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खेतिहर संकट | आँकड़ों में गांव
आँकड़ों में गांव

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स्टेट ऑव इंडियन एग्रीकल्चर 2011-12 नामक दस्तावेज के अनुसार
कृषि-उत्पादन और विकास-दर

* देश की समग्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसका योगदान वर्ष 1990-91 में लगभग 30 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2011-12 में 15 प्रतिशत से भी कम हो गया है।एक आम भारतीय आज भी अपने व्यय का लगभग आधा खाद्य पदार्थों पर व्यय करता है जबकि भारत के कार्य बल का लगभग आधा भाग अपनी आजीविका हेतु आज भी कृषि क्षेत्र में लगा हुआ है।

 

* ग्रामीण क्षेत्रों में अनाज की प्रति व्यक्ति मासिक खपत वर्ष 1983-84 में 14.80 कि॰ग्रा॰ से घटकर वर्ष 2004-05 में 12.11 कि॰ग्रा॰ हो गयी है और वर्ष 2009-10 में और कम होकर 11.35 कि॰ग्रा॰ हो गयी है। शहरी क्षेत्रों में यह वर्ष 1983-84 में 11.30 कि॰ग्रा॰ से घटकर वर्ष 2004-05 में 9.94 कि॰ग्रा॰ और वर्ष 2009-10 में 9.37 कि॰ग्रा॰ हो गयी है।

 

* हाल ही के वर्षों में कुल जीसीएफ में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) का अंश 6-8 प्रतिशत के बीच रहा जबकि 1980 के दशक की शुरुआत के दौरान यह 18 प्रतिशत था ।इससे पता चलता है कि गैर कृषि क्षेत्र योजनावधि में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों की तुलना में अधिक निवेश प्राप्त कर रहे हैं।

 

* यद्यपि कृषि में सार्वजनिक(सरकारी) निवेश बहुत महत्वपूर्ण है परंतु असल में कृषि में कुल निवेश का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा ही सरकारी है; 80 प्रतिशत निजी क्षेत्र से प्राप्त होता है । उदाहरण के लिए, 1980 के दशक की शुरुआत में कृषि में सकल पूंजी निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र (घरेलू क्षेत्र सहित) का अंश लगभग बराबर था, लेकिन वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में निजी क्षेत्र का अंश वर्ष 2004-05 के मूल्यों पर सरकारी  अंश से चार गुना अधिक था।

 

* कृषि-उत्पादन और कृषि तथा संबंद्ध क्षेत्रों की वृद्धि-दर साल 2010-11 में 7.0 फीसदी तक पहुंची है जो गुजरे छह सालों में सबसे ज्यादा है। @@

 

* साल 2010-11 में खेती और संबद्ध क्षेत्रों का जीडीपी में योगदान 12.3 फीसदी रहा, वानिकी का  1.4 फीसदी और मात्स्यिकी(फीशिंग) का 0.7 फीसदी। @@

* खेती में वृद्धि का मुख्य संकेत कृषिगत सकल पूंजी-निर्माण(जीसीएफ) से मिलता है।. जीडीपी में

 
 

* कृषि ने जितने मूल्य का योगदान किया उससे तुलना करके देखें तो कृषिगत सकल पूंजी निर्माण साल 2010-11 में 20.1 फीसदी तक पहुंचा है जबकि साल 2004-05 में 13.5 फीसदी था।(आकलन 2004-5 के मूल्यों पर आधारित है)। @@

 

* कृषि में सार्वजनिक निवेश के मामले में, जैसाकि राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी में परिभाषित है, 80 प्रतिशत से अधिक बड़ी और मंझोली मध्यम सिंचाई स्कीमों के लिए  निर्धारित है। यहां तक कि कृषि में निजी निवेश के मामले में भी लगभग आधी सिंचाई (मुख्यतः भूजल के माध्यम से) हेतु निर्धारित है।अतः सिंचाई अब भी कृषि में संपूर्ण निवेश में सबसे महत्वपूर्ण घटक है।

