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खेतिहर संकट | आँकड़ों में गांव
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                                                           भारतीय कृषि के कुछ रोचक तथ्य 

एनएसएस (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण) के ५४ वें दौर के आकलन पर आधारित रिपोर्ट संख्या- 451(54/31/3),  जनवरी 1998 – जून 1998 के अनुसार:


फसली खेती के ५९ फीसदी हिस्से में उच्च उत्पादकता के बीज(संकर बीज) का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के ८१ फीसदी हिस्से में उर्वरकों का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के ७४ फीसदी हिस्से में जैविक खाद का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के ४७ फीसदी हिस्से में कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के २२ फीसदी हिस्से में खर-पतवार नाशकों का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के ६६ फीसदी हिस्से में सिंचाई के मानव निर्मित साधनों का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के ५४ फीसदी हिस्से में ट्रैक्टर और पावर टीलर का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के ६ फीसदी हिस्से में हार्वेस्टर का इस्तेमाल होता है।

फसली खेती के ५१ फीसदी हिस्से में खरीफ के दौरान धान के उन्नत बीजों  का इस्तेमाल होता है।

फसली खेती के ६६ फीसदी हिस्से में रबी के दौरान धान के उन्नत बीजों  का इस्तेमाल होता है।

फसली खेती के ६३ फीसदी हिस्से में गेहूं के उन्नत बीजों  का इस्तेमाल होता है।
 
फसली खेती के ६४ फीसदी हिस्से में,अन्य खाद्यान्नो के मामले में,  उन्नत बीजों  का इस्तेमाल होता है।

फसली खेती के ४७ फीसदी हिस्से में दलहन के उन्नत बीजों  का इस्तेमाल होता है।

सरकारी नहर से गावों में फसली खेती का २५ फीसदी हिस्सा सिंचित होता है। 
 
मशीन से जुताई करके जितने हिस्से पर खेती होती है उसके ७२ फीसदी हिस्से पर किराये के पावर टीलर या हार्वेस्टर का इस्तेमाल होता है। 
 
 ६१ फीसदी ग्रामीण परिवार फसली खेती में लगे हैं।
 
१ हेक्टेयर या उससे कम जमीन वाले ऐसे ग्रामीण परिवारों की तादाद ६२ फीसदी है जो साल में बस एक फसल की खेती करते हैं।
 
नहर सिंचित इलाके में दूसरे परिवारों से सिंचाई के साधन किराये पर लेकर सिंचिंत की जाने वाली कृषि भूमि की तादाद ४० फीसदी है। 
 
गैर नहर-सिंचित इलाके में दूसरे परिवारों से सिंचाई के साधन किराये पर लेकर सिंचिंत की जाने वाली कृषि भूमि की तादाद ४९ फीसदी है।  
 
* फसली खेती के दायरे में यहां उन परिवारों को भी शामिल किया गया है जो अपनी जमीन के कुछ हिस्से पर बागवानी करते या फिर पेड़ उगाते हैं लेकिन खरीफ या रबी की मौसमी खेती नहीं करते। एक फसल की खेती करने वाले परिवार का आशय यहां उन परिवारों से है जो साल में एक बार(या तो खरीफ या फिर रबी के मौसम में) उगा पाते हैं। .

.

स्रोत- एनएसएस (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण) के ५४ वें दौर के आकलन पर आधारित रिपोर्ट संख्या- 451(54/31/3),  जनवरी 1998 – जून 1998 :


                                                     भूमि और श्रम

• भारत में प्रचालनात्मक जोतों का औसत आकार वर्ष 1970-71 में 2.28 है॰ था जो क्रमिक रूप से घटकर वर्ष 1990-91 में 1.55 है॰ एवं वर्ष 2005-06 में 1.23 है॰ हो गया है । कृषि संगणना 2005-06 के अनुसार सीमांत जोत (1 है॰ से कम क्षेत्र) का भाग 1995-96 में 61.6 प्रतिशत से बढ़ कर वर्ष 2005-06 में 64.8 प्रतिशत हो गया है। इसके पश्चात् लगभग 18 प्रतिशत छोटी जोत (1-2 है॰), लगभग 16 प्रतिशत मध्यम जोत (2 है॰ से अधिक एवं 10 है॰ से कम) और 1 प्रतिशत से कम बड़ी जोत (10 है॰ एवं उससे अधिक) है।

