंधे को चलाने का सबसे बेहतर जरिया नर्सिग होम. लिहाजा, धड़ाधड़ खुल रहे नर्सिग होम का मकसद बेहतर मेडिकल सुविधा देना नहीं, बल्कि धन अजिर्त करना रह गया है. पैसा बनाने की भूख ने इस पेशे को विकृति की हद तक पहुंचा दिया है. सांसत में पड़ी मरीज की जान की कीमत ऐसे नर्सिग होम में खूब वसूल की जाती है. बाजार...
More »शहरी इलाकों में आर्थिक असमानता बनी चुनौती- जयंतीलाल भंडारी
देश के शहरों में अमीरी और गरीबी के बीच असमानता के उच्चतम स्तर ने इन दिनों एक बड़ी बहस का रूप ले लिया है। योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2011-12 में शहरी क्षेत्रों में अमीरों और गरीबों के बीच में आर्थिक असमानता अब तक के सर्वोच्च स्तर पर रहा। खासतौर से देश के 10 राज्यों- दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, केरल और असम...
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