 

* सकल सिंचित क्षेत्र वर्ष 1990-91 में 34 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2008-09 में 45.3 प्रतिशत हो गया है। हालांकि विभिन्न राज्यों में विभिन्न फसलों में सिंचित कवरेज में बहुत बड़ी भिन्नता है।यद्यपि पंजाब (98), हरियाणा (85), उत्तर प्रदेश (76), बिहार (61), तमिलनाडु (58) और पश्चिम बंगाल (56) में सिंचाई के अधीन आधे से भी अधिक फसल क्षेत्र है, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, झारखंड और असम में सिंचाई के अधीन बहुत कम क्षेत्र है।

 

* आकलन किया गया है कि 2050 तक लगभग 22ः भौगोलिक क्षेत्र एवं 17ः जनसंख्या को जल की अत्यन्त कमी का सामना करना पड़ेगा। जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता जो 2010 में लगभग 1704 क्यूबिक मीटर थी, वह 2050 में 1235 सीएम (क्यूबिक मीटर) मानी गई है।

 

* उर्वरकों का समग्र उपभोग वर्ष 1991-92 के 70 किग्रा॰/है॰ से बढ़कर 2010-11, में 144 किग्रा॰/है॰ हो गया है।

 

* वर्तमान में भारत विश्व में उर्वरक-नाईट्रोजन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, और फास्फेट उर्वरक के लिए इसका स्थान तीसरा है। पोटाश का पूर्ण रूप से आयात किया जाता है। नाईट्रोजन और फास्फोरस की खपत में चीन के बाद भारत का स्थान दूसरा है।

 

* 2010-11 के दौरान रासायनिक उर्वरकों की खपत (पोषक तत्वों के संबंध् में) 282 लाख टन रही है जिसमें नाइट्रोजन की 166 लाख टन, फास्फेटिक की 81 लाख टन तथा पोटासिक उर्वरक की 35 लाख टन मात्रा शामिल है। उर्वरकों की अखिल भारत औसत खपत जो 2004-05 में 95 कि॰ग्रा॰ प्रति है॰ थी, 2010-11 में बढ़कर 144 कि॰ग्रा॰ प्रति है॰ हो गई है।

 

* राज्यों के बीच उर्वरक खपत में बहुत अध्कि भिन्नता देखी गई है। जबकि पंजाब में 237.1 कि॰ग्रा॰ तथा आन्ध््र प्रदेश में 225.7 कि॰ग्रा॰ प्रति हैक्टेयर खपत है, यह मध्य प्रदेश (81 कि॰ग्रा॰/है॰), उड़ीसा (58 कि॰ग्रा॰/है॰), राजस्थान(48.3 कि॰ग्रा॰/है॰) और हिमाचल प्रदेश (548.8 कि॰ग्रा॰/है॰) की तुलनात्मक रूप से कम है तथा कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में 5 कि॰ग्रा॰/है॰ से नीचे है।

 

* कृषि राज्य का विषय है अतः भारत में कृषि क्षेत्र का संपूर्ण प्रदर्शन इस पर निर्भर करता है कि राज्य स्तर पर क्या हो रहा है। विभिन्न राज्यों के प्रदर्शन में बहुत बड़ी भिन्नता है। वर्ष 2000-01 से 2008-09 के दौरान राजस्थान (8.2 प्रतिशत), गुजरात (7.7 प्रतिशत) और बिहार (7.1 प्रतिशत) में कृषि वृद्धि उत्तर प्रदेश (2.3 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (2.4 प्रतिशत) से बहुत अधिक रही। उड़ीसा, छत्तीसगढ़ एवं हिमाचल प्रदेश जैसे पहले के खराब प्रदर्शन वाले राज्यों में हाल ही में कृषि में सुदृढ़ वृद्धि का रुख देखा गया है।

 