• देश में 141 मि॰ है॰ (कुल सूचित क्षेत्र का लगभग 46 प्रतिशत) कुल बोया गया क्षेत्र है, 70 मि॰ है॰ (23 प्रतिशत) वन क्षेत्र, 26 मि॰ है॰ गैर कृषि उपयोग के तहत, 25 मि॰ है॰ परती भूमि, 17 मि॰ है॰ बंजर और अकृष्य भूमि, 13 मि॰ है॰ कृषि योग्य बंजर भूमि, 10 मि॰ है॰ स्थायी चारागाह भूमि और अन्य चारागाह भूमि, और 3 मि॰ है॰ क्षेत्र विविध वृक्ष फसलों और उपवनों के अधीन है।

• गुजरे सालों से गैर कृषि उपयोग के अंतर्गत आने वाली जमीन की मात्रा में  क्रमिक रूप से वृद्धि हुयी है। पिछले 40 वर्षों (1970-71 से 2008-09) के दौरान निवल बोया गया क्षेत्र कुल मिलाकर 141 मि॰ है॰ पर स्थिर रहा है। गैर-कृषि उपयोगों के तहत क्षेत्र 16 मिलियन है॰ से बढ़कर 26 मिलियन है॰ हो गया, जबकि बंजर और अकृष्य भूमि के तहत क्षेत्र 1970-71 में 28 मि॰ है॰ से घटकर 2008-09 में 17 मि॰ है॰ हो गया है। तथापि, सकल फसलित क्षेत्र वर्ष 1970-71 में 166 मि॰ है॰ से बढ़कर वर्ष 2008-09 में 195 मि॰ है॰ हो गया है।

• बढ़ती हुयी जनसंख्या के कारण ऐसा अनुमान है कि प्रति व्यक्ति कुल भूमि उपलब्धता जो 2.19 है॰ विश्व औसत के सम्मुख वर्ष 2001 में 0.32 है॰ थी, वर्ष 2025 में घटकर 0.23 है॰ हो जाएगी और वर्ष 2050 में 0.19 है॰ रह जाएगी।

• भारत में लगभग 120 मि॰ है॰ भूमि अवक्रमित(डिग्रेडेशन) हुयी है और मृदा अपरदन के माध्यम से हर वर्ष लगभग 5334 मि॰ टन मिट्टी की क्षति हो जाती है। 120 मि॰ है॰ अवक्रमित क्षेत्र में से 68 प्रतिशत जल अपरदन के कारण है, 21 प्रतिशत रासायनिक अवक्रमण है, 10 प्रतिशत वायु अपरदन के कारण है और शेष भौतिक-अवक्रमण हैं।

• भारत में लगभग 12 मि॰ है॰ क्षेत्र जल-प्लावित एवं बाढ़-प्रवण है जहां कृष्य फसलों की उत्पादकता काफी प्रभावित होती है। मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में खरीफ के दौरान अस्थायी जलप्लावन के कारण क्रमशः लगभग 12 एवं 0.53 मि॰ है॰ वर्षा सिंचित जमीन को परती छोड़ा जाता है एवं उसे केवल वर्षा मौसम के उपरान्त ही बोया जाता है। पूर्वी भारत में जलप्लावित कछारी क्षेत्रों में वर्ष में छह महीने से ज्यादा समय के लिए धरातल पर जल जमा रहता है।

