देश में दूरसंचार के क्षेत्र में सुधार लागू होने का पच्चीसवां साल चल रहा है, जो अगले साल पूरा होगा। आधुनिक भारत के इतिहास में ये सुधार मील का महत्वपूर्ण पत्थर है। 1993 में ही चार प्रमुख महानगरों में निजी कंपनियों को सेल्यूलर टेलीफोनिंग के लाइसेंस दिए गए थे। यह वह समय था जब फोन कनेक्शन की वेटिंग लिस्ट 3-4 साल की होती थी और फोन से जुड़ी शब्दावली में...
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क्या ‘मिड डे मील’ शिक्षा में घुन है?-- मणीन्द्र ठाकुर
ग्रामीण विद्यालयों में शिक्षा की हालत कैसी है? यदि आप इस सवाल को लेकर नीतिकारों के पास जायेंगे, तो लगेगा कि अब भारत को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता है. क्योंकि बिहार के गांवों में भी लगभग सौ फीसदी बच्चे विद्यालय जाने लगे हैं. लेकिन, धरातल पर कहानी कुछ और है. पिछले दिनों किसी गांव के एक विद्यालय में जाने का मौका मिला, जहां साठ-सत्तर के दशक तक...
More »स्कूली शिक्षा में भेदभाव की विषबेल-- प्रियंका कानूनगो
भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में कई प्रकार से शैक्षिक भेदभाव व्याप्त है, खासतौर पर स्कूली शिक्षा में इसकी जड़ें बहुत गहरे जम चुकी हैं। इस विषबेल को खाद, पानी, पोषण देने वाला ताकतवर समूह शिक्षा का बाजारीकरण कर उस बाजार का नियंत्रक बना बैठा है, जो कि संगठित माफिया की तरह कार्यरत है। वह न केवल नियमों को तोड़ता है बल्कि मनमाफिक नियम निर्धारण में भी पर्याप्त सक्षम है।...
More »किसानी का तीर्थ बनता तिउसा गांव --- बाबा मायाराम
महाराष्ट्र का एक गांव है तिउसा। यवतमाल से सोलह किलोमीटर दूर। यह गांव किसानों के लिए तीर्थ बन गया है। तीर्थ जहां कुछ अच्छाई है, किसान जहां अपना भविष्य देख रहे हैं। यहां बड़ी संख्या में किसान आ रहे हैं। खेती-किसानी की बारीकियां सीख रहे हैं। यहां के प्रयोगधर्मी किसान सुभाष शर्मा कई मायने में अनूठी खेती कर रहे हैं, जिसे वे सजीव खेती कहते हैं। हाल ही मैं अपने कुछ...
More »और भी गम हैं जीएसटी के सिवा - मृणाल पाण्डे
जबर्दस्त सरकारी तामझाम के साथ जीएसटी का आगाज़ हो चुका है। इस वक्त भले ही हर जगह जीएसटी को लेकर चर्चा छिड़ी हो, पर तय है कि देश 2017 द्वारा विमोचित कुछ अन्य बडी चुनौतियों की चर्चा से काफी महीनों तक बरी नहीं हो पायेगा| मसलन स्वयंभू (कम से कम सरकार तो यही कह रही है) गोरक्षकों की देश भर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलाई जा रही अंधी हिंसा की...
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