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खेतिहर संकट | खेतिहर संकट
खेतिहर संकट

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What's Inside

 

साल २००३ के जनवरी से दिसंबर महीने के बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण(नेशनल सैम्पल सर्वे) के तहत किसानों की स्थिति के आकलन के लिए एक सर्वेक्षण सिचुएशन असेसमेंट सर्वे ऑव फार्मर-एनएसएसओ के नाम से किया गया।५९ वें दौर के इस सर्वेक्षण के अनुसार-

 

· २७ फीसदी किसानों को खेती करना पसंद नहीं है क्योंकि वे इसे घाटे का पेशा मानते हैं। ४० फीसदी का कहना था कि विकल्प हो तो वे खेती छोड़कर कोई और धंधा कर लेंगे।

 

· पांच फीसदी किसान परिवारों में कोई ना कोई व्यक्ति स्व-सहायता समूह का सदस्य था। केवल २ फीसद किसान परिवारों के सदस्य किसी पंजीकृत कृषक संगठन के सदस्य थे।

 

· १८ फीसदी किसान परिवारों को जैविक खाद के बारे में जानकारी थी और फीसद किसान परिवार न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानते थे।केवल ८ फीसदी किसान परिवारों को इस बात की जानकारी थी कि विश्व व्यापार संगठन नाम की भी कोई चीज है।४ फीसदी किसान परिवारों ने अपनी फसल का बीमा करवाया था जबकि ५९ फीसदी यह भी नहीं जानते थे कि फसल का बीमा करवाया जा सकता है।२९ फीसदी किसान परिवारों में कोई ना कोई व्यक्ति कोऑपरेटिव सोसायटी का मेंबर था।

 

· केवल १९ फीसदी किसान परिवारों ने कोऑपरेटिव सोसायटी की सेवाएं हासिल की थीं।कॉऑपरेटिव सोसायटी की सेवा हासिल करने वाले किसान परिवारों ने ज्यादातर या तो कर्ज की सुविधा हासिल की थी या फिर खाद बीज की।

 

· ४८ फीसदी किसान परिवारों को बीज खरीदना पड़ा था जबकि ४७ फीसदी किसान परिवारों ने पहले की फसल के बीज घर में बचाकर रखे थे।३० फीसदी किसान हर साल बीज की अलग अलग किस्मों का इस्तेमाल करते हैं जबकि ३२ फीसदी किसान परिवार एख साल बीच देके बीज की प्रजाति बदलते हैं।७६ फीसदी किसान खरीफ की फसल के दौरान और ५४ फीसदी किसान रबी की फसल के दौरान खाद का इस्तेमाल करते हैं।

 

· २७ फीसदी किसान परिवारों ने सर्वेक्षण के दौरान कहा कि उन्हें अपने गांव में खाद मिल जाता है।५६ फीसदी किसान परिवार खरीफ की फसल के दौरान और ३८ फीसदी किसान परिवार रबी की फसल के दौरान जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं।खरीफ की फसल के दौरान ६८ फीसदी किसानों को और रबी की फसल के दौरान ७५ फीसदी किसानों को जैविक खाद अपने गांव में ही मिल जाता है।

 

· खरीफ के मौसम में ४६ फीसदी किसान परिवार और रबी के मौसम में ३४ फीसदी किसान परिवार उन्नत बीजों का इस्तेमाल करते हैं।१८ फीसदी किसान परिवारों ने कहा कि उन्नत बीज हमें गांव में ही मिल जाता है।.

 

· खरीफ के मौसम में ४६ फीसदी किसान परिवार और रबी के मौसम में ३१ फीसदी किसान परिवार कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं।खरीफ के दौरान ३० फीसदी और रबी के दौरान २२ फीसदी किसान पशुचिकित्सा की सेवाएं लेते हैं।केवल डेढ़ से दौ फीसदी किसानों ने कहा कि खाद या कीटनाशक के गुणों की जांच की सुविधाएं उन्हें उपलब्ध हैं।

 

· सर्वेक्षण में खेती के अन्तर्गत कई तरह की गतिविधियां शामिल की गई थी।खरीफ के दौरान खेती योग्य कुल भूमि में से ९६ फीसदी का और रबी के दौरान ९५ फीसदी जमीन का इस्तेमाल फसल उगाने(इसमें रेशम के कीड़े पालना,बागवानी करना और लाह के कीड़े पालना शामिल है) में हुआ।पट्टे पर ली गई खेतिहर जमीन में से ९८ फीसदी का खरीफ के मौसम में और ९७ फीसदी का रबी के मौसम में खेतिहर गतिविधियों के लिए इस्तेमाल हुआ।

