कहावत है कि का बरसा जब कृषि सुखाने और इस कहावत से सीख लेते हुए मानसून की पिछात बारिश में मारे खुशी के फूलकर कुप्पा होने से पहले यह सोचना जरुरी है कि आखिर नुकसान कितना हो चुका है। नुकसान हुआ है और भरपूर हुआ है। देश के खेतिहर इलाके के ६० फीसदी हिस्से पर, खासकर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में, इस बार रबी की फसल नहीं काटी जा सकेगी और ये...
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कोसी का कहर
कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...
More »सूखा राहत नहीं, कैश स्कीम शुरू करें केंद्र सरकार
दो बार लगातार सूखा पड़ने और उसमें हजारों लोगों की जान जाने के बाद मैंने साल 1965 में पत्रकारिता में प्रवेश किया। सूखे की स्थिति उस समय इतनी भयावह थी कि भारत को अमेरिका के सामने मदद के लिए हाथ फैलाना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय खाद्य मदद में उस समय भारत की भागीदारी इतनी अधिक थी कि उस समय सबसे अधिक बिकने वाली एक किताब में दावा किया गया कि भारत को...
More »भूख का बढ़ता भूगोल
भारत में जब से आर्थिक उदारीकरण आया है, एक अद्भुत विरोधाभास उदारवादियों में देखने को मिला है। जहां भारत में कई जगह अभ्युदय हो रहा है। वहीं हालात 20 साल से ज्यादा खराब होते गए हैं। खासकर लोगों की खुराक कम हुई है। सिर्फ जिंदा रहने के लिए लोग इस देश में भोजन ग्रहण कर रहे हैं और इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना नहीं है, जैसा कि अनुमान लगाया...
More »दुष्काल, अकाल, सूखा सबके जिम्मेवार हम ही
आने वाले 15 वर्षों में भारत के खाद्यान्न का कटोरा अर्थात पंजाब और हरियाणा सूखाग्रस्त हो जाएंगे। वहां की धरती में सिंचाई के लिए पानी नहीं रह जाएगा। केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड की 2007 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 2025 में सिंचाई के लिए भूमिगत जल उपलब्धता ऋणात्मक हो जाएगी। उदाहरण के लिए पंजाब में जितना जल जमीन में समाता है उससे 45 प्रतिशत अधिक जल खींच लिया जाता...
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