कहा जाता है कि विकास केवल स्वतंत्र और पारदर्शी माहौल में ही संभव है। शैक्षिक और अकादमिक जगत के लिए भी यह सच है। शैक्षिक जगत में स्वतंत्रता और पारदर्शिता को केवल तभी कायम रखा जा सकता है, जब महत्वपूर्ण पदों पर चयन और नियुक्तियों में केवल और केवल योग्यता का खयाल रखा जाए और किसी तरह का कोई पक्षपात न किया जाए। वास्तव में गुणवत्ता के मानदंड शैक्षिक प्रक्रिया...
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वैश्विक संकट से लड़ने की रणनीति- भरत झुनझुनवाला
पिछले माह में विश्व अर्थव्यवस्था की तसवीर बदल गयी है. पहले ग्रीस (यूनान) का संकट आया. ग्रीस ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिये डेढ़ अरब डॉलर के ऋण का रिपेमेंट नहीं किया. आनेवाले समय में लगभग दस अरब डॉलर के ऋण का रिपेमेंट ड्यू होने को है, जिसका पेमेंट भी वह देश नहीं कर पायेगा. फिलहाल ग्रीस तथा यूरोपीय यूनियन के बीच समझौता हो गया है. यह समझौता टिकाउ नहीं होगा,...
More »जवाबदेही से बच नहीं सकते राजनीतिक दल - जगदीप एस. छोकर
पिछले दिनों इसी पृष्ठ पर 'दलों की निजता और आरटीआई" शीर्षक से प्रकाशित लेख पढ़ने से ऐसा लगता है कि लेखक राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में लाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन लेख में निम्नलिखित वाक्य भी पढ़ने को मिलते हैं - 'जवाबदेही और पारदर्शिता जनतंत्र के मूल आधार हैं; धन संग्रह की पारदर्शिता अनुचित मांग नहीं है; बेशक दल संचालन को भी...
More »कितना काला है काला धन?- प्रीतीश नंदी
आखिरकार कोई तो बुद्धिमानी से बोला। अब तक तो हमने काले धन को लेकर हर किसी को आक्रोश व्यक्त करते हुए ही देखा, लेकिन किसी ने व्यावहारिक समाधान नहीं सुझाया। बोफोर्स घोटाले से इसकी शुरुआत हुई थी और उसके कारण राजीव सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। फिर तो हर किसी को यह समझ में आ गया कि काला धन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की प्रतिष्ठा को खत्म करने का एकदम...
More »कहां है सुधारों की अगली खेप-- रामचंद्र गुहा
सन 2009 के आम चुनाव के ठीक बाद मैंने बेंगलुरु में एक भाषण सुना, जो नई सरकार के लिए नीतियों के नए रोडमैप पर था। वक्ता थे राकेश मोहन, जो उद्योग व वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ पदों पर रह चुके थे और उस वक्त रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर थे। राकेश मोहन का कहना था कि आर्थिक सुधारों की पहली लहर ने व्यापार को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकाला और...
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