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हाशिए पर भारतीय भाषाएं- अंजुम शर्मा

जनसत्ता 29 जुलाई, 2014 : लोकतंत्र में अगर तंत्र की भाषा लोक से भिन्न हो जाए तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा सूचक नहीं है। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में भाषाई आधार पर भेदभाव के जो आरोप सामने आ रहे हैं उनसे अंगरेजी मानसिकता की वर्चस्ववादी नीति और भारतीय भाषाओं की दुर्दशा पर एक बार फिर विचार करने की जरूरत पैदा हुई है।...

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उच्च शिक्षा:चाहते हैं सो आप करे हैं- योगेन्द्र यादव

हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के चार साल के स्नातक पाठय़क्रम को लेकर खूब हंगामा हुआ. सरकार से लेकर यूजीसी तक ने इस मामले में सियासत की. स्थिति यह हुई कि जो लोग पहले चार वर्षीय पाठय़क्रम के पक्ष में थे, वही इसके विरोध में राय देने लगे. खैर, पाठय़क्रम फिर तीन साल का हो गया, लेकिन असल सवाल अब भी जस का तस अपनी जगह मौजूद है. आज इस...

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गरीबी हटाने की लंबी डगर - एन के सिंह(पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय सचिव)

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट पर संसद में हुई बहस का जवाब देते हुए इस सोच का खंडन किया है कि गरीब समर्थक और कारोबार समर्थक नीतियों में कोई फर्क होता है। उन्होंने पूरी विनम्रता से स्वीकार किया है कि उनका बजट गरीब समर्थक भी है और कारोबार समर्थक भी। यह बात लगभग उसी तरह की है, जैसे यह कहा जाए कि एक तरफ जगदीश भगवती और अरविंद पणगरिया...

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बबुआ से बड़ा झुनझुना- विनोद कुमार

जनसत्ता 21 जुलाई, 2014 : आजादी के बाद हमने वयस्क मताधिकार पर आधारित भारतीय गणराज्य की स्थापना की। मूल अवधारणा यह रही कि हम एक ऐसी व्यवस्था बनाएंगे जिसके केंद्र में रहेगा देश का नागरिक। विधायिका उसके हित में कानून बनाएगी, कार्यपालिका उन कानूनों के दायरे में नागरिकों को एक विधि-सम्मत सुशासन मुहैया कराएगी, सेना बाह्य दुश्मनों से देश की सुरक्षा की गारंटी करेगी, पुलिस नागरिकों के जान-माल की रक्षा करेगी।...

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समग्र स्वास्थ्य नीति के आधार- रितुप्रिया

जनसत्ता 17 जून, 2014 : दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट गहरा रहा है। पिछले डेढ़ सौ सालों में बनीं यूरोप और उत्तरी अमेरिका की सेवाएं उनके लिए भी अत्यधिक महंगी और एकांगी साबित हो रही हैं। मकिंजी कंपनी ने अनुमान लगाया था कि अगर स्वास्थ्य-सेवाओं पर खर्च ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2100 में अमेरिका को अपनी सकल आय का सत्तानबे फीसद और यूरोप को साठ फीसद स्वास्थ्य...

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