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खेतिहर संकट | घटती आमदनी
घटती आमदनी

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एनएसएस के 68 वें दौर की गणना पर आधारित रिपोर्ट लेवल एंड पैटर्न ऑफ कंज्यूमर एक्सपेंडिचर 2011-12(प्रकाशित 2014 की फरवरी) के अनुसार- 
http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/nss_rep_555.pdf

(यह रिपोर्ट पूरे देश के 7469 गांव और 5268 शहरी खंड से हासिल सूचनाओं पर आधारित है। उपभोक्ता व्यय पर सूचना एकत्र करने के लिए दो अलग-अलग सूचियां तैयार की गईं और पहली सूची में 101662 परिवारों से तथा दूसरी सूची में 101651 परिवारों से जानकारी हासिल की गई)


--- रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 में ग्रामीण भारत में प्रतिव्यक्ति औसत मासिक उपभोक्ता व्यय 1430 रुपये और शहरी भारत में 2630 रुपये का है। दोनों के बीच में 84 प्रतिशत का अन्तर है।

--- 5 प्रतिशत निर्धनतम ग्रामीण जनता का प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय 521 रुपये था। 5 प्रतिशत निर्धनतम नगरीय जनता का प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय 700 रुपये था।

--- एमपीसीई(मंथली पर कैपिटा एक्सपेंडिचर) अर्थात प्रतिव्यक्ति मासिक व्यय के लिए बनाए गए स्तरों में ग्रामीण आबादी के ऊपरले यानी समृद्धतम 5 प्रतिशत हिस्से का प्रतिव्यक्ति औसत मासिक व्यय 4481 रुपये था। यह राशि निर्धनतम 5 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के एमपीसीई की तुलना में 8.6 गुणा ज्यादा है।

--- नगरीय आबादी के ऊपरले यानी समृद्धतम 5 प्रतिशत हिस्से का प्रतिव्यक्ति औसत मासिक व्यय 10282 रुपये था। यह राशि नगरीय आबादी के निर्धनतम 5 प्रतिशत आबादी के एमपीसीई की तुलना में 14.7 गुना ज्यादा है।

--- प्रमुख राज्यों के बीच केरल ग्रामीण एमपीसीई के मामले में सबसे आगे(2669 रुपये) रहा। इसके बाद पंजाब(2345 रुपये) और हरियाणा(2176 रुपये) थे। अन्य सभी प्रमुख राज्यों का औसत एमपीसीई 1000 रुपये से लेकर 1760 रुपये के बीच पाया गया।

--- उड़ीसा और झारखंड के ग्रामीण हिस्से में सबसे कम औसत एमपीसीई(1000 रुपये) पाया गया जबकि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाके में औसत एमपीसीई 1030 रुपये पाया गया। बिहार, मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों औसत एमपीसीई 1120 रुपये से लेकर 1160 रुपये के बीच पाया गया।

--- नगरीय क्षेत्र में सर्वोच्च एमपीसीई(3817 रुपये) वाला राज्य हरियाणा रहा। इसके बाद, इस मामले में केरल(3408 रुपये) एवं महाराष्ट्र(3189 रुपये) का औसत एमपीसीई नगरीय क्षेत्रों के लिए अन्य राज्यों की तुलना में ऊंचा पाया गया।

--- बिहार को छोड़कर (नगरीय एमपीसीई 1507 रुपये) किसी भी प्रमुख राज्य का नगरीय एमपीसीई 1860 रुपये से कम नहीं था।

--- पंजाब के औसत ग्रामीण एमपीसीई से वहां के नगरीय खंडों का औसत एमपीसीई 19 फीसदी अधिक था जबकि केरल में यह 28 फीसदी तथा बिहार में 34 प्रतिशत अधिक था। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल, झारखंड एवं महाराष्ट्र में नगरीय औसत ग्रामीण औसत से करीब दोगुना ज्यादा था।

