हर वर्ष की तरह इस बार भी मैं अपनी 'विन ए ट्रिप' यात्रा पर भारत आया। भारतीय गांवों की यात्रा के दौरान मेरे साथ थे प्रतियोगिता के विजेता स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ऑस्टिन मेयर। इस यात्रा के मूल में यह सवाल था, 'आखिर क्या वजह है कि भारत के लाखों बच्चे शारीरिक-मानसिक तौर पर कुपोषित रह जाते हैं?' भारत एक मजबूत लोकतंत्र हैं, जो मंगल तक अपना उपग्रह भेज चुका है। पर...
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आंकड़े क्यों घटते दिख रहे हैं-- सुभाष गताड़े
दिलचस्प है कि इस बार अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार एक ऐसे शख्स को मिला है, जिसने भारत में गरीबी नापने के प्रचलित तरीकों पर भी सवाल उठाकर इसे सुधारने में अहम भूमिका अदा की है। प्रचलित तरीकों से लोगों द्वारा किए जा रहे उपभोग का सही अनुमान नहीं लग पाता था और वास्तविक गरीबी का चित्र नहीं उभर पाता था। अर्थव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के समर्थक इस वर्ष के नोबल विजेता...
More »एफआईआर से आरटीआई तक ग्राम्य जनजीवन - गोपालकृष्ण गांधी
अंग्रेजी के कुछ शब्द (या शब्दों के संक्षिप्त रूप) ऐसे हैं, जो भारत के दूर-देहात तक जड़ें जमा चुके हैं। यहां मैं डीएम, एसपी, बीडीओ जैसे अफसरों के पदों का उल्लेख नहीं कर रहा। ना ही मैं बस, ट्रेन, साइकिल जैसे सर्वसुलभ शब्दों की बात कर रहा हूं। मैं ऐसे शब्दों की बात कर रहा हूं, जो हमें आज के भारत के बारे में कुछ बताते हैं। इन्हीं में से...
More »गरीबी के बारे में डीटन ने बढ़ाई है अर्थशास्त्र की समझ-- रीतिका खेड़ा
अपने पूरे कैरिअर में माप के मसले उनकी चिंताओं के केंद्र में रहे हैं। उनके अनुसार आंकड़ों को बिना सवाल किए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए इस सदी के शुरूआती वर्षों में उन्होंने भारत में मूल्य सूचकांक की गणना की समस्याएं रेखांकित करते हुए यह दिखाया था कि वह कैसे गरीबी संबंधी अनुमानों को प्रभावित करती है। भारत के संबंध में उनका एक और काम गौर फरमाने...
More »गरीबी का फंदा तोड़ने के वास्ते-- प्रमोद जोशी
आर्थिक विकास, व्यक्तिगत उपभोग और गरीबी उन्मूलन के बीच क्या कोई सूत्र है? यह इक्कीसवीं सदी के अर्थशास्त्रियों के सामने महत्वपूर्ण सैद्धांतिक प्रश्न है. पिछले डेढ़-दो सौ साल में दुनिया की समृद्धि बढ़ी, पर असमानता कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ी. ऐसा क्यों हुआ और रास्ता क्या है? इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रिंसटन विश्वविद्यालय के माइक्रोइकोनॉमिस्ट प्रोफेसर एंगस डीटन को देने की घोषणा की गयी है. वे लंबे अरसे...
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