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किसानों की फसलों से आय 48 फीसदी से गिर कर 38 फीसदी रह गई -एनएसओ

-रूरल वॉइस, केेंद्र की मोदी सरकार ने 2016 में घोषणा की थी कि साल 2022 तक किसानों की आय को दो गुना कर दिया जाएगा। यह बात खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश की एक रैली में कही थी। लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे की सिचुएशन असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल हाउसेज एंड लैंड एंड लाइवस्टॉक होल्डिंग्स ऑफ हाउसेज इन रूरल इंडिया (एसएएस ) रिपोर्ट, 2019 के  जारी किए गये आंकड़े बताते हैं कि खेती...

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नवीनतम पीएलएफएस डेटा, विभिन्न प्रकार के श्रमिकों के बीच अल्प-रोजगार और स्वपोषित रोजगार में अवैतनिक सहायकों पर प्रकाश डालता है

आम तौर पर, अर्थशास्त्री एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में एक विशेष अवधि में बेरोजगारी और काम से संबंधित अनिश्चितता की सीमा का आकलन करने के लिए श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर), श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) जैसे संकेतकों का उल्लेख करते हैं. हालांकि, अन्य संकेतक भी हैं, जो रोजगार की स्थिति, आजीविका सुरक्षा और श्रमिकों की बदत्तर स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते...

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ज़ोमैटो, स्विगी के डिलीवरी वर्कर्स- "हमें कंपनी ने गुलाम बना रखा है"

-न्यूजलॉन्ड्री,  ज़ोमैटो के डिलीवरी वर्कर्स के लिए अपनी वेबसाइट के विरोधाभासों को नजरअंदाज़ कर पाना कठिन है. 'राइड विथ प्राइड' के आश्वासन के साथ उनकी वेबसाइट 'एक लाख से अधिक हैप्पी पार्टनर्स' होने और '10 करोड़ से अधिक हैप्पी डिलीवरी' करने का दावा करती है. वह भी ऐसे समय में जब देश भर में 'डिलीवरी पार्टनर्स' खुश नहीं हैं. पिछले दो हफ्तों से ज़ोमैटो और स्विगी के डिलीवरी कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पर...

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आधिकारिक डेटा 2020 राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान शहरी क्षेत्रों में आजीविका संकट के गहराने की पुष्टि करता है!

हाल ही में जारी किया गया त्रैमासिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) डेटा मोटे तौर पर देशव्यापी लॉकडाउन अवधि के दौरान रोजगार और नौकरियों में गिरावट की पुष्टि करता है, हालांकि विभिन्न सर्वेक्षण-आधारित अध्ययन और शोध पत्र इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पिछले साल लॉकडाउन के बाद के महीनों में कुछ हद तक सुधार हुआ है. पीएलएफएस पर त्रैमासिक बुलेटिन केवल वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस) संदर्भ में...

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COVID-19 की पहली लहर के दौरान ग्रामीण बिहार में अधिकांश परिवारों को आजीविका संकट का सामना करना पड़ा!

मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया में सेंटर फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स एंड सस्टेनेबिलिटी के अर्थशास्त्रियों और नई दिल्ली स्थित मानव विकास संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक सर्वेक्षण आधारित शोध के अनुसार, महामारी की पहली लहर ने पिछले साल बिहार में ग्रामीण श्रमिकों (स्व-रोजगार सहित) की आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव डाला था. अध्ययन के लेखकों द्वारा जारी एक हालिया प्रेसनोट से पता चलता है कि पिछले साल ग्रामीण बिहार में आजीविका...

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