• भारतीय स्तर पर लगभग 60 प्रतिशत ग्रामीण श्रमिक बल तथा 45 प्रतिशत शहरी श्रम बल अपने रोजगार में है। ग्रामीण दिहाड़ी मजदूर भारत में कुल कार्य बल का एकल सबसे बड़ा भाग हैं।

• खेती की लागत के आंकड़ों से पता चलता है कि खेती के काम में मजदूरी अधिकतर मामलों में उत्पादन की कुल  लागत के 40 प्रतिशत से अधिक है।

• हाल के वर्षों में भारत के सभी बड़े राज्यों में कृषि मजदूरी में सतत् वृद्धि हुई है। अकुशल कृषि मजदूर हेतु आंध्र प्रदेश में वार्षिक औसत मजदूरी 2008 की तुलना में 2009 में 28.6 प्रतिशत बढ़ी है तथा 2010 में 22.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार उड़ीसा में मजदूरी वृद्धि 2008 की तुलना में 2009 में 20 प्रतिशत तथा 2009 की तुलना में 30.07 प्रतिशत है। पंजाब में वर्ष 2009 में 22.2 प्रतिशत और 2010 में 20.03 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। तमिलनाडु में संगत पिछले वर्षों की तुलना में वर्ष 2009 और 2010 में क्रमशः 20.4 प्रतिशत और 27.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

• मजदूरी में दोहरे अंक की वृद्धि हुई है जो उस अवधि के दौरान की स्फिति दर से भी अधिक है। वर्ष 2008-10 के दौरान केरल में ग्रामीण मजदूरी सर्वाधिक थी जो 216-305 रु॰ के बीच थी। इसके बाद तमिलनाडु आंध्र प्रदेश और कर्नाटक का स्थान आता है। उत्तरी क्षेत्र में हरियाणा ने वर्ष 2008-10 की अवधि के दौरान 121-182 रु॰ के रेंज में सर्वाधिक कृषि मजदूरी दर्ज की इसके बाद 110-162 रु॰ के रेंज में पंजाब, 105-139 के रेंज में राजस्थान का स्थान आता है। पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश ने भी मजदूरी में वृद्धि की है।

• मनरेगा के अंतर्गत रोजगार सुविधाओं ने सुनिश्चित न्यूनतम रोजगार देकर तथा ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि करके ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रभाव डाला है। मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण परिवारों की मजदूरी में हुई वृद्धि इस प्रकार है-  महाराष्ट्र में 47 रु॰ से 72 रु॰, उत्तर प्रदेश में 58 रु॰ से 100 रु॰, बिहार में 68 रु॰ से 100 रु॰, प॰ बंगाल में 64 रु॰ से 100 रु॰ मध्य प्रदेश में 58 रु॰ से 100 रु॰ जम्मू कश्मीर में 45 रु॰ से 100 रु॰ और छत्तीसगढ़ में 58 रु॰ से 100 रु॰। राष्ट्रीय स्तर पर मनरेगा के अंतर्गत दी जाने वाली मजदूरी वर्ष 2007-08 में 75 रु॰ से बढ़कर 2009 में 93 रु॰ हो गई है।

स्रोत-

Source: State of Indian Agriculture 2011-12, http://agricoop.nic.in/SIA111213312.pdf

 

                                                        एक गिनती निवालों की

• साल १९५१ में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ३९४ ग्राम खाद्यान्न हासिल था जो साल २००७ में बढ़कर ४३९.३ ग्राम हो गया लेकिन बीच में ऐसा भी वक्त आयी जब प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खाद्यान्न की उपलब्धता घटकर ४१६.२ ग्राम तक पहुंच गई। मिसाल के लिए साल २००१ में।****

• दाल प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत है। साल १९५१ में प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति पर दालों की उपलब्धता ६०. ग्राम थी जो साल २०० में घटकर २९.४ ग्राम रह गई। ****

• १९९० के दशक में प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति २०० ग्राम चावल उपलब्ध था जबकि साल २००० के बाद यह आंकड़ा घटकर २०० ग्राम से नीचे चला गया। ****