 

· बागवानी और वृक्षारोपण के काम में कुल खेतिहर जमीन में से ३ फीसदी का खरीफ और ४ फीसदी का रबी के मौसम में इस्तेमाल हुआ।अनुसूचित जाति के किसानों ने अपनी खेतिहर जमीन के महज १-२ फीसदी पर बागवानी या फिर वृक्षारोपण किया।

 

· जिन किसान परिवारों के पास कुल खेतिहर जमीन एक हेक्टेयर से भी कम है उन किसान परिवारों ने अपनी जमीन के महज १४ फीसदी पर खेती की और ६९ फीसदी जमीन पर डेयरी का काम किया जबकि कुल किसान परिवारों के लिए यह आंकड़ा .३५ फीसदी का है।

 

· कुल सिंचित भूमि में से ५० फीसदी की सिंचाई खरीफ के मौसम में और ६० फीसदी की सिंचाई रबी के मौसम में ट्यूबवेल से हुई।खरीफ के दौरान कुल सिंचित भूमि से १९ फीसदी की सिंचाई में कुएं से हुई जबकि रबी के मौसम में कुल सिंचित भूमि के १६ फीसदी पर सिंचाई का माध्यम कुंआ था।कुल सिंचित भूमि में से खरीफ के दौरान १८ फीसदी और रबी के दौरान १४ कृषि भूमि पर नहर से सिंचाई हुई।

 

· कुल सिंचित भूमि में ६२ फीसदी पर खरीफ के दौरान और ६९ फीसदी पर रबी के दौरान अनाज उपजाया गया।कुल सिंचित भूमि में से ४२ फीसदी का इस्तेमाल खरीफ दौरान और ५६ फीसदी का इस्तेमाल रबी के दौरान फसलों को उगाने में हुआ।खरीफ के मौसम में कुलसिंचित भूमि में से ७९ फीसदी की सिंचाई बगैर किसी साधन के इस्तेमाल के हुई रबी के मौसम में कुल सिंचित भूमि के ८३ फीसदी की सिंचाई में किसी साधन का इस्तेमाल नहीं हुआ। कुल सिंचित भूमि में लगभग ५ फीसदी की सिंचाई डीजलपंप से और ४ फीसदी की इलेक्ट्रिक पंप से हुई।.

 

· खेत जोतने के लिए जिन किसान परिवारों ने मानवीय श्रम का इस्तेमाल नहीं किया उसमें ४७ फीसदी ने डीजल से चलने वाले ट्रैक्टर का और ५२ फीसदी ने पशुओं का इस्तेमाल किया।ऐसे किसानों में ५९ फीसदी ने फसल की कटाई के लिए डीजल से चलने वाली मशीन का इस्तेमाल किया।

 

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ५९ वें दौर(जनवरी-दिसंबर २००३) के आकलन (रिपोर्ट संख्या-492(59/18.1/3) पर आधारित सम आस्पेक्टस् ऑव ऑपरेशनल लैंड होल्डिंग इन इंडिया-एनएसएसओ नामक दस्तावेज के अनुसार-

 

एनएसएस (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण) के छठे भूस्वामित्व सर्वेक्षण में ५२२६५ ग्रामीण और २९८९३ शहरी परिवारों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया। यह सर्वेक्षण २००३ में हुआ। इस सर्वेक्षण में जो तथ्य ग्रामीण भारत से संबंधित हैं उन्हें नीचे लिखा जा रहा है-

 

साल २००२-०३ में भूस्वामित्व (लैंडहोल्डिंग) की १० करोड़ १० लाख ३० हजार इकाइयां खरीफ के मौसम में और ९ करोड़ ५० लाख ७० हजार इकाइयां रबी के मौसम में जोती गईं या कहें कि इन पर खेती हुई।

 

साल १९६०-६१ में जोती जा रही भूस्वामित्व की इकाइयों की संख्या ५ करोड़ १० लाख थी। चार दशकों में उनकी संख्या में तेजी से इजाफा हुआ और जोती जा रही भूस्वामित्व की इकाइयों की संख्या साल २००२-०३ में १० करोड़ १० लाख हो गई। बहरहाल यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि जोती जा रही जोती जा रही भूस्वामित्व की इकाइयों की संख्या में जिस गति से बढ़ोत्तरी पहले के तीन दशकों (१९६०-६१ से १९९१-९२) में हुई, बाद के एक दशक(१९९१-९२ से २००२-०३) में उस गति से नहीं हुई।

 

