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खेतिहर संकट | खेतिहर संकट
खेतिहर संकट

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सीएसडीएस(लोकनीति) द्वारा प्रस्तुत स्टेट ऑफ इंडियन फार्मर्स: ए रिपोर्ट (2014) नामक अध्ययन देश के 18 राज्यों में दिसंबर 2013 से जनवरी 214 के बीच 137 जिलों के 274 गांवों में कराए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। इस अध्ययन के अनुसार
• सर्वेक्षित 83 फीसदी किसानों ने खेती को अपना मुख्य पेशा बताया जबकि 79 फीसदी का कहना था कि खेती उनके आय-उपार्जन का मुख्य साधन है। शेष का कहना था कि उनकी आमदनी का बड़ा हिस्सा गैर-खेतिहर कामों से हासिल होता है।
•    90 फीसदी किसानों ने खेती करने की वजह बताते हुए कहा कि यह पेशे के रुप में पुश्तैनी रुप से चला आ रहा है जबकि 10 फीसदी किसानों ने हाल ही में खेती-बाड़ी को अपना पेशा बनाया था।
•    राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 59 वें दौर की गणना पर आधारित सिच्युएशन असेसमेंट सर्वे ऑफ फार्मर्स, 2003 नामक अध्ययन में कहा गया था कि 60 फीसदी किसान परिवार अपने किसानी के पेशे को पसंद करते हैं जबकि 40 फीसदी किसान परिवार विकल्प होने की स्थिति में उसे छोड़ना पसंद करेंगे। सीएसडीएस के सर्वे से भी इस बात की पुष्टी होती है। सीएसडीएस के उपर्युक्त सर्वे के अनुसार तीन चौथाई किसान अपने पेशे को छोड़ना चाहते हैं।
•    मध्य भारत के 84 फीसदी किसान अपने किसानी के पेशे को पसंद करते हैं जबकि उत्तर और पूर्वी भारत में ऐसे किसानों की तादाद क्रमश 67 और 69 प्रतिशत है। जब इन किसानों से पूछा गया कि क्या आप किसानी के पेशे को पसंद करते हैं तो 72 फीसदी ने हां में उत्तर दिया जबकि 22 प्रतिशत ने स्पष्ट स्वर में ना कहा।
खेती को नापसंद करने के कारण
•  भूमिहीन किसानों ने खेती के पेशे को सर्वाधिक संख्या में नापसंद किया जबकि सर्वे में भूस्वामित्व का आकार बढ़ने के साथ किसानों में खेती को पसंद करने की प्रवृति देखी गई।
•   अच्छी आमदनी का अभाव खेती को नापसंद करने का प्रमुख कारण है। तकरीबन 36 प्रतिशत किसानों ने इसे खेती को नापसंद करने की वजह बताया। 18 प्रतिशत किसानों ने कहा कि परिवार के दबाव में आकर वे किसानी कर रहे हैं। 16 प्रतिशत ने कहा कि किसानों में वे अपना कोई भविष्य नहीं देखते। 9 प्रतिशत का कहना था कि वे कोई और काम करना चाहते हैं जबकि 8 प्रतिशत किसानों का कहना था कि खेती में जोखिम और मेहनत ज्यादा है इसलिए वे खेती करना पसंद नहीं करते।
खेती-बाड़ी के काम में परिवार के अन्य सदस्यों की प्रतिभागिता
•    66 फीसदी किसानों ने कहा कि परिवार की महिलाएं भी खेती के काम में भागीदारी करती हैं। बड़ी जोत वाले किसानों के बीच यही आंकड़ा 73 फीसदी का है जबकि भूमिहीन किसानों में 42 फीसदी का।

फसल उपजाने का तरीका
•    46 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वे साल में दो फसलों को उपजाते हैं जबकि 28 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वे साल में दो से ज्यादा फसल उपजाते हैं। 26 प्रतिशत किसानों का कहना था कि वे साल में एक फसल उपजाते हैं। इस आंकड़े में क्षेत्रवार बहुत ज्यादा भिन्नता पायी गई।
•   सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि 60 प्रतिशत किसान धान-गेहूं की खेती करते हैं जबकि 41 प्रतिशत किसानों ने सर्वेक्षण में धान की खेती को अपने लिए प्रमुख बताया, 21 प्रतिशत किसानों का कहना था कि वे मुख्य फसल के तौर पर गेहूं उपजाते हैं।
बीज
•    70 प्रतिशत किसान परंपरागत या स्थानीय तौर पर उपलब्ध बीजों का इस्तेमाल करते हैं। जब पूछा गया कि क्या आप संकर बीजों का इस्तेमाल करना चाहेंगे तो 63 प्रतिशत किसानों ने हां में जवाब दिया। मात्र 4 प्रतिशत किसानों ने कहा कि वे आनुवांशिक रुप से प्रवर्धित बीज(जीएम सीड्स) का इस्तेमाल करते हैं।
•   36 प्रतिशत किसानों की राय थी कि संकर बीज स्थानीय बीजों की तुलना में ज्यादा फायदेमंद हैं। 18 प्रतिशत किसानों की राय इसके विपरीत थी। 32 प्रतिशत किसानों ने स्थानीय और संकर बीज दोनों को फायदेमंद माना।
उर्वरक
•    सर्वेक्षित 40 फीसदी किसानों ने कहा कि वे रासायनिक और जैविक दोनों ही तरह के उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। 35 प्रतिशत का कहना था कि वे सिर्फ रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं जबकि 16 प्रतिशत का कहना था कि वे सिर्फ जैविक उर्वरक का प्रयोग करते हैं।
कीटनाशक
•   सर्वेक्षण के दौरान यह पूछने पर कि आपलोग कीटनाशकों का इस्तेमाल किस हद तक करते हैं, 18 प्रतिशत का कहना था कि वे नियमित तौर पर कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं जबकि 28 प्रतिशत ने कहा कि वे समय-समय पर कीटनाशकों का उपयोग करते हैं जबकि 30 प्रतिशत का कहना था कि जरुरत पड़ने पर ही वे कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं।13 फीसदी किसानों ने कहा कि वे कभी भी खेती में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते।
•    54 प्रतिशत छोटे किसानों ने कहा कि वे कीटनाशकों को इस्तेमाल नियमित रुप से करते हैं। मंझोले किसानों में कीटनाशकों का प्रयोग करने वालों की संख्या 27 प्रतिशत जबकि बड़े किसानों में 10 प्रतिशत थी।
सिंचाई
•    सर्वेक्षित किसानों में केवल 40 प्रतिशत ने कहा कि उनके हिस्से की समूची कृषि-भूमि के लिए सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। सिंचाई के साधन के रुप में उपयोग किए जाने वाले तरीके में सर्वाधिक प्रचलन पंप, बोरिंग वेल और ट्यूब वेल है। 45 प्रतिशत किसानों ने इन्हें ही सिंचाई का प्रधान साधन बताया। 38 प्रतिशत किसानों का कहना था कि उनके खेतों में सिंचाई के लिए गांव तक नहर की सुविधा उपलब्ध है। सिंचाई के परंपरागत साधन जैसे तालाब और कुएं अब भी महत्वपूर्ण हैं। 34 प्रतिशत किसान सिंचाई के लिए कुएं पर जबकि 30 प्रतिशत किसान सिंचाई के लिए तालाब पर आश्रित हैं। केवल 18 प्रतिशत किसानों ने कहा कि सिंचाई के लिए उन्हें सरकारी ट्यूब वेल हासिल है।


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