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खेतिहर संकट | खेतिहर संकट
खेतिहर संकट

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What's Inside

के नागराज द्वारा प्रस्तुत अध्ययन (२००८) -फार्मरस् स्यूसाइड इन इंडिया,मैग्नीट्यूडस् ट्रेन्डस् एंड स्पैशियल पैटर्नस् में कहा गया है कि-
http://www.macroscan.com/anl/mar08/pdf/Farmers_Suicides.pdf

 

· राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अन्तर्गत किसानों की दशा के मूल्यांकन के लिए एक सर्वेक्षण द सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे ऑव फारमरस् नाम से हुआ। इससे पता चला गया कि देश के चालीस फीसदी किसान खेती-बाड़ी के काम को पसंद नहीं करते हैं और उनकी राय थी कि अगर कोई विकल्प हो तो वे किसानी को छोड़कर कोई और धंधा कर लेंगे। २७ फीसदी किसानों ने सर्वेक्षण में कहा कि खेती लाभकर धंधा नहीं है और आठ फीसदी किसानों का कहना था कि खेती का काम जोखिम भरा है जबकि अन्य पांच फीसदी किसानों को खेती किसी दूसरे कारण से नापसंद थी।

 

· किसानों की आत्महत्या की घटनाएं महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश, पंजाब और मध्यप्रदेश (इसमें छत्तीसगढ़ शामिल है) में हुईं।

 

· साल १९९७ से लेकर २००६ तक यानी १० साल की अवधि में भारत में १६६३०४ किसानों ने आत्महत्या की। यदि हम अवधि को बढ़ाकर १२ साल का करते हैं यानी साल १९९५ से २००६ के बीच की अवधि का आकलन करते हैं तो पता चलेगा कि इस अवधि में लगभग २ लाख किसानों ने आत्महत्या की। एक बात और, इस सिलसिले में सरकारी तौर पर सटीक आंकड़ा १९०७५३ किसानों आत्महत्या का है लेकिन इस आंकड़े सटीक मानकर स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें तमिलनाडु और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों तथा पांडिचेरी जैसे कई छोटे राज्यों में हुई किसान-आत्महत्या की घटनाओं को नहीं जोड़ा गया है।

 

· आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से पिछले एक दशक में औसतन सोलह हजार किसानों ने हर साल आत्महत्या की। आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी जाहिर होगा कि देश में आत्महत्या करने वाला हर सांतवां व्यक्ति किसान था।

 

· साल १९९८ में किसानों की आत्महत्या की संख्या में तेज बढ़ोत्तरी हुई। साल १९९७ के मुकाबले साल १९९८ में किसानों की आत्महत्या में १४ फीसदी का इजाफा हुआ और अगले तीन सालों यानी साल २००१ तक हर साल लगभग सोलह हजार किसानों ने आत्महत्या की।

 

· साल २००२ से २००६ के बीच यानी कुल पांच साल की अवधि पर नजर रखें तो पता चलेगा कि हर साल औसतन १७५१३ किसानों ने आत्महत्या की और यह संख्या साल २००२ से पहले के पांच सालों में हुई किसान-आत्महत्या के सालाना औसत(१५७४७) से बहुत ज्यादा है। साल १९९७ से २००६ के बीच किसानों की आत्महत्या की दर (इसकी गणना प्रति एक लाख व्यक्ति में घटित आत्महत्या की संख्या को आधार मानकर होती है) में सालाना ढाई फीसद की चक्रवृद्धि बढ़ोत्तरी हुई।

 

· अमूमन देखने में आता है कि आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है और यही बात किसानों की आत्महत्या के मामले में भी लक्ष्य की जा सकती है लेकिन तब भी यह कहना अनुचित नहीं होगा कि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में पुरुषों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा थी।देश में कुल आत्महत्या में पुरुषों की आत्महत्या का औसत ६२ फीसदी है जबकि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में पुरुषों की तादाद इससे ज्यादा रही।

 

· साल २००१ में देश में किसानों की आत्महत्या की दर १२.९ फीसदी थी और यह संख्या सामान्य तौर पर होने वाली आत्महत्या की घटनाओं से बीस फीसदी ज्यादा है।साल २००१ में आम आत्महत्याओं की दर (प्रति लाख व्यक्ति में आत्महत्या की घटना की संख्या) १०.६ फीसदी थी। आशंका के अनुरुप पुरुष किसानों के बीच आत्महत्या की दर (१६.२ फीसदी) महिला किसानों (.२ फीसदी) की तुलना में लगभग ढाई गुना ज्यादा थी।

 

· साल २००१ में किसानों की आत्महत्या की सकल दर १५.८ रही।यह संख्या साल २००१ में आम आबादी में हुई आत्महत्या की दर से ५० फीसदी ज्यादा है।पुरुष किसानों के लिए यह दर १७.७ फीसदी रही यानी महिला किसानों की तुलना में ७५ फीसदी ज्यादा।



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