**** कृषि मंत्रालय, भारत सरकार

                                                              कहां पहुंची कीमतें

• साल २००८-०९ के दौरान भारत में मुद्रास्फीति( थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित) मार्च महीने के अंत में ७.७ फीसदी थी जो २ अगस्त २००८ को १२.९ फीसदी की ऊंचाई को छू गई।

• साल २००८ के बाद थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में तेजी से गिरावट आयी। २ अगस्त २००८ से २८ मार्च २००९ के बीच यह गिरावट ५.८ फीसदी की रही।
• 
 स्रोत- रिजर्व बैंक ऑव इंडिया बुलेटिन मई २००९ -
http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Bulletin/PDFs/MACPOL6.pdf
 
 
                                               पलायन(माइग्रेशन)

 परंपरागत पलायन ( गांवों से शहरों की तरफ) में बढ़ोतरी हुई है। कुल पलायन में इसका हिस्सा साल १९७१ में १६.५ फीसदी था जो साल २००१ में बढ़कर २१.१ फीसदी हो गया।&&

• साल १९९१ से २००१ के बीच भारत में  करोड़ ३० लाख लोगों ने गंवई इलाके से पलायन किया।इसमें ५ करोड़ ३० लाख लोग किसी अन्य गंवई इलाके में गए और २ करोड़ लोग शहरों में पलायन कर गए। अधिकतर काम की तलाश में शहरों में आये।&&

• अनुमानतः साल १९९१ से २००१ के बीच ९ करोड़ ८० लाख लोग देश में एक स्थायी वासस्थान को छोड़कर देश के अंदर ही किसी दूसरे वासस्थान पर चले गए।&&

• साल १९९१-२००१ की अवधि के लिए वास्तविक आप्रवास ( नेट माइग्रेशन) यानी इस बात को आधार बनाएं कि किसी राज्य में  कितने लोग अपने पुराने वास स्थान को छोड़कर आये और कितने उस राज्य के अपने स्थायी वासस्थान को छोड़कर चले गए तो वास्तविक आप्रवास के मामले में महाराष्ट्र सबसे ऊपर दिखेगा जिसके खाते में २० लाख ३० हजार आप्रवासियों का आना दर्ज है(यानी जो महाराष्ट्र छोड़कर स्थायी रुप से चले गए उनकी संख्या को घटाकर)। इसके बाद नंबर आता है दिल्ली(१० लाख ७० हजार) गुजरात (६८ हजार) और हरियाणा(६७ हजार) का।+

• उपर्युक्त अवधि में वास्तविक आप्रवास के हिसाब से घाटे का बड़ा खाता उत्तरप्रदेश (-२० लाख ६० हजार) और बिहार(१० लाख ७० हजार) का रहा।+  

&& मैनेजिंग द एग्जोडस्-अमेरिकन इंडिया फाऊंडेशन, http://www.aifoundation.org/documents/Report-ManagingtheEx
odus.pdf

  गरीबी

• साल १९९३-९४ में ग्रामीण इलाके के गरीब परिवारों में खेतिहर मजदूर श्रेणी के परिवारों की संख्या ४१ फीसदी थी और साल २००४-०५ में भी यही अनुपात बना रहा।&

• साल २००४-०५ में, ग्रामीण इलाके के गरीब परिवारों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के परिवारों की संख्या ८० फीसदी थी।

• साल १९७३ में ग्रामीण इलाके में २६२३ लाख लोग गरीब थे जबकि साल २००४-०५ में यह संख्या घटकर २२०९ हो गई है। %&

%& 11th Five-Year Plan of the Planning Commission
http://www.planningcommission.nic.in/plans/planrel/fiveyr/
11th/11_v3/11v3_ch4.pdf

