राजनीतिशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वान रजनी कोठारी के जीवन और कृतित्व के बारे में जाने बिना भारतीय राजनीति और समाज के आपसी रिश्तों के बारे जानना नामुमकिन है. इस लिहाज से उनका विमर्श भारतीय राजनीति की एक पूरी किताब की तरह है, जिसे पढ़ना हर समझदार व्यक्ति के लिए अनिवार्य है. 1969 में प्रकाशित अपनी सबसे मशहूर रचना ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया' में उन्होंने दावा किया था कि भारतीय समाज के संदर्भ...
More »SEARCH RESULT
बच्चों को लिखना-पढ़ना नहीं आया - योगेन्द्र यादव
पिछले महीने वंचित तबके के बच्चों के बीच काम करनेवाले एक संगठन ने न्योता भेजा कि आपको शिक्षा के मुद्दे पर आयोजित हमारे एक संवाद में बोलना है. बीजेपी और कांग्रेस के प्रतिनिधि भी आमंत्रित थे. विषय था- ‘2030 में शिक्षा का भविष्य'. संचालन की भूमिका एक जाने-पहचाने टीवी एंकर ने संभाल रखी थी. शुरुआत ही में एंकर ने हम तीनों में झगड़ा करवाने की कोशिश की. मैंने इस खेल में...
More »घर छोड़ने को मजबूर क्यों अन्नदाता? - देविंदर शर्मा
कृषि के संदर्भ में राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) की हालिया रिपोर्ट साफ तौर पर बताती है कि कृषि न केवल संकट के दौर से गुजर रही है, बल्कि उसका तेजी से क्षरण भी हो रहा है। मैं चकित नहीं हूं। आखिरकार 1996 में ही विश्व बैंक ने भारतीय कृषि के पतन की दिशा बता दी थी। तब विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि अगले बीस वर्षों में भारत...
More »शिक्षा की दुनिया से गैजेट्स का नाता - डेजी क्रिस्टोडुलू
मौजूदा डिजिटल युग की नई पीढ़ी जिस सामूहिक व सामाजिक रूप में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है, उसे देखते हुए कई लोगों का मानना है कि इससे शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। पर दूसरी तरफ ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं, जो इस बात को लेकर बेहद चिंतित हैं कि स्मार्टफोन, टैबलेट, ई-रीडर्स व लैपटॉप जैसे गैजेट्स इस नई पीढ़ी की एकाग्रता व गहरे...
More »छुआछूत मुक्त भारत क्यों नहीं- सुरेन्द्र कुमार
जिन साथी भारतीयों ने ईसाई या इस्लाम कुबूल कर लिया, उनकी दुर्दशा पर कुछ लोगों को विलाप करते देखना चमत्कार ही है। इसलिए वे अब उन 'अभागों' को वापस हिंदू धर्म में शामिल कर उनके दुर्भाग्य को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं! वास्तव में, वे भारत में हिंदुओं की संख्या बढ़ाने को लेकर चिंतित हैं। उनके लिए उन लोगों की स्थितियां कोई मायने नहीं रखती, जिनका धर्मांतरण या...
More »