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सुधार से उपजी चुनौतियां

यथास्थिति बनाए रखने वाली मौद्रिक नीति की घोषणा को एक सप्ताह भी नहीं बीता है कि विश्लेषक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा दिसंबर से पहले सख्त कार्रवाई का अनुमान जताने लगे हैं। एक वाजिब सवाल यह है कि क्या अगले दो महीनों के दौरान नाटकीय रूप से ऐसा बदलाव आएगा कि हालात बेहतर हो जाएं। इसका जवाब किसी मौद्रिक प्रतिक्रिया के सही समय से निर्धारित होगा। फिलहाल ज्यादातर लोग अनुमान लगा रहे...

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भुखमरी और कुपोषण के हालात बयान करते दो और रिपोर्ट

दो जून भर पेट भोजन ना जुटा पाने वालों की तादाद दुनिया में इस साल एक अरब २० लाख तक पहुंच गई है और ऐसा हुआ है विश्वव्यापी आर्थिक मंदी और वित्तीय संकट(२००७-०८) के साथ-साथ साल २००७-०८ में व्यापे आहार और ईंधन के विश्वव्यापी संकट के मिले जुले प्रभावों के कारण। यह खुलासा किया है संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की हालिया रिपोर्ट ने । द...

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ग्राम न्यायालय- कितने दिन- कितने कोस?

सुप्रीम कोर्ट का हालिया बयान कहता है-देश की अदालतों में कुल ढाई करोड़ से ज्यादा मुकदमे निपटारे की बाट जोह रहे हैं। विधि मंत्रालय का सुझाव है कि देश में अदालतों की तादाद मौजूदा संख्या के पांच गुनी बढ़ायी जानी चाहिए। मगर सरकार ने ग्राम न्यायालय अधिनियम में प्रावधान किया है कि महज ५००० ग्राम न्यायालय स्थापित किए जाएंगे- यानी अदालतों की संख्या में महज ५० फीसदी का इजाफा होगा...

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कोसी का कहर

कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...

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भूख का बढ़ता भूगोल

भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...

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