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माइक्रोफाइनांस और गरीबी- भरत झुनझुनवाला

भारत सरकार का गरीब तबके को छोटे ऋण यानी माइक्रोफाइनेंस देने पर जोर है. इन ऋणों को अधिकतर महिलाओं के स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वितरित किया जाता है. सोच है कि ऋण से महिलाएं बकरी, दूध, परचून, फेरी आदि के धंधे कर सकेंगी. उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी और परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी. इसी तरह से बांग्लादेश के मोहम्मद युनूस द्वारा स्थापित ग्रामीण बैंक द्वारा करीब 40 लाख महिलाओं...

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मनरेगा कर्मियों की केन्द्रीय कर्मचारी घोषित करने की मांग

नयी दिल्ली। केन्द्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम... ‘मनरेगा’ के तहत दूरदराज गांवों में प्रशासनिक सहायक के तौर पर काम करने वाले कर्मचारियों ने उन्हें केन्द्रीय कर्मचारी बनाने और समूचे मनरेगा प्रशासन को अलग विभाग घोषित करने की मांग की है। मनरेगा कार्यक्रमों में रोजगार सेवक तथा तकनीकी सहायक, लेखा सहायक, कंप्यूटर आपरेटर और अन्य कार्यक्रम अधिकारी के तौर पर काम करने वाले मनरेगा कर्मचारियों के...

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इन्कूलिसिव मीडिया फैलोशिप 2013 के परिणाम घोषित

हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के आठ पत्रकारों का चयन विकासशील समाज अध्ययन पीठ(सीएसडीएस) द्वारा दी जाने वाली इन्कूलिसिव मीडिया फैलोशिप के लिए हुआ है। चयनित पत्रकार देश के छह राज्यों से हैं। खोजी और सार्थक पत्रकारिता की श्रेष्ठ परंपरा का निर्वाह करते हुए चयनित फैलो ग्रामीण समुदाय की चिन्ताओं और समस्याओं को जन-सामान्य के बीच लाने और उस दिशा में नीतिगत हस्तक्षेप की जमीन तैयार करने के लिए, उनके बीच कुछ समय बितायेंगे। फैलोशिप के अभ्यर्थियों का...

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भुखमरी और कुपोषण के बीच संसद की स्थायी समिति की नई रिपोर्ट

भुखमरी और कुपोषण को मिटाने के मामले में देश कौन से कदम उठाये, इस बारे में जारी बहस को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल की समीक्षा के लिए बनी स्थायी समिति की रिपोर्ट ने नए सिरे से छेड़ दिया है। गौरतलब है कि रिकार्डतोड़ अन्न-उपार्जन और साल-दर साल बनी रहने वाली उच्च वृद्धि दर के बावजूद कुपोषण और भुखमरी को मिटाने के मामले में भारत का रिकार्ड संतोषजनक नहीं रहा है।...

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बाजार नहीं, जनहितैषी नीतियां बनाये सरकार- जोसेफ स्टिग्लिज

- अर्थशास्त्र के लिए 2001 में नोबल पुरस्कार जीतनेवाले प्रो जोसेफ इ स्टिगलिट्स ने सोमवार को पटना में आद्री के स्थापना दिवस व्याख्यान में बाजार, सरकार व समाज की भूमिका से लेकर अमेरिका के संकट तक को बहुत आसान शब्दों में रखा और बताया कि पूंजीवाद को लगातार पुनर्परिभाषित करते रहने की जरूरत क्यों है. हमलोग उनके इस व्याख्यान के बरक्स अपनी सरकारों के नीतिगत फैसलों, बाजार की भूमिका और अपने समाज...

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