* वर्ष 2010-11 के दौरान, खाद्यान्न उत्पादन 244.78 मिलियन टन था जिसमें खरीफ मौसम में 121.14 मिलियन टन और रबी मौसम में 123.64 मिलियन टन उत्पादन हुआ। कुल खाद्यान्न उत्पादन में से अनाज का उत्पादन 226.53 मिलियन टन और दलहन का 18.24 मिलियन टन था।

 

* वर्ष 2011-12 के लिए वित्तीय द्वितीय अग्रिम अनुमानों के अनुसार, कुल खाद्यान्न उत्पादन 250.42 मिलियन टन के रिकार्ड स्तर पर होने का अनुमान है जो विगत वर्ष के से 5.64 मिलियन टन अधिक है।

 

* चावल का उत्पादन 102.75 मिलियन टन गेहूं 88.31 मिलियन टन, मोटे अनाज 42.08 मिलियन टन और दालें 17.28 मिलियन टन होने का अनुमान है।

 

* 2011-12 के दौरान तिलहन उत्पादन 30.53 मिलियन टन, गन्ना उत्पादन 347.87 मिलियन टन और कपास उत्पादन 34.09 मिलियन गांठें (प्रत्येक 170 कि॰ ग्रा॰ की) होने का अनुमान है पटसन उत्पादन 10.95 मिलियन गांठ (प्रत्येक 180 कि॰ग्रा॰ की) होने का अनुमान है। देश के कुछ भागों में असंगत जलवायु घटकों के बावजूद, के आसार अच्छे हैं। वर्ष 2011-12 के दौरान खाद्यान्नों का 245 मिलियन टन का लक्षित रिकार्ड उत्पादन रहा है।

 

दो अवधियों 1990-91 से 1999-2000 और 2000-01 से 2010-11 हेतु विभिन्न फसलों के क्षेत्र, उत्पादन और उपज की औसत वार्षिक वृद्धि दर-

 

* कृषि फसलों के उत्पादन में वृद्धि क्षेत्र एवं उपज पर निर्भर करती है। गेहूं के मामले में वर्ष 2000-01 से 2010-11 के दौरान क्षेत्र एवं उपज में वृद्धि; सीमांत रही जो दर्शाता है कि इस फसल में उपज स्तर अधिकतम है और उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के लिए नवीन अनुसंधान की आवश्यकता है।

 

* सभी प्रमुख मोटे अनाजों में( मक्का को छोड़कर क्योंकि इसमें वर्ष 2000-01 से 2010-11 अवधि में 2.68 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई) दोनों अवधियों के दौरान क्षेत्र में नकारात्मक वृद्धि रही। मक्का का उत्पादन भी बाद की अवधि में 7.12 प्रतिशत बढ़ा है। दलहन में खेती के तहत क्षेत्र में विस्तार के कारण इसी अवधि के दौरान चने में 6.39 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी।

 

* उर्वरकों का समग्र उपभोग वर्ष 1991-92 के 70 किग्रा॰/है॰ से बढ़कर 2010-11, में 144 किग्रा॰/है॰ हो गया है।राष्ट्रीय स्तर पर हमारी खेतिहर मिट्टी में लगभग 8-10 मि॰ टन एनपीके(नाइट्रोजन, फॉस्फोरस,पोटैशियम) की विशुद्ध कमी हो रही है। मिट्टी  से सबसे अधिक लिया जाने वाला पोषक-तत्व (के) पोटेशियम है जो 7 मीट्रिक टन लिया जाता है एवं पूति केवल एक मीट्रिक टन की हो पाती है। देश के सभी भागों में सल्फर की कमी पाई जाती है लेकिन सल्फर की कमी दक्षिणी क्षेत्र में सबसे ज्यादा है।

 

