बैंकों से किसानों को मिलनेवाले कृषि ऋण को लेकर कई भ्रांतियां हैं. बड़ी शिकायत यह रहती है कि ढेर सारे दस्तावेज बैंक में जमा करने पड़ते हैं. एक सेमिनार में एक बड़े उद्योगपति ने यह बात सबके सामने रखी. मैंने प्रतिकार किया कि कोई भी ऋण बिना न्यूनतम दस्तावेज के नहीं दिया जा सकता. कृषि ऋण के दस्तावेजों को सरल और मानक बनाने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक ने वर्ष...
More »SEARCH RESULT
बुंदेलखंड: न चारा, न पानी, जानवर बेच रहे हैं किसान
सूखे से झुलस रहे बुंदेलखंड में स्थितियां और भयावह हो चली हैं। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो वक्त की रोटी के लिए ग्रामीण अपने पशु बेच रहे हैं। पशुओं के खरीदार नहीं मिल रहे हैं, चारे पानी का जबरदस्त संकट है लिहाजा पशुपालक भारी मन से औने-पौने दामों में इनसे पीछा छुड़ा रहे हैं। कई गांव ऐसे भी हैं जहां के लोगों ने अपने...
More »इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट--- 'वंचित भारत की एक तस्वीर'
क्या कभी आपने सोचा कि देश के शहरों में झुग्गी बस्तियां कितनी हैं, उनमें रहने वाले कौन हैं और झुग्गी-बस्तियों में इनका रहना जीना कैसा है ?अगर नहीं, तो नीचे लिखे तथ्यों पर गौर कीजिए! देश में तकरीबन साढ़े तैंतीस हजार झुग्गी-बस्तियों होने के अनुमान हैं, महज एक दशक यानी 2001 से 2011 के बीच झुग्गी-बस्तियों में दलित आबादी में 31 फीसद का इजाफा हुआ है. कुछ राज्यों की झुग्गी-बस्तियों की...
More »देश में महिलाओं को अपना अभिभावक मानने वाले परिवार कितने हैं ?
अगर आयकर चुकाना आर्थिक बेहतरी का संकेत हो तो फिर अच्छी खबर यह है कि देश के ग्रामीण इलाके में महिलाओं की प्रधानी वाले तकरीबन 4 प्रतिशत परिवार सालाना आयकर चुकाते हैं. लेकिन इस खबर के आधार पर कोई भी राय बनाने से पहले तनिक रुककर नीचे लिखे तथ्यों पर एक नजर डालिए क्योंकि सिक्के का दूसरा पहलू भी है. जैसा कि सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना(एसईसीसी 2011) के तथ्यों से जाहिर है...
More »लोगों को हुनर सिखाकर बदल सकते हैं समाज-- दशरथ सूर्यवंशी
बरसों से जलसंकट से जूझ रहे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल के उदगीर जिले के रावणकोल में पलते-बढ़ते समय एक अलग ही तरह का सामाजिक बदलाव मेरी नज़र में आया। जल-संकट के कारण उजड़ती खेती के साथ उजड़ते गांव। लोग आजीविका की तलाश में शहर चले जाते। परिवार बिखरते। ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खेती और ग्रामीण व्यवस्था ही नहीं बदल रही है बल्कि सामाजिक मेल-जोल व एकजुटता खत्म हो रही है, क्योंकि घट...
More »