                                           कर्ज और किसान             

 हेक्टेयर से २.०० हेक्टेयर  जमीन की मिल्कियतज्यादातर कर्जदार किसान ०.०१-०.४० हेक्टेयर जमीन की मिल्कियत वाली श्रेणी (इनकी तादाद कुल परिवारों के बीच ३० फीसदी है), ०.४१-१.०० हेक्टेयर जमीन की मिल्कियत वाली श्रेणी(इनकी तादाद कुल परिवारों के बीच २९.८ फीसदी है) और १.०१  वाली श्रेणी(इनकी तादाद कुल परिवारों के बीच १८.८ फीसदी है) ।

• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो ४८.६ फीसदी किसान परिवार कर्जदार हैं। #

• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो प्रत्येक किसान परिवार पर औसतन १२५८५ रुपये का कर्जा है।#

• ४.०१-१०.० हेक्टेयर की मिल्कियत वाले ६६.४ फीसदी किसान परिवार और १० हेक्टेयर से ज्यादा की मिल्कियत वाले ६५.४ फीसदी  किसान परिवार कर्जदार हैं। #

• कर्जदार किसान का प्रतिशत तादाद सबसे ज्यादा आंध्रप्रदेश(८२ फीसदी) में हैं। इसके बाद तमिलनाडु(७४.५ फीसदी), पंजाब(६५.४ फीसदी), केरल(६४.४ फीसदी), कर्नाटक(६१.६ फीसदी) और महाराष्ट्र (५४.८ फीसदी) का नंबर है। #

# रिपोर्ट संख्या 498(59/33/1), सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे ऑव फार्मर हाऊसहोल्ड, नेशनल सैम्पल सर्वे, ५९ वां दौर(जनवरी-दिसंबर २००३)

                                     हम और वे-एक तुलना

• विश्व के कुल चावल उत्पादन में भारत का योगदान साल २००६ में २१.५१ फीसदी रहा जबकि चीन का २९.०१ फीसदी।*****
• विश्व के कुल गेहूं उत्पादन में भारत का योगदान साल २००६ में ११.४ फीसदी रहा जबकि चीन का १७.२ फीसदी। *****
• साल २००६ में भारत में धान की प्रति हेक्टेयर ऊपज ३१२४ किलोग्राम थी जबकि बांग्लादेश की ३९०४ किलोग्राम, चीन की ६२६५ किलोग्राम, मिस्र की १०५९८ किलोग्राम और अमेरिका की ७६९४ किलोग्राम।*****
• साल २००६ में भारत में गेहूं की ऊपज प्रति हेक्टेयर २६१९ किलोग्राम थी जबकि चीन की ४४५५ किलोग्राम, मिस्र की ६४५५ किलोग्राम, फ्रांस की ६७४० किलोग्राम और अमेरिका की २८२५ किलोग्राम। *****

***** फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गनाइजेशन

                                                                  खेती- आंकड़े लागत के 


 साल १९५१-५२ में ६५६०० टन उवर्रक का इस्तेमाल हुआ जबकि साल २००६-०७ में २,१५,६१००० टन का यानी कुल छह दशक में कुल ३३० गुना की बढ़ोतरी।****
• साल २००४-०५ में भारत में खेतिहर जमीन के प्रति हेक्टेयर पर औसतन १०२.१ किलोग्राम उर्वरक का इस्तेमाल हुआ जो जर्मनी(१५३.७ किलोग्राम), फ्रांस(१३९.२ किलोग्राम) और बांग्लादेश(१८४.५ किलोग्राम) से कम है। *******
• खेती के मद में दिए जाने वाले ऋण-प्रवाह की मात्रा साल १९९८-९९ में ३६८६० करोड़ थी जो साल २००६-०७ में बढ़कर २०३२९७ करोड़ हो गई। ******
• साल १९९५ में खेती में १३.५ लाख ट्रैक्टर का इस्तेमाल हो रहा था जबकि साल २००३ में इसकी संख्या लगभग दोगुनी बढ़कर २५.३ लाख हो गई।&
• साल १९५१ में भारत में पशुधन की संख्या १५ करोड़ ५० लाख थी जो साल २००३ में बढ़कर १८ करोड़ ५० लाख हो गई।@