साल १९६०-६१ में १३ करोड़ ३० लाख हेक्टेयर भूमि पर किसानी हुई थी। साल १९७०-७१ में इसमें ५.६ फीसदी की कमी आयी और इस साल किसानी की जमीन घटकर १२ करोड़ ६० लाख हेक्टेयर रह गई। मौजूदा सर्वेक्षण का आकलन है कि १० करोड़ ८० लाख हेक्टेयर जमीन पर किसानी हो रही है जो साल १९८१-८२ के मुकाबले ८ फीसदी कम है। इस आकलन के आधार पर कहा जा सकता है कि पिछले चार दशकों में किसानी की जमीन में १८.५ फीसदी की कमी आई है और हर दशक में यह कमी औसतन ५ फीसदी की हुई।

 

बंटवारे के कारण खेतिहर जमीन का छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट में जाना भारतीय खेती की बहुत पुरानी समस्या है। भूस्वामित्व के सर्वेक्षण पर आधारित पिछले चार आकलन बताते हैं ग्रामीण क्षेत्र में खेतिहर जमीन का आकार , भूस्वामित्व की इकाई के रुप में, हालांकि छोटा है लेकिन उसके कुल टुकड़ों की संख्या पहले की तुलना में कम हुई है। साल १९६०-६१ में भूस्वामित्व के प्रत्येक इकाई में ५.७ टुकड़े थे जो साल २००२-०३ में घटकर २.३ हो गए।

 

साल २००२-०३ में भूस्वामित्व की प्रत्येक इकाई के दायरे में औसतन १.०६ हेक्टेयर जमीन जोत में थी। साल १९९१-९२ में यह आंकड़ा १.३४ हेक्टेयर का और साल १९८१-८२ में यह आंकड़ा १.६७ हेक्टेयर का था। पिछले चार दशकों के भीतर भूस्वामित्व की औसत इकाई में ६० फीसदी की कमी आई है। साल १९६०-६१ में भूस्वामित्व की औसत इकाई २.६३ हेक्टेयर की थी जो साल २००२-०३ में घटकर १.०६ हेक्टेयर की रह गई।

 

साल १९६०-६१ के बाद भूस्वामित्व की संरचना में काफी बदलाव आए हैं। साल १९६०-६१ से लेकर साल २००२-०३ के बीच जोती जा रही जमीन के स्वामित्व में कुछ खास बदलाव नहीं आया लेकिन पट्टे पर दी जाने वाली जमीन का अनुपात इस अवधि में २४ फीसदी से घटकर १० फीसदी रह गया। इससे जाहिर होता है कि पट्टे पर खेत देने के बजाय खुद जोतने -बोने का चलन बढ़ रहा है।

 

पिछले तीन दशकों में सीमांत कोटि के भूस्वामित्व में साढ़े तीन गुणे की बढोतरी हुई है। साल १९६०-६१ में इनकी संख्या १ करोड़ ९० लाख ६० हजार थी जो साल १९९१-९२ में बढकर ७ करोड़ १० लाख हो गई।

 

भूस्वामित्व की कुल इकाइयों में सीमांत (१ हेक्टेयर से कम) इकाइयों की संख्या ७० फीसदी है, छोटी श्रेणी (१ हेक्टेयर से २ हेक्टेयर के बीच) की इकाइयों की संख्या १६ फीसदी है, अर्ध-मध्यम आकार (२ से ४ हेक्टेयर) की इकाइयों की संख्या ९ फीसदी है, मंझोले दर्जे(४ से १० हेक्टेयर) की इकाइयों की संख्या ४ फीसदी और बड़ी(१० हेक्टेयर से ज्यादा) इकाइयों की संख्या १ फीसदी से कम है।

 

किसानी के अमल में शामिल कुल जमीन में सीमांत कोटि की भूस्वामित्व की इकाइयों में १९९१-९१ के बाद से ६-७ फीसदी का इजाफा हुआ है और इनकी संख्या २२-२३ फीसदी पर जा पहुंची है। किसानी के अमल में शामिल कुल जमीन में यह संख्या इस तरह अर्ध-मध्यम और मंझोले दर्जे की भूस्वामित्व की इकाइयों के बराबर हो गई है।

 

साल २००२-०३ में किसानी के अमल में शामिल कुल जमीन में से १० फीसदी हिस्सा पट्टे पर दी गई जबकि साल १९९१-९२ में यह आंकड़ा ११ फीसदी का था।

 

बंटाई या पट्टे पर दी गई जमीन की सर्वाधिक तादाद(१९ फीसदी) उड़ीसा में थी। पश्चिम बंगाल के लिए यह आंकड़ा १४ फीसदी, आंध्रप्रदेश, पंजाबा और बिहार के लिए १२ से १३ फीसदी, उत्तरप्रदेश के लिए १२ फीसदी और हरियाणा के लिए ११ फीसदी का है।