* सोयाबीन में इन दोनों अवधियों में खेती में क्षेत्र विस्तार से उच्च वृद्धि दर दर्ज की गयी। वास्तव में तिलहन ने सामूहिक रूप में दो दशकों में महत्वपूर्ण परिवर्तन दर्शाए हैंः उत्पादकता (उदाहरणार्थ मूंगफली और सोयाबीन) एवं क्षेत्र विस्तार के कारण पिछले दशक की तुलना में 2000 वाले दशक में उत्पादन वृद्धि दर दुगुनी से अधिक हुई है।

 

* दो अवधियों में उपज में वृद्धि दर में सबसे अधिक वृद्धि मूंगफली एवं कपास में है। वर्ष 2002 में बीटी कपास की शुरुआत के साथ कपास में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे गए हैं। वर्ष 2011-12 तक कपास क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत बीटी के तहत कवर है। कपास उत्पादन (2002-03 की तुलना में) दुगुने से भी ज्यादा हो गया है, उपज लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ गयी है और कच्चे कपास की निर्यात-क्षमता 10000 करोड़ रुपए से भी अधिक की हो गई है।

 

* कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के कुल उत्पादन में पशुधन का अंश वर्ष 1990-91 को समाप्त तीन वर्ष की अवधि (टी॰ई॰) में 20 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2009-10 को समाप्त तीन वर्ष की अवधि (टी॰ई॰) में (वर्ष 2004-05 के मूल्यों पर) 25 प्रतिशत हो गया है। वर्तमान में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों से उत्पादन के कुल मूल्य का लगभग 1/5 खाद्यान्न है जो पशुधन क्षेत्र के हिस्से से कम है और बागवानी क्षेत्र के लगभग बराबर है।

 

* फलों एवं सब्जियों में 1990-91 से वर्ष 1999-2000 की अवधि की तुलना में वर्ष 2000-01 से 2010-11 में उत्पादन एवं क्षेत्र में उच्च वृद्धि देखी गयी है।

 

* पिछले 40 वर्षों के दौरान कुल बोया गया क्षेत्र 141 मि॰ है॰ के करीब रहा है। फसल गहनता अर्थात् सकल फसलित क्षेत्र की तुलना में निवल फसल क्षेत्र का अनुपात, हालांकि वर्ष 1970-71 में 118 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2008-09 में 138 प्रतिशत हो गया।

 

* साल 2011-12 के दौरान फलों की खेती 6.58 मिलियन हैक्टेयर में हुई और फलों का उत्पादनf 77.52 मिलियन टन हुआ। इसका योगदान कुल उत्पादन में 32 फीसदी का रहा।

 

* शाक-सब्जियों की खेती 8.49 मिलियन हैक्टेयर में हुई, उत्पादन 149.61 मिलियन टन हुआ, उत्पादकता 17.42 टन प्रति हैक्टेयर रही।

 

* साल 2010-11 में अनुमानों के मुताबिक दूध-उत्पादन 121.8 मिलियन टन हुआ जबकि साल 1990-91 दौरान दूध-उत्पादन 53.9 मिलियन टन हुआ था।राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता साल 1990-91 में 176 ग्राम प्रतिदिन थी जो साल 2010-11 में बढ़कर 281 ग्राम हो गई।

 

* राष्ट्रीय स्तर पर मांस का उत्पादन साल 2000-01 में 1.5 मिलियन टन था जो साल 2010-11 में बढ़कर 4.83 मिलियन टन हो गया।

 

.* साल 1990-91 में अंडे का उत्पादन 21.1 बिलियन हुआ था जो साल 2010-11 में बढ़कर 61.45 बिलियन हो गया। एफएओ के आंकड़ों के अनुसार भारत का अंडों के उत्पादन के मामले में साल 2010 में विश्व में तीसरा स्थान था।

 

* साल 2010-11 में कुल मछली उत्पादन 8.29 मिलियन टन होने का अनुमान है।

  स्रोत-

Source: State of Indian Agriculture 2011-12, http://agricoop.nic.in/SIA111213312.pdf

@@ Economic Survey 2011-12, Ministry of Finance, Government of India, http://indiabudget.nic.in/es2011-12/echap-08.pdf

 

 
 
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