--- समान संदर्भ अवधि द्वारा मापा गया वास्तविक एमपीसीई 1993-94 से 2011-12 यानी 18 साल की अवधि में ग्रामीण भारत में 38 प्रतिशत तथा शहरी भारत में 51 प्रतिशत बढ़ा है।

--- गुजरात, राजस्थान एवं तमिलनाडु में औसत एमपीसीई नगरीय क्षेत्र में अखिल भारतीय औसत से कम था, किन्तु ग्रामीण क्षेत्र में नहीं।

-- भारत के ग्रामीण परिवारों का 2011 के दौरान कुल-व्यय में खाद्य-पदार्थों के उपभोग पर किए गए व्यय का हिस्सा 53 प्रतिशत था। इसमें अनाज एवं उसके स्थानापन्न पर 10.8 प्रतिशत, 8 प्रतिशत दूध और दूध से बनी चीजों पर और 6 प्रतिशत खर्च सब्जियों पर हुआ। अखाद्य मद वर्ग में खाना बनाने के इंधन और रोशनी का भाग 8 प्रतिशत, वस्त्र एवं जूते का 7 प्रतिशत, चिकित्सा खर्चे का 6.7 प्रतिशत, यात्रा एवं अन्य उपभोक्ता सेवाओं का 4 प्रतिशत तथा  उपभोक्ता वस्तुओं पर हुए खर्च का हिस्सा 4.5 प्रतिशत था।

--- औसत नगरीय भारतीय के लिए पारिवारिक उपभोग के मूल्य का 42.6 प्रतिशत खाद्य पर, 6.7 प्रतिशत अनाज पर एवम् 7 प्रतिशत दूध एवं दूध से बने पदार्थ पर व्यय हुआ था।

---- कुल उपभोक्ता व्यय में अधिकतर खाद्य मद समूहो का हिस्सा नगरीय भारत की तुलना में ग्रामीण भारत में अधिक था, फल एवं प्रसंस्कृत आहार इसके अपवाद रहे। नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच उपभोक्ता व्यय के मामले में सर्वाधिक अन्तर अनाज के मामले में( नगरीय भाग 6.9 प्रतिशत, ग्रामीण भाग 10.8 प्रतिशत तथा किराया(नगरीय 6.2 प्रतिशत, ग्रामीण 0.5 प्रतिशत), एवं शिक्षा( नगरीय 6.9 प्रतिशत, ग्रामीण 3.5 प्रतिशत) के मामले में पाया गया।

--- प्रति व्यक्ति औसत अनाज की खपत प्रतिमाह(सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए) ग्रामीण भारत में 11.2 किलो एवं नगरीय भारत में 9.2 किलो था।

--- ग्रामीण भारत में 10 प्रतिशत जनता के लिए प्रति व्यक्ति औसत मासिक अनाज की खपत 10.0 किलो के आसपास थी। एमपीसीई में बढ़त के साथ ही, यह बढ़ते हुए देखी गई, तेजी से यह बढ़त 10-20 वर्ग में 11 किलो तक पहुंची और फिर धीरे-धीरे बढ़कर 80-90 वर्ग में 11.5 किलो तक पहुंची। नगरीय भारत में एमपीसीई में बढ़त के साथ प्रति व्यक्ति अनाज की खपत में परिवर्तन का कोई स्पष्ट तरीका(पैटर्न) नहीं था। केवल शिखर के 5 प्रतिशत जनता को छोड़कर विभिन्न वर्गों के प्रति व्यक्ति मासिक खपत 9.1 किलो से 9.5 किलो के बीच थी।

--- 1993-94 से 2011-12 तक 18 सालों में महीने में प्रति व्यक्ति अनुमानित अनाज की खपत(जिसमें खरीदे गए प्रसंस्कृत आहार में अनाज का हिसाब शामिल नहीं है) ग्रामीण भारत में 13.4 किलोग्राम से 11.2 किलोग्राम और नगरीय भारत में 10.6 किलोग्राम से 9.3 किलोग्राम तक गिरी है।

 


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