**** कृषि मंत्रालय, भारत सरकार
****** ऋण विभाग, कृषि मंत्रालय
******* फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑव इंडिया
& सेलेक्टेड इंडिकेटरस् ऑव फूड एंड एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट इन एशिया- फूड एंड एग्रीक्लचर ऑर्गनाइजेशन
@ डिपार्टमेंट ऑव एनीमल हजबैंडरी, डेयरिंग एंड फिशरीज,नई दिल्ली

 
• जारी किए गए कुल किसान कार्ड में उत्तरप्रदेश की प्रतिशत पैमाने पर हिस्सेदारी सर्वाधिक(१९.१ फीसदी) है। इसके बाद आंध्रप्रदेश(१६.५ फीसदी), महाराष्ट्र(९.५ फीसदी),मध्यप्रदेश (६.४ फीसदी) का नंबर है(३१ मार्च २००७ तक)******

• साल १९९१-९२ में खाद्यान्न(गेहूं-चावल), दलहन और तेलहन के उच्च गुणवत्ता के प्रामाणित बीज क्रमशः ३५.३५ लाख क्विंटल, ३.२९ लाख क्विंटल और ९.६६ लाख क्विंटल जारी किए गए। साल २००६-०७ में यह मात्रा बढ़कर क्रमशः १०९.८७ लाख क्विंटल, ९.६ लाख क्विंटल और २७ लाख क्विंटल हो गई यानी इस अवधि में तीन गुने की बढ़ोतरी हुई। ********
 

• साल १९९९-२००० में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के अन्तर्गत बीमित किसानों की संख्या ५.८ लाख(रबी) और ८४.१ लाख (खरीफ) थी जो साल २००६-०७ में बढ़कर ४०.५ लाख(रबी) और १.२९ करोड़(खरीफ) हो गई। ******

****** ऋण विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार
******** बीज प्रभाग, कृषि मंत्रालय

                                                              विषमता

• भारत में लगभग ७२ फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। *+
• ५६.९ फीसदी आबादी १५-५९ साल के आयु वर्ग की है। *+
• भारत के ग्रामीण इलाके में २९ फीसदी पुरुष और ५३ फीसदी महिलाएं निरक्षर हैं।
• भारत की साक्षरता दर ६४.८ फीसदी है। *+
• ग्रामीण भारत(५८.७ फीसदी) में साक्षरता शहरी भारत(७९.९ फीसदी) की अपेक्षा कम है।  *+
• भारत में पुरुष साक्षरता की दर(७५.३ फीसदी) स्त्री साक्षरता की दर(५३.७ फीसदी) से ज्यादा है।  *+
• केरल देश का सर्वाधिक साक्षरता दर(९०.९ फीसदी) वाला राज्य है जबकि बिहार में साक्षरता दर(४७.० फीसदी) सर्वाधिक कम है। *+
• ग्रामीण भारत में लिंग-अनुपात प्रति हजार पुरुष पर ९४६ स्त्रियों का है जबकि शहरी भारत में १००० पुरुषों पर ९०० महिलाओं का अनुपात है। *+
• केरल में प्रति हजार पुरुष पर १०५८ महिलाएं हैं(देश में सर्वाधिक) जबकि हरियाणा में प्रति हजार पुरुष पर ८६१ महिलाएं(देश में सबसे कम) *+
• पुरुषों की कार्य प्रतिभागिता दर ५१.७ है जबकि महिलाओं की २५.६।  *+
• देश में अपंग व्यक्तियों की सर्वादिक तादाद(३० लाख ६० हजार) उत्तरप्रदेश में है। *+

*+भारत की जनगणना २००१,, www.censusindia.gov.in




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