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बिना मांगे नहीं मिलेगा अधिकार : महुआ मांजी

महुआ मांजी देश में एक साहित्यकार के रूप में जानी-पहचानी जाती हैं. इन्होंने अपनी लेखनी से न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी शोहरत हासिल की है. गत वर्ष नवंबर महीने में इन्हें राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष का पदभार सौंपा गया. पदभार ग्रहण करते ही इनकी सक्रियता नजर आने लगी. महिला हित की रक्षा के लिए इन्होंने कई स्तर पर प्रयास शुरू कर दिया. साथ ही इसके लिए इन्होंने...

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घरेलू कामगार: अर्थव्यवस्था का अंधेरा कोना- जैनेन्द्र कुमार

राजधानी दिल्ली में बीते दिनों एक सांसद और उसकी पत्नी पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने घरेलू कामगार को मौत के घाट उतार दिया है. यही नहीं, कुछ पिछड़े राज्यों से देश की राजधानी में आकर घरेलू कामकाज करनेवाली महिलाओं पर अत्याचार की कहानियों से तो हम आये दिन दो-चार हो रहे हैं. क्यों होती हैं ऐसी घटनाएं, देश में घरेलू कामगारों के लिए किस तरह का है माहौल, क्या...

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संविधान ने दी गांव के आम लोगों को बड़ी ताकत

देश में हाल के दिनों में गणतंत्र दिवस को लेकर लोगों के मन में एक अलग तरह का दुराव पैदा हो गया है. लोगों को लगता है कि गणतंत्र दिवस मनाना बेकार बात है, झंडा फहराने और परेड करने से क्या फर्क पड़ता है. मगर पिछले दिनों एक दलित महिला विचारक ने कहा कि देश के सभी वंचितों को गणतंत्र दिवस जरूर मनाना चाहिये, क्योंकि इस देश के लोगों को आजादी...

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आधी आबादी की राजनीतिक हिस्सेदारी- अरविन्द मोहन

चुनाव आते ही अगर सभी दलों और सचेत लोगों को महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व का मसला याद आने लगता है, तो यह महिलाओं के प्रति उनके अनुराग या देश में महिलावादी आंदोलन का जोर बढ़ने का नतीजा नहीं है. अभी तक महिलाओं का अपना आंदोलन शहरों को छोड़ कर कहीं नहीं गया है. असल में इसका कारण हाल के चुनावों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी है. बीते दो-ढाई दशक में अगर...

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तेलंगाना की तस्वीर- विनय सुल्तान

जनसत्ता 16 नवंबर, 2013 :  तेलंगाना की सात दिन की यात्रा से पहले मेरे लिए तेलंगाना का मतलब था आंदोलनकारी छात्र, लाठीचार्ज, आगजनी, आत्मदाह, रवि नारायण रेड्डी और नक्सलबाड़ी आंदोलन। संसद के शीतकालीन सत्र में तेलंगाना के दस जिलों की साढ़े तीन करोड़ आबादी का मुस्तकबिल लिखा जाना है। मेरे लिए यह सबसे सुनहरा मौका था वहां के लोगों के अनुभवों और उम्मीदों को समझने का। पृथक राज्यों की मांग के पीछे...

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