 

१५ बड़े राज्यों को ध्यान में रखकर देखें तो साल २००२-०३ में पट्टे में दी गई जमीन का अनुपात सबसे ज्यादा(१७ फीसदी) पंजाब और हरियाणा(१४ फीसदी) में है। इस मामले में ये दो राज्य साल १९८१-८२ और १९९१-९२ में भी आगे थे।उड़ीसा में भी पट्टे पर दी गई जमीन का तादाद अच्छी खासी(१३ फीसदी) है। बाकी बड़े राज्यों में १० फीसदी से कम जमीन पट्टे पर दी गई।

 

साल १९६० के दशक में हुई हल्की बढ़ोतरी को छोड़ दें तो पट्टे पर दी जाने वाली जमीन की तादाद प्रतिशत पैमाने पर लगातार घट रही है। साल १९६०-६१ में इसकी तादाद २० फीसदी थी (१० हेक्टेयर से ज्यादा वाली कोटि को छोड़कर बाकी सभी कोटियों के लिए) जो साल २००२-०३ में घटकर १०-११ फीसदी रह गई है। बड़े आकार की जमीन को पट्टे पर देने के मामले में बढ़ोतरी हुई है। इस कोटि की १४ फीसदी जमीन साल २००२-०३ में पट्टे पर दी गई। यह संख्या साल १९६०-६१ की तुलना में ज्यादा है।

 

पट्टे पर दी गई जमीन का रुप बंटाईदारी है। पट्टे पर दी जाने वाली कुल जमीन के ४१ फीसदी हिस्से पर यही रुप लागू होता है। दी गई जमीन के एवज में एक बंधी बंधायी ऊपज या फिर बंधी बंधायी रकम लेने के चलन में भी इजाफा हुआ है। साल २००२-०३ में पट्टे पर दी गई जमीन के ५० फीसदी हिस्से पर यही चलन अमल में था।

 

पंजाब और हरियाणा खेती के मामले में देश के दो अग्रणी राज्य हैं और इन राज्यों में पट्टे पर दी गई जमीन पर भूस्वामी एक बंधी बंधायी रकम पर वसूलना ज्यादा बेहतर समझते हैं। पंजाब में पट्टे पर दी गई कुल जमीन में से ७९ फीसदी जमीन एक बंधी-बंधायी रकम के एवज में दी गई और हरियाणा में पट्टे पर दी गई जमीन के ७१ फीसदी पर यही चलन अमल में लाया गया।

 

गुजरात, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में पट्टे पर दी गई जमीन के एवज में एक तयशुदा मात्रा में ऊपज लेने का चलन है। करेल को छोड़कर दक्षिण के बाकी सभी राज्यों में पट्टे पर दी गई जमीन के ६० फीसदी हिस्से पर भूस्वामी ऊपज की एक निश्चित मात्रा वसूलता है।

 

पट्टे पर दी गई जमीन के बंटाईदारी वाले रुप का सर्वाधिक चलन उड़ीसा(७३ फीसदी), भूतपूर्व बिहार(६७ फीसदी), असम(५५ फीसदी) और भूतपूर्व उत्तरप्रदेश(५३ फीसदी) है। मध्यप्रदेश(छ्तीसगढ़ सहित) राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में बंटाईदारी वाले रुप का चलन पट्टे पर दी गई जमीन के ३५-४० फीसदी हिस्से पर है।

 

साल २००२-०३ के खरीफ के मौसम में कुल जोत के ८७ फीसदी हिस्से पर और रबी के मौसम में ५७ फीसदी पर रोपाई-बुआई का काम हुआ।

 

साल २००२-०३ में बुआई-रोपाई के काम लायी गई कुल जमीन में से ४२ फीसदी हिस्सा खरीफ के मौसम में और ६७ फीसदी हिस्सा रबी के मौसम में सिंचिंत हुआ।

 

पंजाब में जितनी जमीन पर रोपाई-बुआई हुई उसका ९७-९८ फीसदी हिस्सा सिंचिंत था और आंकड़ा रबी-खऱीफ दोनों ही मौसम की खेती पर लागू होता है। हरियाणा और पंजाब में रबी के मौसम में सिंचित भूमि की तादाद ९१ फीसदी और खरीफ के मौसम में सिंचित भूमि की तादाद ७८-८० फीसदी है। असम में रबी के मौसम में भी सिंचित भूमि का तादाद २२ फीसदी से ज्यादा नहीं रही ।

 

खरीफ और रबी दोनों ही मौसमों में बुआई-रोपाई के कुल रकबे के ६४ फीसदी पर अनाज की खेती हुई।



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