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खेतिहर संकट | घटती आमदनी
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‘वर्किंग पीपलस् कोअलिसन’ ऐसे संगठनों का नेटवर्क है जो असंगठित क्षेत्र के मजदूरों से संबंधित मुद्दों पर काम करते हैं. इस संगठन ने दिल्ली के असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पर एक रिपोर्ट जारी की है. वर्ष 2015 में दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय को लागू करते हुए न्यूनतम वेतन को लागू करने की घोषणा की थी यह रिपोर्ट इसी घोषणा की सच्चाई का पड़ताल करती है.

एक्सेसिंग मिनिमम वेजेस; एविडेंस फ्रॉम दिल्ली (4 जुलाई,2022 को जारी)  नामक रिपोर्ट (पूरी रिपोर्ट यहाँ से प
ढ़िए
) बताती है कि दिल्ली सरकार के उस निर्णय का कैसे धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है.

क्या है रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
1. इस रिपोर्ट में कुल 1076 लोगों से बातचीत की गई. जिसमें 50% से अधिक पुरुष थे जो अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं वहीं महिलाएं मुख्यतः घरेलू और निर्माण कार्यों में संलग्न है.
2. सर्वे में शामिल दो तिहाई मजदूर युवा आबादी से है. जो अपने रोजगार के लिए असंगठित क्षेत्र में गोता लगा रहे हैं.
3. करीब 60% मजदूर केवल प्राथमिक शिक्षा प्राप्त किए हुए हैं. शिक्षा का यह स्तर उनके लिए रोजगार के अवसर व गतिशीलता को तय करता है.
4. 64% के करीब मजदूर प्रवासी थे जो रोजगार की खोज में अपने घरों से यहां आए थे. इनमें भी 8% ऐसे मजदूर शामिल हैं जिन्हें ‘सीजनल इंडस्ट्री’ अपनी मांग को पूरा करने के लिए बुलाती है.
5. अधिकतर मजदूर कम मजदूरी के साथ, कम उत्पादकता वाले क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
6. केवल 5% मजदूर निर्धारित न्यूनतम वेतन प्राप्त कर रहे हैं. वहीं 95% मजदूर उसी मजदूरी पर काम कर रहे थे जो उनके ठेकेदार ने तय कर रखी है.
7. सर्वे में यह पाया कि 95% मजदूरों के पास आवश्यक कौशल होने के बावजूद उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन से दूर खड़ा रखा गया.
8. दो तिहाई मजदूरों को उनके अधिकार पर और, ‘न्यूनतम मजदूरी कानून’ के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
9. 98% मजदूरों को वेतन प्राप्त होने पर भुगतान की रसीद भी प्राप्त नहीं होती है.
10. 75% से अधिक मजदूरों का कार्यक्षेत्र आवश्यक सुविधाओं से वंचित हैं साथ ही असुरक्षित पर्यावरण में काम करने के लिए मजबूर हैं.
11. मजदूर निम्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं-40% मजदूर घरेलु कामों में.
     16% मजदूर औधियोगिक कामों में.
     33% निर्माण कार्यों में.
     11% सिक्यूरिटी के कामों में.



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