दिलचस्प है कि इस बार अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार एक ऐसे शख्स को मिला है, जिसने भारत में गरीबी नापने के प्रचलित तरीकों पर भी सवाल उठाकर इसे सुधारने में अहम भूमिका अदा की है। प्रचलित तरीकों से लोगों द्वारा किए जा रहे उपभोग का सही अनुमान नहीं लग पाता था और वास्तविक गरीबी का चित्र नहीं उभर पाता था। अर्थव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के समर्थक इस वर्ष के नोबल विजेता...
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गरीबी के बारे में डीटन ने बढ़ाई है अर्थशास्त्र की समझ-- रीतिका खेड़ा
अपने पूरे कैरिअर में माप के मसले उनकी चिंताओं के केंद्र में रहे हैं। उनके अनुसार आंकड़ों को बिना सवाल किए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए इस सदी के शुरूआती वर्षों में उन्होंने भारत में मूल्य सूचकांक की गणना की समस्याएं रेखांकित करते हुए यह दिखाया था कि वह कैसे गरीबी संबंधी अनुमानों को प्रभावित करती है। भारत के संबंध में उनका एक और काम गौर फरमाने...
More »गरीबी का फंदा तोड़ने के वास्ते-- प्रमोद जोशी
आर्थिक विकास, व्यक्तिगत उपभोग और गरीबी उन्मूलन के बीच क्या कोई सूत्र है? यह इक्कीसवीं सदी के अर्थशास्त्रियों के सामने महत्वपूर्ण सैद्धांतिक प्रश्न है. पिछले डेढ़-दो सौ साल में दुनिया की समृद्धि बढ़ी, पर असमानता कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ी. ऐसा क्यों हुआ और रास्ता क्या है? इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रिंसटन विश्वविद्यालय के माइक्रोइकोनॉमिस्ट प्रोफेसर एंगस डीटन को देने की घोषणा की गयी है. वे लंबे अरसे...
More »यूपीए-2 बनाम एनडीए-- सेहत पर किसका खर्च ज्यादा?
क्या यूपीए-2 के शासन के पहले साल के मुकाबले एनडीए की सरकार ने शासन के अपने पहले साल में स्वास्थ्य के मद में कम खर्च किया ? हाल ही में जारी नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2015 के तथ्य ऐसा ही संकेत कर रहे हैं. साल 2009-10 में स्वास्थ्य के मद में खर्च होने वाले हर सौ रुपये में केंद्र सरकार ने 36 रुपये का खर्च किया और राज्य सरकारों ने 64 रुपये...
More »अल नीनो भूलिए... आ रही ला नीना
रिकॉर्ड के हिसाब से इस साल सबसे असरदार अल नीनो रहा, बावजूद इसके अगले 1-2 साल तक कृषि जिंसों की कीमतों में ज्यादा तेजी नहीं आएगी। अगले साल का मौसम भारत के अनुकूल रहने के आसार हैं। अल नीनो ने इस साल खासा कहर ढाया। इस वजह से भारत में मानसून कमजोर हुआ और बारिश कम हुई, जबकि मुकम्मल दक्षिण-पूर्व एशिया में खतरनाक सूखे की स्थिति बनी। दुनिया के कई दूसरे...
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